न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क

महेंद्र पाण्डेय

पिछले कुछ वर्षों के दौरान अनेक सर्वेक्षणों और अध्ययनों से पता लगा है कि अधिक मांस का सेवन करने से आँतों में कैंसर का खतरा बढ़ता हैI अब एक नए अध्ययन में कहा गया है की ज्यादा मांस खाने से कई दूसरे प्रमुख रोगों का खतरा भी बढ़ जाता हैI इसके मुताबिक सप्ताह में तीन बार से अधिक मांस खाने वालों में ह्रदय रोग, डायबिटीज, न्युमोनिया का खतरा बढ़ जाता हैI

यह असर रेड, पोल्ट्री, और प्रोसेस्ड – हर तरह के मांस से होता हैI यह निष्कर्ष ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में डॉ करेन पैपिएर की अगुवाई में किये गए एक अनुसंधान का है। ऐसी आशंका विश्व स्वास्थ्य संगठन और कई दूसरे वैज्ञानिक पहले भी जता चुके हैंI डॉ करेन पैपिएर के अनुसार यह अध्ययन ब्रिटेन के लगभग पांच लाख नागरिकों पर आठ वर्षों के दौरान किया गयाI पता लगा कि रेड और अनप्रोसेस्ड मांस से डाईवर्टिकुलर रोगों, कोलोन पोलिप्स, ह्रदय रोग, न्युमोनिया और डायबिटीज का खतरा बढ़ता है, जबकि पोल्ट्री मांस से गैस्ट्रो-ओएसोफेगल रिफ्लक्स, गैस्ट्राइटीस, ड्यूडेमाइटीस, डाईवर्टिकुलर रोगों, गाल ब्लैडर वाले रोगों और डायबिटीज का खतरा बढ़ता हैI हर दिन 70 ग्राम से अधिक अनप्रोसेस्ड मांस खाने वालों में ह्रदय रोगों की 15 प्रतिशत और डायबिटीज की आशंका 30 प्रतिशत तक बढ़ जाती हैI इसी तरह 30 ग्राम या इससे अधिक पोल्ट्री मांस का सेवन करने वालों में गैस्ट्रो-ओएसोफेगल रिफ्लक्स का खतरा 17 प्रतिशत और डायबिटीज का 14 प्रतिशत तक बढ़ जाता हैI मांस खाने से स्वास्थ्य पर प्रभाव सबसे ज्यादा मोटे लोगों पर पड़ता हैI

प्रतिष्ठित जर्नल, साइंस, के एक लेख के अनुसार विश्व में मांस की बढ़ती मांग के कारण पर्यावरण संकट में है, तापमान वृद्धि के लिए जिम्मेदार कार्बन डाइऑक्साइड गैस का उत्सर्जन बढ़ रहा है और जैव-विविधता कम हो रही हैI विश्व की जनसँख्या बढ़ रही है और साथ ही औसत वार्षिक आय भी बढ़ रही है, इस कारण मांस का उपभोग भी बढ़ता जा रहा हैI इस लेख के सह-लेखक यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऑक्सफ़ोर्ड के प्रोफेसर टिम के कहते हैं कि मांसाहार की वर्तमान दर पर्यावरण के लिए घातक है, और भविष्य में इसके गंभीर परिणाम होंगेI

दुनिया में मांस की खपत पिछले 50 वर्षों में लगभग दोगुनी हो चुकी हैI वर्ष 1961 में प्रति व्यक्ति वार्षिक खपत 23 किलो थी जो वर्ष 2014 तक 43 किलो हो गईI इसका मतलब, मांस की खपत इसी दौरान जनसँख्या वृद्धि की तुलना में 4 से 5 गुना बढ़ीI सबसे अधिक वृद्धि मध्यम आय वर्ग वाले देशों जिनमें चीन और पूर्वी एशिया के देश प्रमुख हैं, में दर्ज की गयीI कुछ विकसित देश ऐसे भी हैं जहाँ यह खपत कम हो रही हैI वर्ष 2017 के नेशनल फ़ूड सर्वे के अनुसार इंग्लैंड में 2012 की तुलना में मांस की खपत में 4.2 प्रतिशत की कमी आ चुकी हैI

वैसे भी मांस के उत्पादन में अनाज, सब्जियों और फलों के मुकाबले पानी ज्याद लगता है, कार्बन डाइऑक्साइड ज्यादा पैदा होती है और पर्यावरण पर अधिक बोझ पड़ता हैI मानव गतिविधियों के कारण तापमान वृद्धि करने वाली जितनी गैसों का उत्सर्जन होता है, उसमें 15 प्रतिशत से अधिक योगदान मवेशियों का हैI विश्व स्तर पर पानी की कुल खपत में से 92 प्रतिशत का उपयोग कृषि में किया जाता है, और इसका एक-तिहाई से अधिक मांस उत्पादन में खप जाता हैI (आभार – समय की चर्चा )