महेंद्र पाण्डेय

अत्यधिक कृत्रिम प्रकाश भी एक तरह का प्रदूषण हैI इससे रात में आसमान में तारे दिखने बंद हो जाते हैं, उपग्रहों से पृथ्वी के चित्र लेने में बाधा आती है और बिजली की बर्बादी तो होती ही हैI वैज्ञानिक लम्बे समय से ये दावे कर रहे हैं, लेकिन एक ताजा शोध से पता चला है कि इस प्रकाश प्रदूषण का मानव के साथ ही जीव-जन्तुओं पर भी असर पड़ रहा है जो इतना गहरा है कि अब प्रकाश प्रदूषण को भी जलवायु परिवर्तन, तापमान वृद्धि और प्रजातियों के विनाश जैसी समस्याओं के समकक्ष मानना चाहिए।

  पहले बिजली का उपयोग केवल घरों को रोशन करने के लिए किया जाता था। बाद में सड़कों, बाज़ारों, सार्वजनिक स्थलों, दफ्तरों, स्टेडियमों, बड़ी-बड़ी इमारतों, उद्योगों, ऐतिहासिक स्थलों, नदियों और समुद्र के तटों पर भी बिजली की रोशनी होने लगी। अब तो शहरों को रात में दिन जैसे प्रकाश में डुबोने की होड़ चल रही हैI इतना ही नहीं, प्रकाश की तीव्रता भी बढ़ती जा रही हैI इसीलिए जब हम सड़क, ट्रेन या विमान से यात्रा करते हैं तब आसमान में फ़ैली रोशनी से यह अनुमान लगा लेते हैं कि अब कोई शहर आने वाला हैI

  कहीं भी, आसमान में फ़ैलाने के लिए प्रकाश नहीं किया जाता, फिर भी यह वायुमंडल में फैलता है। यही प्रकाश प्रदूषण है। प्रकाश के प्रभाव के उदाहरण भी हमारे सामने हैंI बारिश के मौसम में कीट-पतंगे प्रकाश के चारों तरफ उड़ते हैं और सुबह तक जलते बल्ब की गर्मी से मर जाते हैंI प्रकाश प्रदूषण के कारण कीटों की अनेक प्रजातियाँ विलुप्तीकरण के कगार पर हैं।

  मानव निर्मित प्रकाश का दायरा और तीव्रता प्रति वर्ष 2 प्रतिशत की दर से बढ़ रही हैI यूनिवर्सिटी ऑफ़ एक्सटर के वैज्ञानिकों के अध्ययन के अनुसार जलवायु परिवर्तन का जितना बड़ा असर दुनिया पर पड़ रहा है, वैसा ही व्यापक असर प्रकाश प्रदूषण का भी हैI इससे जन्तुओं और वनस्पतियों की अनेक प्रजातियों में हॉर्मोन के स्तर पर परिवर्तन आ रहे हैं। उनका प्रजनन चक्र अनियमित होता जा रहा है, उनका व्यवहार बदल रहा है और वे अब अपेक्षाकृत आसानी से शिकारियों की चपेट में आ रहे हैं। रोशनी में जिस तरह हमें सोने में दिक्कत आती है, वही समस्या पूरे जीव-जगत के सामने है। पृथ्वी के सभी जीवों के लिए दिन का और रात के अँधेरे का भारी महत्व है। पूरे जीव-जगत का विकास इसी आधार पर हुआ है।

  यह अध्ययन जर्नल ऑफ़ नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन के ताजा अंक में प्रकाशित किया गया हैI इस अध्ययन का आधार जीव-जगत पर प्रकाश प्रदूषण के प्रभावों से सम्बंधित दुनिया भर में प्रकाशित 126 शोधपत्र हैंI इसके अनुसार प्रकाश प्रदूषण का सबसे गहरा प्रभाव कीटों पर पड़ रहा हैI यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, क्योंकि दुनिया भर में जीव-जगत में विलुप्तीकरण का सबसे अधिक खतरा कीट-पतंगों को ही हैI बहुत सारे कीट केवल रात में उड़ते हैं और अपनी गतिविधियों के दौरान अनेक फूलों का परागण करते हैंI जब ये कीट परागण नहीं करते तो फिर फसलों का उत्पादन या फिर वनस्पतियों का विस्तार प्रभावित होता है। साथ ही, अनेक कीट सड़कों के किनारे की रोशनी के चारों-तरफ रात भर उड़ते हुए बल्ब की गर्मी में झुलस कर मर जाते हैं।

  रात भर तेज प्रकाश झेलने पर वनस्पतियों में फूल खिलने और फल लगने का समय बदल जाता हैI लम्बी दूरी तय करने वाले प्रवासी पक्षियों पर भी प्रकाश प्रदूषण का व्यापक असर होता हैI रात में ये पक्षी शहरों की रोशनी से चकमा खाकर अपना रास्ता भटक जाते हैं, या फिर शहरों की ऊंची इमारतों से टकरा कर मर जाते हैं। समुद्री कछुए भी तट के रिसोर्ट के प्रकाश से आकर्षित होकर उसकी तरफ जाते हैं और फिर भूख-प्यास से मर जाते हैं या वन्यजीव तस्करों की गिरफ्त में आ जाते हैंI सभी जन्तुओं में रात में मेलाटोनिन नामक हार्मोन का उत्सर्जन होता है जो कि ज्यादा रोशनी से गड़बड़ा जाता हैI यह हार्मोन शरीर में निद्रा-चक्र को नियंत्रित करता हैI रात में अत्यधिक प्रकाश के कारण जंतुओं का व्यवहार भी बदलने लगता है। इसके प्रभाव से पक्षी सुबह कुछ जल्दी चहकने लगते हैं और रात में बाहर निकलने वाले चूहे या अन्य जानवर कम समय के लिए बाहर निकलते हैं।

  जून 2016 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार दुनिया की एक-तिहाई से अधिक आबादी अब रातों को आकाशगंगा नहीं देख पातीI अमेरिका की 80 प्रतिशत से अधिक और यूरोप की 60 प्रतिशत से अधिक आबादी ने आसमान में कभी आकाशगंगा नहीं देखी। इसका एकमात्र कारण प्रकाश प्रदूषण है, जिसके चलते अब रातों को बहुत से खगोलीय पिंड दिखना बंद हो चुके हैं। अनुमान है कि प्रकाश प्रदूषण के कारण कुल बिजली की खपत का लगभग 35 प्रतिशत बर्बाद हो रहा है, जबकि बिजली उत्पादन को जलवायु परिवर्तन का मुख्य जिम्मेदार माना जाता हैI प्रकाश प्रदूषण के कारण रात में कीटों द्वारा की जाने वाली परागण प्रक्रिया में लगभग 62 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। कोरल रीफ की कुछ प्रजातियों की प्रजनन प्रक्रिया के लिए चाँद की रोशनी अनिवार्य है, पर अब चाँद की रोशनी मानव निर्मित प्रकाश में दब जाती है, इसलिए इन प्रजातियों का प्रजनन प्रभावित हो रहा है।

  प्रकाश प्रदूषण के मुख्य रूप से तीन कारण हैं। प्रकाश के बिना ढके स्रोत, प्रकाश का अवांछित अतिक्रमण और शहरी सड़कों और इमारतों का प्रकाश। वायु प्रदूषण, खास कर पार्टिकुलेट मैटर की वायु में अधिक सांद्रता भी प्रकाश प्रदूषण को बढ़ाती है। कोहरे या धूमकोहरे की स्थिति में प्रकाश दूर तक फैलता नजर आता है जिससे प्रकाश प्रदूषण बढ़ता हैI जर्नल ऑफ़ नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन में प्रकाशित शोधपत्र के अनुसार प्रकाश प्रदूषण का असर पूरे जीव-जगत पर पड़ रहा है, इसमें सूक्ष्म जीव, रीढ़विहीन जंतु, रीढ़धारी, मनुष्य और वनस्पति सभी शामिल हैं। कुछ प्रजातियों में इस प्रदूषण का लाभकारी प्रभाव भी पड़ा हैI मसलन, कुछ वनस्पतियों में प्रकाश प्रदूषण से वृद्धि दर तेज हो गई है, और चमगादड़ों की कुछ प्रजातियों का दायरा बढ़ रहा हैI

  यूनिवर्सिटी ऑफ़ एक्सटर के एनवायर्नमेंटल सस्टेनेबिलिटी इंस्टिट्यूट के प्रोफ़ेसर केविन गास्तों की अगुवाई में यह अध्ययन किया गयाI इनके अनुसार प्रकाश प्रदूषण के भयानक और व्यापक प्रभावों को देखते हुए अब आवश्यक हो गया है कि इसे भी जलवायु परिवर्तन जैसी प्रमुखता दी जाए। आजकल सडकों और सार्वजनिक स्थलों पर जिस सफ़ेद प्रकाश वाले एलईडी लैम्पों का प्रचलन बढ़ा है, उनसे भले ही बिजली की बचत होती हो, पर वे जीव-जगत के लिए पुराने लैम्पों से अधिक खतरनाक हैंI सफ़ेद प्रकाश में सूर्य के प्रकाश की तरह अनेक वेवलेंग्थ की किरणों का समावेश रहता है इसलिये यह जीव-जगत को अधिक प्रभावित करता है। (आभार – समय की चर्चा )