न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क

सुशील कुमार सिंह

राजस्थान में कई पुराने मंत्रियों की छुट्टी करके उनकी जगह नए मंत्री बनाने की ताजा कसरत को कांग्रेस की दो साल बाद होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों की तैयारी के तौर पर देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि कांग्रेस आलाकमान ने इस उलटफेर में सचिन पायलट गुट के कई लोगों को मंत्री बना कर उनकी नाराजगी दूर की है। दूसरी तरफ अशोक गहलोत गुट का दावा है कि सारा उलटफेर मुख्यमंत्री की मर्जी से हुआ है।

गहलोत गुट के कई नेता यह तक कहते देखे गए कि मंत्रिमंडल में शामिल हुए नए लोगों में जिनको सचिन पायलट गुट का प्रचारित किया जा रहा है, वे लोग असल में अब अशोक गहलोत गुट में हैं। इन नेताओं का दावा है कि ये लोग काफी पहले ही पायलट को छोड़ चुके थे। मगर पायलट गुट इन दावों को गहलोत गुट की तरफ से अपनी किरकिरी को छुपाने का प्रयास बताता है। फिर भी पार्टी में इस बात को सभी स्वीकार करते हैं कि राज्य मंत्रिमंडल में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को ज्यादा प्रतिनिधित्व देकर पार्टी ने 2023 के चुनाव के लिए अपना आधार मजबूत किया है।

वैसे सचिन पायलट इस मंत्रिमंडल विस्तार से खुश नजर आए। उनके करीबी लोगों को मंत्रिमंडल में पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिला है। अशोक गहलोत पहले पायलट के करीबी लोगों को अपनी कैबिनेट में शामिल करने के इच्छुक नहीं थे, लेकिन पार्टी आलाकमान के कहने पर उन्हें ऐसा करना पड़ा। लगभग साल भर पहले अपने करीबी विधायकों के साथ सचिन पायलट ने बागी रुख अपना लिया था जिससे गहलोत सरकार के मुश्किल खड़ी हो गई थी। हालांकि तब आलाकमान ने गहलोत का साथ दिया था और पायलट को उपमुख्यमंत्री पद और प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी गंवानी पड़ी थी।

बहरहाल, आलाकमान ने लंबे विचार विमर्श के बाद गहलोत और पायलट दोनों को ही हालात से सबक लेने को मजबूर कर दिया। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को समझाया गया कि सरकार चलाना अकेले के दम पर नहीं हो सकता और राज्य सरकार को चलाने में कैसा तालमेल बनाना है यह पार्टी तय करेगी। पार्टी सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री बदलने की बजाय आलाकमान ने गहलोत को अपने विरोधी सचिन पायलट के लोगों को जगह देने के लिए राजी किया। साथ ही यह भी संकेत कर दिया कि गहलोत अपने करीबी निर्दलीयों को फिलहाल दूर ही रखेंगे।

असल में, कांग्रेस के लिए पंजाब के मुकाबले राजस्थान के विवाद को निपटाना आसान था। इसकी वजह यह थी कि यहां अशोक गहलोत कैप्टन अमरिंदर सिंह की तरह पार्टी तोड़ने तक नहीं जा सकते थे और सचिन पायलट भी नवजोत सिंह सिद्धू की तरह अधैर्य के शिकार नहीं हैं।

पायलट गुट के पांच नेताओं को इस बार मंत्री बनाया गया है। जाट और अनुसूचित जनजाति के पांच-पांच तो अनुसूचित जाति से चार मंत्री बनाए गए हैं। एक तरह से पायलट गुट को कोई बहुत बड़ी सफलता हाथ नहीं लगी है, लेकिन इस गुट को मंत्रिमंडल में प्रवेश मिल गया है और माना जा रहा है कि सचिन पायलट 2023 में मुख्यमंत्री बनने का अवसर देख रहे हैं। इसीलिए पार्टी के कहने के बाद भी वे दिल्ली नहीं आना चाहते।

इस बीच विभागों के बंटवारे में भी सचिन पायलट गुट से आए नए मंत्रियों की अनदेखी नहीं की गई है। हेमाराम चौधरी को वन, वर्यावरण, जलवायु परिवर्तन मंत्रालय तो रमेश मीणा को पंचायतीराज और ग्रामीण विकास मंत्रालय दिया गया है। विश्वेंद्र सिंह को पर्यटन और सिविल एविएशन मिला है। इसी तरह बृजेंद्र ओला को परिवहन का और मुरारीलाल मीणा को कृषि विपणन का स्वतंत्र प्रभार हासिल हुआ है।