न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क
महेंद्र पाण्डेय
पृथ्वी एक बड़े खेत में तब्दील होती जा रही है, और कृषि भूमि के विस्तार के कारण जैव-विविधता बुरी तरह प्रभावित हो रही है। भूमि उपयोग में परिवर्तन के कारण कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में बढ़ोत्तरी हो रही है जो तापमान वृद्धि में सहायक है। यूनिवर्सिटी ऑफ़ मेरीलैंड के भूगोल विभाग के वैज्ञानिकों के अनुसार केवल पिछले दो दशकों में यानी वर्ष 2000 से 2019 के बीच पृथ्वी पर दस लाख वर्ग किमी से अधिक ऐसे भूभाग पर खेती की शुरुआत की गयी है जहां पहले खेती नहीं होती थी।
इन नए क्षेत्रों में मुख्य तौर पर गेहूं, धान, मक्का, सोयाबीन और पाम ऑयल की खेती की जा रही है। खेती के क्षेत्र में अधिकतर बढ़ोत्तरी गरीब देशों में हो रही है, जहां अमीर देशों का पेट भरने के लिए खेती की जा रही है। असल में औद्योगिक देश अपनी जरूरतों के लिए गरीब देशों में खेती को बढ़ावा दे रहे हैं ताकि उनका अपना पर्यावरण सुरक्षित रहे, पानी की बचत हो और वे महंगी मजदूरी से भी बच सकें।
जितने भी नए क्षेत्र में खेती की जा रही है, उसमें आधे से अधिक वन क्षेत्र था या फिर प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा था। इसमें बदलाव से एक तरफ तो जैव-विविधता प्रभावित हो रही है और दूसरी तरफ तापमान वृद्धि का संकट गहराता जा रहा है। इस अध्ययन के मुख्य लेखक मैट हंसें के अनुसार पृथ्वी पर मनुष्य का बढ़ता दायरा प्रकृति के लिए एक बड़ा संकट है।
वैसे दुनिया में कितनी कृषि भूमि है, इसका सही आकलन कठिन है क्योंकि इस बारे में अधिकतर अध्ययन छोटे दायरे में किये जाते हैं। संयुक्त राष्ट्र का फ़ूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाईजेशन इसके आंकड़े रखता तो है, पर इसके लिए वह अपने सदस्य देशों पर ही निर्भर है और हर देश में इसका आकलन अलग तरीके से होता है। यूनिवर्सिटी ऑफ़ मेरीलैंड के वैज्ञानिकों ने पिछले दो दशकों में पृथ्वी पर कृषि क्षेत्र के विस्तार के आकलन के लिए अमेरिका के जियोलॉजिकल सर्वे के उपग्रह से मिले चित्रों का सहारा लिया है। इसका फायदा यह हुआ कि उसे पूरी पृथ्वी के चित्र उपलब्ध थे।
फ़ूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन का अनुमान है कि पिछले दो दशकों में कृषि क्षेत्र में 2.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि यूनिवर्सिटी ऑफ़ मेरीलैंड के वैज्ञानिकों के हिसाब से यह वृद्धि 9 प्रतिशत से भी अधिक है। इस अध्ययन को नेचर फ़ूड नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है। कुल भूमि क्षेत्र के सन्दर्भ में सबसे अधिक कृषि क्षेत्र की बढ़ोत्तरी दक्षिण अमेरिका में दर्ज की गयी है। वहाँ यह वृद्धि 50 प्रतिशत से भी अधिक है। इसकी वजह यह है कि चीन जैसे कई अमीर देशों के मुर्गों को खिलाने के लिए अब दक्षिण अमेरिका में सोयाबीन का उत्पादन जोर-शोर से किया जा रहा है। कुल कृषि क्षेत्र के सन्दर्भ में सबसे अधिक वृद्धि अफ्रीका में दर्ज की गयी है, जहां पिछले बीस सालों में कृषि क्षेत्र 40 प्रतिशत से भी ज्यादा बढ़ गया है। यह वृद्धि दक्षिण एशिया और अमेरिका में भी हो रही है।
अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों के मुताबिक कृषि क्षेत्र का विस्तार जैव-विविधता को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। जब, अमेज़न के वर्षा वनों में पेड़ काट कर खेत बनाए जाते हैं, तब दुनिया खूब चर्चा करती है, पर दूसरे क्षेत्रों के बारे में कोई चर्चा नहीं होती। दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका के शुष्क वन तेजी से काटे जा रहे हैं और घास के मैदानों में भी खेती की जा रही है। इस अध्ययन में कहा गया है कि दक्षिण अमेरिका के चाको और केराडो किस्म के वन अगले कुछ दशकों में पूरी तरह समाप्त हो जाएंगे।
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि खेती के लिए जंगलों को काटने पर जितना कार्बन का उत्सर्जन होता है वह कुल कार्बन उत्सर्जन का आठवाँ भाग है। पर, एक सकारात्मक खबर भी है, कि दुनिया में पौधों का बायोमास 25 प्रतिशत तक बढ़ चुका है, यानी कृषि उत्पादकता बढ़ती जा रही है। दूसरी तरफ इन दो दशकों के दौरान प्रति व्यक्ति कृषि क्षेत्र की उपलब्धता में 10 प्रतिशत की कमी आंकी गयी है। (आभार – समय की चर्चा )
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