न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क

अमिताभ पाराशर

लखीमपुर खीरी प्रकरण और उसके बाद कांग्रेस की अचानक बढ़ी उम्मीदों को चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने महज गलतफहमी बताया है। उन्होंने ट्विटर पर बगैर नाम लिए लिखा कि जो लोग या पार्टियां सोच रहे हैं कि ‘ग्रैंड ओल्ड पार्टी’ के सहारे विपक्ष की तुरंत वापसी होगी वे गलतफहमी में हैं। उनको निराशा ही हाथ लगेगी।

पीके ने आगे लिखा है कि दुर्भाग्य से ‘ग्रैंड ओल्ड पार्टी’ की जड़ों और उनकी संगठनात्मक संरचना में बड़ी कमियां हैं। फिलहाल इस समस्या का कोई समाधान भी नहीं है।

प्रशांत किशोर की इस प्रतिक्रिया ने राजनीतिक क्षेत्र में बहुत से लोगों को चौंकाया है। इसकी वजह यह है कि हाल तक माना जा रहा था कि वे कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं। इस प्रतिक्रिया के बाद इसकी कोई संभावना नहीं दिखती। प्रशांत किशोर ने पहले भी एक बयान में कहा था कि पार्टियों को अपने संगठनात्मक ढांचे में बदलाव करने की जरूरत है। साफ है कि वे अभी विपक्ष को भाजपा से मुकाबला करने लायक नहीं मानते।

कांग्रेस में बहुत से लोग मानते हैं कि प्रशांत किशोर क्योंकि तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी के लिए विभिन्न विपक्षी पार्टियों में सहमति बनाने की कोशिशों में लगे रहे हैं, इसलिए वे कांग्रेस के बारे में ऐसी राय दे रहे हैं। शायद इसीलिए उनकी प्रतिक्रिया के बाद कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बीच भी तीखी बयानबाजी शुरू हो गई।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने तो ममता बनर्जी की नंदीग्राम की हार पर ही सवाल खड़ा कर दिया। बघेल ने किसी पार्टी का नाम लिए बिना लिखा कि अपनी सीट भी नहीं जीत पाने वाले कांग्रेस पदाधिकारियों को अपने पाले में ले जाकर एक ‘राष्ट्रीय’ विकल्प की तलाश करने वाले लोग गलतफहमी में हैं। इसके लिए गहरी जड़ों और ठोस प्रयासों की जरूरत होती है और दुर्भाग्य से इसका कोई त्वरित समाधान नहीं है। शायद बघेल का इशारा ममता बनर्जी की नंदीग्राम से हार, कांग्रेस की पूर्व सांसद सुष्मिता देव और गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री लुइजिन्हो फलेरियो के टीएमसी में शामिल होने की ओर था।

तृणमूल ने इसे ‘आलाकमान को खुश करने का घटिया प्रयास’ बताया। उसकी तरफ से 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी की अमेठी की हार की याद दिलाते हुए पूछा कि क्या कांग्रेस ट्विटर ट्रेंड के जरिए इस हार को जीत में बदल सकती है। उसने यहां तक लिखा कि पहली बार मुख्यमंत्री बने व्यक्ति को अपनी हैसियत से ऊंची बात करना शोभा नहीं देता। इसके बाद अधीर रंजन सेन भी इस लड़ाई में कूद पड़े जो तृणमूल के प्रखर विरोधी कहे जाते हैं। (आभार – समय की चर्चा)