न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क
विनीत दीक्षित
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह का कहना कि एलएसी यानी चीन से लगने वाली सीमा पर तनाव बरकरार है और 2022 में भारतीय सेना को वहां किसी भी स्थिति के लिए तैयार रहना होगा। यह बात रक्षामंत्री ने 28 दिसम्बर को लद्दाख, सिक्किम और अन्य सीमावर्ती इलाकों में दो दर्जन पुलों और 19000 फीट की ऊंचाई पर सेना के लिए बनाई गई सड़कों के उद्घाटन के मौके पर कही।
असल में, कुछ समय पहले चीन की संसद यानी पीपल्स कांग्रेस ने एक नया कानून पास किया था जिसके तहत चीनी सेना को भारत से लगने वाले इलाकों में चीन के हिसाब से तय की गई एलएसी की ‘रक्षा’ करने का पूरा अधिकार दे दिया है। माना जा रहा है कि चीन पहली जनवरी से अपने मनमाफिक निर्धारित एलएसी यानी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल का ऐलान कर सकता है।
इस नए चीनी कानून में भारत के करीब पड़ने वाले तिब्बती गाँवों में रहने वाले ग्रामीणों को भी पीएलए यानी चीनी सेना में शामिल किए जाने की इजाजत दे दी दे गई है। यह अधिकार मिलने से चीनी सेना तिब्बत के इन ग्रामीणों का जरूरत के हिसाब से भारत के खिलाफ मोर्चाबंदी में इस्तेमाल कर सकती है।
पूरी एलएसी करीब 4057 किलोमीटर लंबी है जिसके कई हिस्सों में चीन अनधिकृत तौर पर छेड़छाड़ करता रहा है। डेढ़ साल पहले 5 मई 2020 को चीनी सेना ने पैंगोंग झील के पास और फिर उसी साल 15 जून को गलवान घाटी में सेंधमारी की। जवाबी कार्यवाही में भारतीय सेना ने पीएलए को न सिर्फ आगे बढ़ने से रोका, बल्कि पैंगोंग झील के उत्तरी छोर से पीछे भी खदेड़ा। फिर भी लद्दाख के कई मोर्चों पर चीनी सेना के अनधिकृत कब्ज़े को अभी तक खाली नहीं कराया जा सका है।
जो कुछ राजनाथ सिंह ने कहा है, विदेश मंत्री एस जयशंकर भी उसी दिशा में बहुत कुछ कह चुके हैं। हाल में सिंगापुर में हुए एक कार्यक्रम में विदेश मंत्री ने चीन के पास किए नए सीमा कानून की तरफ इशारा करते हुए कहा था कि भारत और चीन के संबंध के कठिन दौर से गुज़र रहे हैं। उन्होंने कहा था कि चीन ने कुछ एकतरफा कदम उठाए हैं जो दोनों देशों के बीच हुए किसी भी समझौते से मेल नहीं खाते।
माना जाता है कि जल्दी ही भारत और चीन के सैनिक अधिकारियों के बीच इस मामले में चौदहवें दौर की बातचीत होगी। पिछली यानी तेरहवें दौर की वार्ता 10 अक्टूबर को हुई थी जिसके नतीजे भारत के लिए सकारात्मक नहीं थे। इस बीच कड़ाके की ठंड में भारतीय सेना के लगभग 50,000 जवान पूर्वी लद्दाख मैं गलवान घाटी के पास और उत्तरी लद्दाख में डेपसांग पठार पर पीएलए का सामना करने के लिए तैनात हैं। कठिन बर्फीली ऊंचाइयों पर इतनी बड़ी तादाद में जवानों की तैनाती को यह लगातार दूसरा साल है।
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