नरेश वत्स

नई दिल्ली। केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली के बॉडरों पर आ जमे आंदोलनकारी किसानों ने हरियाणा में भाजपा की मनोहर लाल खट्टर सरकार के लिए चुनौती खड़ी कर दी है। एक निर्दलीय विधायक ने खट्टर सरकार से समर्थन वापस ले लिया है और सरकार में शामिल जननायक जनता पार्टी भी खुल कर किसानों का पक्ष ले रही है। सबसे बड़ी मुश्किल यह कि भाजपा के अपने लोग भी किसानों के समर्थन में बोलने लगे हैं।

पहले हरियाणा सरकार ऐसा दिखावा करती रही कि यह आंदोलन तो पंजाब के किसानों का है और हरियाणा से इसका कोई मतलब नहीं। यहां तक कि जब किसानों पर लाठीचार्ज करने और आंसू गैस छोड़ने को लेकर हरियाणा पुलिस की आलोचना हो रही थी, तब भी मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने दावा किया था कि पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के कार्यालय के भड़काने पर पंजाब के किसान विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, जबकि हरियाणा के किसान इससे दूर हैं।

लेकिन धीरे–धीरे स्थिति बिगड़ती और बदलती गई और अब खुद भाजपा के सांसदों व विधायकों पर किसान आंदोलन का दबाव बढ़ गया है। ताजा स्थितियों में निर्दलीय विधायक सोमबीर सांगवान ने खट्टर सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। किसानों के प्रति अपना समर्थन जताते हुए सांगवान ने राज्य के लाइवस्टॉक डेवलपमेंट बोर्ड के चेयरमैन पद से इस्तीफा दे दिया। यह पद राज्यमंत्री के समकक्ष था। पद छोड़ते हुए उन्होंने केंद्र सरकार से किसानों की मांगें मानने की अपील भी की। एक अन्य निर्दलीय विधायक महेंद्र कुंडू कुछ महीने पहले ही खट्टर सरकार से समर्थन वापस ले चुके थे। ध्यान रहे, मनोहर लाल खट्टर की सरकार दस विधायकों वाली जजपा के साथ गठबंधन और सात निर्दलीय विधायकों के समर्थन से बनी थी जिनमें से दो निर्दलीय विधायक अलग हो चुके हैं।

सबसे बड़ी बात यह कि गठबंधन की सहयोगी जजपा ने भी किसानों के हक में आवाज उठा दी है। उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला पहले तो दावा करते रहे कि केंद्रीय कृषि कानून किसानों के हक में हैं। लेकिन अब उनकी पार्टी ने भी केंद्र से मांग की है कि नये कृषि कानून में एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य को शामिल किया जाए। दुष्यंत चौटाला के पिता और जजपा के वरिष्ठ नेता अजय चौटाला ने सवाल किया है कि एमएसपी को नये कानून में शामिल करने में आखिर आपत्ति क्या है?

अजय चौटाला ने कहा कि उनकी पार्टी किसानों के आंदोलन पर नज़र रखे हुए है। उन्होंने यह भी कहा कि आंदोलनकारियों और केन्द्र सरकार के बीच हो रही बातचीत के नतीजे के बाद ही उनकी पार्टी अपनी अगली रणनीति तय करेगी। उनका कहना था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर किसानों को उनकी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की बात कई बार कह चुके हैं तो फिर एमएसपी को कानून में जोड़ने में देरी क्यों हो रही है। हम इसका जल्द समाधान चाहते हैं।

हालत यह है कि भाजपा के अपने एक सांसद ने भी किसानों की मांगों का समर्थन कर दिया है। भिवानी-महेंद्रगढ़ के सांसद धर्मबीर सिंह का कहना है कि किसानों की मांगें जायज हैं। उन्होंने किसानों के कांग्रेसी या खालिस्तानी होने के अपनी ही पार्टी के आरोपों को गलत बताते हुए कहा कि किसान सबसे पहले किसान है और सरकार को उसकी बात सुननी चाहिए।

उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला फिलहाल चुप्पी साधे हुए हैं। मगर अजय चौटाला का बयान बताता है कि अब दुष्यंत भी दबाव में हैं। हरियाणा के राजनैतिक हलकों में सभी को दुष्यंत के कुछ बोलने का इंतजार है। अकाली नेता हरसिमरत कौर ने कृषि सुधार कानूनों के विरोध में जब केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया था तब भी अकाली दल ने दुष्यंत चौटाला को भाजपा का साथ छोड़ने को कहा था। इसी तरह सुखबीर बादल ने जब एनडीए छोड़ने की घोषणा की तब भी यह मांग उठी थी कि किसानों के मुद्दे पर दुष्यंत चौटाला को खट्टर सरकार से समर्थन वापस ले लेना चाहिए। फिलहाल जजपा खट्टर सरकार में रहते हुए भी किसानों की मांगों का समर्थन कर रही है। मगर यह स्थिति ज्यादा देर नहीं चल सकती। (आभार – समय की चर्चा )