सुशील कुमार सिंह

न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क

दुनिया में लोकतंत्र का क्या हाल हो गया है, इसे म्यांमार के हालात से समझा जा सकता है। म्यांमार की सेना ने घोषणा कर दी है कि अगस्त 2023 तक उसकी कार्यकारी सरकार देश का शासन चलायेगी और सेना प्रमुख जनरल मिन औंग हलिंग देश के प्रधानमंत्री होंगे। पिछली 1 फरवरी  को म्यांमार में सेना ने लोकतांत्रिक सरकार का तख्ता पलट दिया था और घोषणा की थी कि एक वर्ष के भीतर फिर से चुनाव करवा कर लोकतांत्रिक सरकार को सत्ता सौंप दी जायेगी, लेकिन अब अगस्त 2023 तक सत्ता पर सेना के काबिज रहने की घोषणा की गई है।

इससे तख्तापलट के सूत्रधार जनरल हलिंग की मंशा उजागर होती है। इस बीच लोकतंत्र पर तमाम भाषण देने वाली और मानवाधिकार की बातें करने वाली दुनिया की सरकारें म्यांमार के मामले पर खामोश हैं। यही सरकारें हांगकांग में मानवाधिकार हनन और लोकतंत्र समर्थकों को जेल भेजे जाने पर चीन की भर्त्सना करती हैं, बेलारूस में मानवाधिकार हनन की चर्चा करती हैं, पर म्यांमार में सेना जो कुछ कर रही है, उस पर अमेरिका समेत पूरी दुनिया खामोश है। संयुक्त राष्ट्र भी म्यांमार पर कुछ नहीं बोल रहा।

म्यांमार में सेना ने तख्तापलट को वर्ष 2008 के संविधान के तहत जायज ठहराया था, जबकि इस संविधान को वहां की सेना ने ही अपने अनुरूप तैयार किया था। तख्तापलट के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री आंग सान सू की पर चुनावों में धांधली और भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए, पर आज तक सेना ने एक भी आरोप के साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किये| हाल में सेना ने पिछले चुनावों को आधिकारिक तौर पर रद्द कर दिया और एक नए चुनाव आयोग का गठन किया है।

तख्तापलट के बाद से म्यांमार में सेना के विरुद्ध आन्दोलन हो रहे हैं, जिनमें लगभग एक हजार नागरिक मारे गए हैं और तीन हजार से अधिक आन्दोलनकारियों को कैद कर लिया गया है। मीडिया के सभी स्रोत बंद कर दिए गए हैं और अधिकतर पत्रकारों को जेल में डाल दिया गया है। अब तो सेना पर भी नागरिकों के हमले हो रहे हैं और सैनिक भी मारे जा रहे हैं। देश गृहयुद्ध की तरफ बढ़ रहा है और अनेक जनजातियाँ अब सेना से लोहा ले रही हैं।

वैसे म्यांमार कोविड-19 के सन्दर्भ में अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है, स्वास्थ्य सेवायें जर्जर अवस्था में हैं, ऑक्सीजन की कमी है, पर जनरल हलिंग के अनुसार कोरोना का यह दौर जनता द्वारा छेड़े गए जैविक युद्ध का नतीजा है। म्यांमार दुनिया का अकेला देश होगा जहां की सरकार अपनी जनता पर जैविक युद्ध छेड़ने का आरोप लगा रही है।

उधर, अपने 76 वर्ष पूरे होते-होते संयुक्त राष्ट्र संघ सामान्य जनता के लिए अपना महत्व खो चुका है। यह  अब उन देशों की धरोहर बन गया है जो मानवाधिकारों का खुलेआम हनन करते हैं। भारत, रूस, चीन, पाकिस्तान, मेक्सिको और क्यूबा जैसे देश मानवाधिकार हनन के मामले में आरोपों से घिरे हैं, मगर ये देश संयुक्त राष्ट्र की ह्यूमन राइट्स काउंसिल के सदस्य भी हैं। हाल में 2023 तक के लिए ह्यूमन राइट्स काउंसिल के सदस्यों के चुनाव में चीन, पाकिस्तान, रूस, मेक्सिको और क्यूबा के अतिरिक्त बोलीविया, कोटे द आइवरी, फ्रांस, गैबन, मलावी, नेपाल, सेनेगल, यूक्रेन, यूनाइटेड किंगडम और उज्बेकिस्तान की जीत हुई है।

ये देश अब दुनिया के मानवाधिकार की निगरानी करेंगे। भारत 2021 तक इसका सदस्य है। दुनिया में मानवाधिकारों का क्यों इतना हनन हो रहा है, यह इन देशों की सूची से समझा जा रहा है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान काउंसिल के अधिकतर चुने गए सदस्य स्वयं अपने देशों में मानवाधिकार का हनन करते रहे हैं, और अपने कारनामों पर पर्दा डालने और अपने विरुद्ध आवाज को दबाने के लिए इस काउंसिल की सदस्यता का उपयोग करते रहे हैं।