नरेश वत्स
हरियाणा के राजनीतिक गलियारों में यह सवाल तैर रहा है कि बरोदा विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में जजपा के वोट भाजपा को ट्रांसफर हुए या नहीं। यह उपचुनाव किसानों के आंदोलन के कारण सत्ता पक्ष के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई बन चुका था। मगर कांग्रेस ने इस सीट पर फिर से कब्जा कर लिया है और अब भाजपा का कहना है कि जजपा के वोट उसके उम्मीदवार को नहीं मिले।
भाजपा के प्रत्याशी ओलपियन योगेश्वर दत्त को यहां से दोबारा हार का सामना करना पड़ा है। जननायक जनता पार्टी ने अपना खुला समर्थन भी योगेश्वर दत्त को दिया। उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने कई जनसभाएं भी उनके समर्थन में कीं। फिर भी वे हार गए।
हरियाणा की राजनीति हमेशा से जाट और गैर जाट के रूप में बंटी रहती है। बरोदा जाट बहुल क्षेत्र है। पिछले विधानसभा चुनाव में भी यहां कांगेस जीती थी और उसके विधायक की मृत्यु के के कारण उपचुनाव हुआ। भाजपा ने यहां अपने सभी जाट नेताओं को झोंक दिया। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ओपी धनखड़ और कृषि मंत्री जेपी दलाल ने चुनाव प्रचार की कमान संभाली। उन्होंने वोटरों को नये कृषि कानूनों से होने वाले फायदे भी गिनाए। ये तक कहा कि योगेश्वर दत्त ने हरियाणा ही नहीं पूरे देश का नाम रोशन किया है और बरोदा की समस्याओं को वे प्रधानमंत्री कार्यालय तक ले जा सकते हैं। लेकिन मतदाताओं पर इसका असर नहीं हुआ।
विधानसभा चुनावों में दुष्यंत चौटाला एक प्रभावी नेता बन कर उभरे थे। लेकिन बरोदा उपचुनाव में उनका असर भी नहीं दिखा। असल में यह दुष्यंत की ही हार है, क्योंकि वे जाटों में अपने प्रभाव का दावा करते नहीं थकते।
उधर कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा का राजनीतिक कद मजबूत हुआ है। पार्टी के भीतर और बाहर वे यह संदेश देने में सफल रहे हैं कि जाट बहुल सीटों पर उनकी आवाज सुनी जाती है। हुड्डा ने अपने बेटे दीपेन्द्र हु्डडा के साथ इस चुनाव की कमान संभाली। इस जीत को हुड्डा की जीत ही माना जा रहा है। भूपेन्द्र सिंह हुड्डा की अपनी परंपरागत सीट किलोई भी बरोदा से सटी हुई है। इसलिए भी यहां उनका प्रभाव ज्यादा है।
असल में भाजपा को यह उपचुनाव जजपा से गठबंधन के सहारे जीतने की उम्मीद थी, लेकिन अब उसे लगता है कि जजपा के वोट उसे नहीं मिले। मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने स्वयं यह बात स्वीकार भी ली। उनका कहना था कि जजपा का पूरा वोट मिलता तो हमारे प्रत्याशी को कम से कम 70 हजार की बढ़त मिलती। उन्होंने यह भी कहा कि इस बार हमारी पार्टी को यहां 50 हजार से अधिक वोट मिले हैं जबकि यह कांग्रेस की परंपरागत सीट थी।
जवाब में दुष्यंत चौटाला ने कहा कि किसका वोट कहां गया, यह तो सिर्फ मतदाता जानता है। कई गांवों में जहां पिछली बार कांग्रेस जीती थी, वहां इस बार गठबंधन प्रत्याशी योगेश्वर दत्त को वोट मिले हैं। उन्होंने सवाल किया कि क्या यह माना जाए कि कांग्रेस का वोट ट्रांसफर हो गया। उनके मुताबिक गठबंधन की दोनों पार्टियों की मेहनत का नतीजा है कि योगेश्वर को पिछली बार के 36 हजार की जगह इस बार 51 हजार वोट मिले।
फिर भी इतना तो साफ है कि नए कृषि कानूनों के विरोध का असर भी इस उपचुनाव पर पड़ा। किसान नेता गुरनाम सिंह कहते हैं कि हरियाणा के किसान कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं और हम आगे भी अपने हक के लिए लड़ते रहेंगे। (आभार – समय की चर्चा )
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