न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क
विनीत दीक्षित
पिछले कुछ समय से बिहार के मुख्यमंत्री और जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार राज्य की छोटी-छोटी पार्टियों के नेताओं और विधायकों से मिल रहे हैं। उनकी ऐसी ताजा मुलाकात राष्ट्रीय लोक समता पार्टी अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा से हुई। राज्य में ताजा विधानसभा चुनाव और फिर सरकार बनने के बाद उपेंद्र कुशवाहा की नीतीश से यह तीसरी मुलाकात थी। वे जदयू के पूर्व अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह से भी मिले।
मुलाकात के बाद कुशवाहा ने कहा कि वे नीतीश कुमार से कभी अलग नहीं हुए थे, बस राजनीतिक विचारधारा अलग थी। वशिष्ठ नारायण सिंह का कहना है कि उपेंद्र कुशवाहा के आने से जदयू और मजबूत होगी। इन बयानों से माना जा रहा है कि उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा का जदयू में विलय भी हो सकता है। रालोसपा के अन्य नेता हालांकि ऐसा नहीं मानते। जदयू के सूत्र यह भी कहते हैं कि नीतीश एक बार फिर अपने पुराने समीकरण लव-कुश यानी कुर्मी-कुशवाहा वोट बैंक को मजबूत करने में जुट गए हैं। इसीलिए उन्होंने कुर्मी जाति से ताल्लुक रखने वाले आरसीपी सिंह को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया। फिर विधानसभा चुनाव हारने वाले उमेश सिंह कुशवाहा को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। अब कयास लगाए जा रहे हैं कि इसी लव-कुश समीकरण के तहत जदयू उपेंद्र कुशवाहा को अपने कोटे से विधान परिषद भेज सकती है। अगर ऐसा हुआ तो संभव है कि कुशवाहा को मंत्रिमंडल में भी लिया जाए।
इसी तरह, यह भी माना जा रहा है कि विधानसभा चुनावों में भाजपा के खेल से सदन में अपनी ताकत घट जाने से जदयू के नेता खिन्न हैं। नीतीश इस स्थिति से उबरना चाहते हैं और शायद अपनी ताकत बढ़ाना चाहते हैं। इसी वजह से वे छोटे दलों के विधायकों और नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं। भाजपा और जदयू की सरकार का फिर से गठन हो जाने के बाद भी अगर बिहार में राजनीतिक हलचलें थम नहीं रही हैं तो इसकी एक बड़ी वजह नीतीश का गुस्सा है।
अब तक कई राजनीतिक दलों के विधायक नीतीश से मुलाकात कर चुके हैं। कुछ दिन पहले नीतीश से मिलने के बाद बसपा विधायक मोहम्मद जमां खान जदयू में शामिल हो गए। फिर निर्दलीय विधायक सुमित कुमार सिंह ने भी मुख्यमंत्री को अपना समर्थन दे दिया। इनके अलावा लोजपा के एकलौते विधायक राज कुमार सिंह भी मुख्यमंत्री से मिल चुके हैं और उन्हें विकास पुरुष बता चुके हैं। इसके बाद 28 जनवरी को नीतीश की असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के पांचों विधायकों से मुलाकात हुई। यही वह मुलाकात थी जिसके बाद कयास लगने शुरू हो गए।
विपक्षी महागठबंधन के अलावा जो छोटे दल हैं उनके विधायकों का बारी-बारी नीतीश कुमार से मिलना अटकलों को हवा दे रहा है। कुछ सूत्र मानते हैं कि अब कांग्रेस के विधायकों की बारी है। वे दावा करते हैं कि कांग्रेस के कई विधायक जदयू के संपर्क हैं। लेकिन समस्या यह आ रही है कि दलबदल कानून से बचने के लिए कांग्रेस के 13 विधायक चाहिए जो कि अभी नहीं हुए हैं।
वैसे कांग्रेस नेता प्रेमचंद्र मिश्रा इस सबको गपबाज़ी बताते हैं। उन्होंने कहा कि असल में नीतीश और भाजपा के बीच इस वक्त शह और मात का खेल चल रहा है। नीतीश अपने विधायकों की संख्या बढ़ाना चाहते हैं, लेकिन वे इसमें सफल नहीं होंगे। दूरी तरफ, जदयू प्रवक्ता अजय आलोक का कहना था कि नीतीश कुमार के साथ सभी राजनीतिक दलों के नेता काम करना चाहते हैं। नीतीश के साथ काम करके ही जनता के विकास के लिए ईमानदारी से काम किया जा सकता है। अजय आलोक ने कहा कि सभी राजनीतिक दलों के लोग अच्छी तरह जानते हैं कि नीतीश के साथ काम करने से उनका राजनीतिक भविष्य भी सुरक्षित रहेगा।
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