विनीत दीक्षित
नई दिल्ली। सन् 1962 में भी यही हुआ था जो अब हो रहा है। केवल लद्दाख नहीं, भारत से लगने वाली हज़ारों किमी लंबी सीमा के कई हिस्सों में चीन अपने पंजे इस पार बढ़ा रहा है या बढ़ा चुका है। दोनों तरफ के सैनिक अधिकारियों की ताजा बातचीत से भी चीन की जिद झलकती है। स्थिति कुछ ऐसी है कि सीमा पर भी चीन मानों ‘ई गो’ खेल रहा है, और खेल में डूब चुका है।
‘ई गो’ एक चीनी खेल है जो उसने शायद शतरंज के मुकाबले बनाया है। भारत में कूटनीति और युद्ध की शतरंज से तुलना करने की पुरानी परंपरा है। शतरंज में हर मोहरे की चाल तय होती है और जब विरोधी राजा का बचाव कर सकने लायक मोहरे नहीं बचते या अपनी जगह पर नहीं रहते तो आप जीत जाते हैं। मगर चीन शतरंज की चालों से शिकस्त देने की बजाय भारत को ‘ई गो’ जैसी चाल से मात देना चाहता है। ‘ई गो’ भी दिमागी खेल है, पर उसमें रणनीति बिलकुल उलट होती है। उसके 361 चौकोर खानों में जो खिलाड़ी अपने विरोधी की गोटी को घेर कर आगे बढ़ने से रोक दे और खेल के मैदान में जो सबसे ज्यादा खानों पर कब्ज़ा कर ले, वही मुक़ाबला जीतता है।
तो चीन ज्यादा से ज्य़ादा खानों पर कब्जा करना चाहता है। सन् 1962 के युद्ध विराम के बाद दोनों देशों के बीच एक दर्जन से ज्यादा बार सीमा निर्धारण को लेकर औपचारिक बातचीत हो चुकी है, पर नतीजा आज तक कुछ नहीं निकला। उस युद्ध के बाद जमीन को लेकर जो अघोषित समझौता था उसके हिसाब से भारत अपनी वाली एलएसी यानी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल तक रहता था और चीन अपनी एलएसी तक। पर ‘ई गो’ की रणनीति पर चल रही पीपल्स लिबरेशन आर्मी इस कहां मानने वाली है।
जब तक विएना संधि के हिसाब से भारत और चीन के बीच कोई औपचारिक सीमा रेखा तय हो, उससे पहले चीन ने भारतीय हिस्से पर 16-17 जगह कब्जा कर लिया है। दशकों से चीन इसी तरह चोरी छुपे एलएसी का उल्लंघन करता आ रहा है। हाल में जो कुछ गलवान घाटी में हुआ या जो डेपसांग में हो रहा है या फिर पैंगोंग लेक पर जो तनाव है, उस सबके पीछे यही माजरा है।
इन दिनों लद्दाख के डेपसांग और पैंगोंग लेक के गिर्द चीनी अतिक्रमण मीडिया में छाया हुआ है। पर चीन ने हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश तक यही रणनीति अपना रखी है। इसी का नतीजा है कि भारत को पिछले कुछ दिनों में चीनी सीमा पर सेना की अभूतपूर्व तैनाती करनी पड़ी है।
इस समय उत्तराखंड में लिपुलेख दर्रे, सिक्किम में भूटान की सीमा के पास डोकलाम में और अरुणाचल में नकुला दर्रे पर चीनी सेना का भारी जमावड़ा है। भारत ने भी इन सब स्थानों पर बड़ी संख्या में अपने सैनिक उतार दिए हैं। इनमें भारत सरकार के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द अरुणाचल प्रदेश की सीमा है जिसके लगभग पूरे हिस्से पर चीन दावा करता है। मगर पिछली गलतियों से सबक लेते हुए इन दो महीनों में भारतीय सेना ने पीएलए से मुक़ाबला करने के लिए अरुणाचल प्रदेश में पूरी तैयारी कर ली है।
(First published in Samay Ki Charcha.)
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