न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क
सुशील कुमार सिंह
लखीमपुर खीरी प्रकरण से किसान आंदोलन के प्रभाव का कितना विस्तार होता है, यह पता चलना अभी बाकी है। लेकिन कांग्रेस को इससे तत्काल प्रभाव से एक नई ऊर्जा हासिल हुई है, जिसका कारण राहुल गांधी से भी ज्यादा प्रियंका गांधी हैं। यह बात उतनी अहमियत नहीं रखती कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को क्या मिलेगा, क्योंकि यह घटना कांग्रेस को पूरे देश में खड़े होने में मदद कर सकती है, जो कि उससे ज्यादा महत्वपूर्ण है।
ऐसा कभी कभी ही होता है कि किसी एक घटना से किसी राजनैतिक दल को, जो किसी तरह बस अपना गुजारा भर कर रहा हो, अचानक इतनी बड़ी राजनैतिक पूंजी मिल जाए कि लोग देखते रह जाएं। लखीमपुर खीरी का घटनाक्रम शायद यह माद्दा रखता है। पिछले कई सालों से लोगों ने कांग्रेस का यह जुझारूपन नहीं देखा था जिसके कारण वह कई दिन तक लगातार मीडिया में छाई रही। उस मीडिया में जो निरंतर उसे ध्वस्त करने में लगा रहता है। अब यह खुद कांग्रेस पर है कि वह इस पूंजी को और बढ़ा पाती है या उसे यों ही चुक जाने देती है।
कांग्रेस को इस घटना से सीधे कई तरह के लाभ हुए हैं। आम तौर पर इस पार्टी के लोग और उसे चाहने वाले यह मान कर चलते हैं कि कांग्रेस वहां है जहां नेहरू-गांधी परिवार है। तो लखीमपुर खीरी की घटना पार्टी और परिवार के इस घालमेल या पार्टी पर परिवार की वर्चस्वता को और मजबूत बनाने का काम करेगी। इस वर्चस्वता को पार्टी के भीतर ही काफी समय से चुनौतियां दी जा रही थीं। मगर इस पूरे प्रकरण में वे लोग या तो बुरी तरह पिछड़ गए जो यह चुनौती दे रहे थे या फिर वे भी प्रियंका और राहुल का समर्थन करते नजर आए।
लखीमपुर खीरी की भयावह वारदात से ऐन पहले तक कांग्रेस लगभग हर उस राज्य में परेशानियों का सामना कर रही थी जहां भी वह सत्ता में है। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के कांग्रेस छोड़ने, कोई नई पार्टी बनाने या भाजपा से मिल जाने के कयास लगाए जा रहे थे। अब लगता है कि वे इनमें से कुछ भी करके कांग्रेस को शायद ही नुक्सान पहुंचा पाएं। मगर यह जरूरी है कि नवजोत सिंह सिद्धू और चरणजीत चन्नी हाईकमान के नियंत्रण में रहें और एक-दूसरे से ही न उलझ पड़ें।
प्रयंका गांधी के साथ जो बरताव उत्तर प्रदेश में हो रहा था उसे देख राहुल गांधी ने भी लखीमपुर जाने का कार्यक्रम बनाया। यह अनायास नहीं हो सकता कि प्रियंका गांधी के साथ दीपेंद्र हुड्डा भी गए थे तो राहुल के साथ चरणजीत चन्नी, भूपेश बघेल और केसी वेणुगोपाल गए। सचिन पायलट को हालांकि जाने नहीं दिया गया, पर उन्हें सड़क के रास्ते लखीमपुर पहुंचना था। ध्यान दीजिए कि ये सब नेता उन राज्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं जहां कांग्रेस सत्ता में है अथवा मजबूत स्थिति में है।
भूपेश बघेल को पहले ही लखनऊ हवाईअड्डे पर रोक दिया गया था। बाद में वे राहुल गांधी के साथ आगे जा सके। हाल में ही उन्हें उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों के लिए वरिष्ठ पर्यवेक्षक नियुक्ति किया गया है। उसके बाद राहुल गांधी के साथ उनका जाना उन्हें छत्तीसगढ़ में चल रहे ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्रित्व वाले विवाद में वरीयता प्रदान करेगा।
इसी तरह दीपेंद्र हुड्डा के प्रियंका गांधी के साथ दिखने के अलग मायने हैं। ध्यान रहे, उनके पिता भूपेंदर सिंह हुड्डा कांग्रेस के कथित जी-23 समूह के अकेले जमीनी आधार वाले नेता हैं और वे लंबे समय से हरियाणा में पार्टी को अपने हिसाब से चलाने देने की मांग कर रहे हैं। क्या इसी तरह का कोई संदेश सचिन पायलट को लेकर भी दिया गया है?
कांग्रेस उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र की सरकार में भी भागीदार है। यह दिलचस्प है कि लखीमपुर खीरी प्रकरण में कांग्रेस की कोशिशों को समर्थन देने के लिए शिवसेना सांसद संजय राउत खुद राहुल से मिलने उनके घर पहुंचे। बाद में राउत ने कहा कि कांग्रेस विपक्ष की अकेली पार्टी है जो पूरे देश में मौजूद है और उसके बिना विपक्ष कुछ नहीं कर सकता। मगर जो बात राउत ने नहीं कही वह ये है कि खुद कांग्रेस को भी यह साबित करना होगा कि देश की राजनीति में उसका क्या मतलब है। क्या यह प्रकरण उसी का प्रारंभ है?
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