महेंद्र पाण्डेय

नई दिल्ली। अफ्रीकी देश इथियोपिया इन दिनों भयानक गृह युद्ध की चपेट में है। वहां हजारों लोग मारे जा चुके हैं और लगभग 40000 लोग देश छोड़ कर पड़ोसी देश सूडान में शरणार्थी बन चुके हैं। इथियोपिया के इतिहास के सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री 44 वर्षीय अबीय अहमद को अब तक दुनिया शांति का मसीहा समझती थी। उन्हें वर्ष 2019 का नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था। लेकिन अब उनका निरंकुश चेहरा सामने आ रहा है।

अबीय अहमद को यह पुरस्कार शांति और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के निरंतर प्रयासों के लिए दिया गया था। वर्षों से चले आ रहे इथियोपिया-एरिट्रिया सीमा विवाद को सुलझाने में उनकी भूमिका की पूरी दुनिया में प्रशंसा की गयी थी। उन्होंने इथियोपिया के राजनैतिक और सामाजिक जीवन में महिलाओं को आगे बढ़ाने और एक बदहाल अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का भरपूर प्रयास किया था। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने केन्या के सोमालिया के साथ रिश्ते और सूडान और दक्षिणी सूडान के आपसी रिश्ते सुधारने में सराहनीय पहल की थी। पिछले वर्ष के नोबेल पुरस्कार विजेताओं में वे एकमात्र अश्वेत और अकेले अफ्रीकी थे।

अफ्रीकी देशों के अनेक विशेषज्ञ मानते हैं कि अबीय अहमद का वास्तविक चेहरा निरंकुश शासक का ही है। अब तक उन्होंने विकास और सामाजिक और आर्थिक बदलाव का मुखौटा पहन रखा था। दरअसल, पिछले वर्ष नोबेल पुरस्कार की घोषणा के बाद से ही उनका रवैया बदलने लगा था। इथियोपिया का उत्तरी क्षेत्र टिग्रे गृह युद्ध की चपेट में है। इस क्षेत्र में टिग्रे पीपल्स लिबरेशन फ्रंट का कब्ज़ा है, और यह फ्रंट देश की सरकार में भागीदार नहीं है। इस साल की शुरूआत से ही यहां प्रधानमंत्री और उनके सहयोगी दलों के विरुद्ध प्रदर्शन किये जा रहे थे। 2018 में अबीय अहमद के प्रधानमंत्री बनने के पहले तक टिग्रे क्षेत्र के लोगों का पिछले 30 सालों तक देश की सरकार और सरकारी पदों पर दबदबा था, पर अब प्रधानमंत्री पर इस क्षेत्र की उपेक्षा का आरोप है। आरोप यह भी है कि प्रधानमंत्री टिग्रे के लोगों को राजनीति में नहीं आने दे रहे और उनसे नौकरियाँ छीन रहे हैंI

इस साल अगस्त के बाद से इथियोपिया सरकार और टिग्रे पीपल्स लिबरेशन फ्रंट के सम्बन्ध और खराब हुए हैं। असल में अगस्त में वहां चुनाव होने वाले थे जिन्हें इथियोपिया सरकार ने कोरोना का हवाला देकर अनिश्चित काल के लिए टाल दिया। पर टिग्रे क्षेत्र में स्थानीय प्रशासन ने अपने बलबूते पर चुनाव करा लिया। इसके बाद वहां की सरकार को राष्ट्रीय सरकार यानी अबीय अहमद मान्यता नहीं दे रहे हैं। बदले में अब स्थानीय प्रशासन राष्ट्रीय सरकार को मान्यता देने से इनकार कर रहा है।

पिछले दिनों पहले प्रधानमंत्री अबीय अहमद ने पीपल्स लिबरेशन फ्रंट पर टिग्रे क्षेत्र के एक सैनिक कैम्प पर हमले का आरोप लगाया और बिना किसी चेतावनी या छानबीन के ही 4 नवम्बर को उस इलाके में अपने ही नागरिकों पर हवाई हमले करा दिए। इसके बाद इस क्षेत्र में भयानक हिंसा भड़क उठी। तब से सेना और पीपल्स लिबरेशन फ्रंट के छापामारों के बीच लगातार युद्ध चल रहा है। इसका खामियाजा देश के सामान्य नागरिक भुगत रहे हैं। पड़ोसी देश सूडान ने लगभग 21000 शरणार्थियों का अंदाजा लगा कर अपने यहाँ इंतजाम किए थे, पर अभी तक 40000 शरणार्थी वहां पहुँच चुके हैंI संयुक्त राष्ट्र का आकलन है कि इस क्षेत्र में हिंसा चलती रहेगी, और दो लाख से अधिक शरणार्थी सूडान पहुँच सकते हैं।

इथियोपिया सरकार लगातार दावा कर रही है कि विद्रोहियों को ठिकाने लगाया जा चुका है और टिग्रे क्षेत्र में सेना का नियंत्रण है। पर संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक वहां भयानक युद्ध चल रहा है जिसकी खबर इसलिए नहीं आ रही कि वहां पत्रकारों के जाने पर प्रतिबन्ध है और संचार के सभी माध्यम खत्म कर दिए गए हैं। यह युद्ध इसलिए भी लम्बा चल सकता है कि पीपल्स लिबरेशन फ्रंट के सैनिक अब पहाड़ियों के पीछे से गुरिल्ला युद्ध कर रहे हैं और सेना किसी भी तरीके से अपना नियंत्रण नहीं बना पा रही। इस बीच पड़ोसी देश एरिट्रिया ने इथियोपिया की सरकार का समर्थन करते हुए अपनी सेना को मदद के लिए टिग्रे क्षेत्र में उतार दिया। इसके बाद पीपल्स लिबरेशन फ्रंट के सैनिकों ने एरिट्रिया की सीमा के भीतर राकेटों से हमले किये हैं।

नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित प्रधानमंत्री अबीय अहमद ने अपने शांत पड़े देश को अचानक भयानक गृह युद्ध की तरफ धकेल दिया है जिसके गंभीर अंतर्राष्ट्रीय परिणाम हो सकते हैं। कई देश इसकी चपेट में आ चुके हैं। एरिट्रिया तो सीधे तौर पर इथियोपिया सरकार की मदद कर रहा है जबकि शरणार्थी सूडान पहुँच रहे हैं। स्थिति ऐसी ही बनी रही तो कुछ सप्ताह बाद इस पूरे क्षेत्र में भयानक युद्ध हो सकता है और फिर इथियोपिया अपने पुराने जर्जर और कमजोर हालात में पहुँच जाएगा। ऐसे में इथियोपिया की तुलना लीबिया से की जा रही हैI

अपुष्ट खबरों के अनुसार विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुखिया तेद्रोस अधनोम घेब्रेयेसुस का नाम भी इस गृहयुद्ध से जुड़ गया है। तेद्रोस मूल रूप से टिग्रे क्षेत्र के निवासी हैं और टिग्रे पीपल्स लिबरेशन फ्रंट के वरिष्ठ व सक्रिय सदस्य हैंI इथियोपिया के सेना प्रमुख जनरल बेर्हनु जुला ने राष्ट्रीय टेलीविज़न पर तेद्रोस पर गंभीर आरोप लगाए हैं। तेद्रोस पर आरोप है कि वे पीपल्स लिबरेशन फ्रंट की मदद कर रहे हैं, उन्हें हथियार मुहैया करा रहे हैं और अपने पद का उपयोग कर उनके लिए अंतर्राष्ट्रीय सहानुभूति बटोर रहे हैं। तेद्रोस ने इन आरोपों का खंडन किया है और कहा है कि वे केवल विश्व शान्ति के लिए काम कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री अबीय अहमद के 2018 में सत्ता में आने से पहले 30 वर्षों तक जितनी भी सरकारें रहीं, सबमें केन्द्रीय भूमिका में टिग्रे के नेता रहे थे। विश्व स्वास्थ्य संगठन के 2017 से मुखिया तेद्रोस इस पद पर पहुँचने वाले पहले अफ्रीकी हैं। इससे पहले वे 2005 से 2012 तक लगातार विभिन्न सरकारों में इथियोपिया के स्वास्थ्य मंत्री और फिर 2016 तक विदेश मंत्री रह चुके हैं। कोविड19 के दुनिया भर में फ़ैलने के बाद तेद्रोस एक जानामाना नाम हो गए। अमेरिका, ब्राज़ील, साउथ अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और कुछ यूरोपीय देशों की सरकारों ने उनकी लगातार आलोचना भी की है। अमेरिका ने तो विश्व स्वास्थ्य संगठन से खुद को अलग भी कर लिया है। तेद्रोस पर लगातार आरोप लगे कि वे वायरस की उत्पत्ति और प्रसार के बारे में केवल वही बता रहे हैं जो चीन कह रहा है।

इथियोपिया के गृहयुद्ध से इतना तो साफ है कि हर व्यक्ति जिसे नोबेल शांति पुरस्कार दिया जाता है, जरूरी नहीं कि वह केवल शांति के लिए ही काम करे। दूसरी बात यह कि अब केवल राष्ट्र प्रमुखों के ही अपने एजेंडा नहीं होते, बल्कि संयुक्त राष्ट्र संघ में ऊंचे पदों पर बैठे लोग भी अपना एजेंडा साधते हैं। (आभार – समय की चर्चा )