न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों की तरह उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनावों में भी भाजपा को वैसी सफलता नहीं मिली है जिसकी वह उम्मीद कर रही थी। लता नहीं मल ह

अगले साल होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के मद्देनजर इन पंचायत चुनावों को बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा था। जिला पंचायत के 3050 पदों में से 3047 के नतीजे मिले हैं जिनमें भाजपा ने 768, सपा ने 759, बसपा ने 319, कांग्रेस ने 125 और 1071 निर्दलीय उम्मीदवार जीते हैं।

सबसे अहम बात यह कि भाजपा को उन जिलों में हार मिली है, जिन्हें वह अपना गढ़ मानती है और जहां उसने पूरी ताकत झोंक दी थी। अयोध्या, वाराणसी, लखनऊ जैसे जिलों में जहां भाजपा ने खासा जोर लगाया था, वहां सपा ने भाजपा को पछाड़ दिया। अयोध्या में तो जिला पंचायत सदस्य की 40 में से 24 सीटों पर समाजवादी पार्टी ने कब्जा जमा लिया है जबकि भाजपा के खाते में सिर्फ छह सीटें आई हैं। मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने भी यहां पांच सीटें जीती हैं। इसके अलावा 11 सीटों पर निर्दलीय जीते हैं। लगता है कि इन चुनावों में कई स्थानों पर निर्दलीय ही सत्ता की कुंजी होंगे।

ये चुनाव जिला पंचायत सदस्य, क्षेत्र पंचायत सदस्य, प्रधान और ग्राम पंचायत वार्ड सदस्यों के पदों के लिए थे। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में जिला पंचायत सदस्यों की 40 सीटों में से आठ पर भाजपा उम्मीदवार जीते हैं जबकि सपा ने 14 सीटें कब्जा ली हैं। इनके अलावा एक निर्दलीय, एक अपना दल, एक बसपा और एक सीट आम आदमी पार्टी ने जीती है।

इसी तरह मथुरा में जिला पंचायत की कुल 33 सीटों में से बसपा ने 13 सीटें जीती हैं जबकि भाजपा के खाते में 8 सीटें रहीं। सपा यहां एक ही सीट जीत पाई। राष्ट्रीय लोकदल ने 8 और 3 निर्दलीय उम्मीदवार जीते हैं, मगर कांग्रेस को यहा कुछ नहीं मिला है। केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह के संसदीय क्षेत्र और राजधानी लखनऊ में जिला पंचायत की 25 सीटों के परिणामों में भाजपा को 3, सपा को 10, बसपा को 4 और अन्य को मिली 8 सीटें मिली हैं।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अपने क्षेत्र गोरखपुर में 68 में से भाजपा के 20 और सपा के 19 उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है। मगर सबसे अधिक 21 निर्दलीय उम्मीदवार जीते हैं। यहां बसपा को दो, कांग्रेस, आप और निषाद पार्टी को एक-एक सीट मिला है।

इन नतीजों को पिछले विधानसभा व लोकसभा चुनावों में भाजपा से जबरदस्त हार मिलने के बाद समाजवादी पार्टी के लिए खासा महत्वपूर्ण माना जा रहा है। यह पार्टी पूरे प्रदेश में अच्छा प्रदर्शन करती दिख रही है। राज्य में भाजपा समर्थित जिला पंचायत सदस्यों की संख्या अधिक है, लेकिन वाराणसी, मथुरा, काशी, अयोध्या, प्रयागराज, चित्रकूट आदि शहरों में सपा ने जोरदार तरीके से अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।

राज्य के पंचायत चुनावों में पहली बार राजनैतिक दलों के समर्थित उम्मीदवारों ने जिला पंचायत सदस्य के तौर पर चुनाव लड़ा है। सपा ने भी अपने अधिकृत उम्मीदवारों के लिए ही वोट मांगा। इससे पहले पंचायत चुनावों में सपा के ही कई नेता एकसाथ मैदान में आ जाते थे। इस चुनाव में मुलायम सिंह यादव और उनके परिवार ने अपने गढ़ को बचाने में कामयाबी पाई है। मुलायम की भतीजी संध्या यादव जो भाजपा में शामिल होकर चुनाव लड़ी थीं वे भी चुनाव हार गईं। मुलायम सिंह के परिवार के गढ़ को बचाने के लिए उनके भाई शिवपाल यादव ने भी साथ दिया।

राज्य में भाजपा को सीधे समाजवादी पार्टी ही टक्कर देती नजर आई। कांग्रेस और बसपा के अलावा निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी भाजपा के विजय रथ को रोकने में बड़ी सफलता अर्जित की है। माना जा रहा है कि पश्चिम उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी को राष्ट्रीय लोकदल से गठबंधन का फायदा मिला है। दोनों दलों के गठबंधन के अलावा किसान आंदोलन का असर भी इन चुनावों में देखने को मिला।