महेंद्र पाण्डेय

नई दिल्ली। दुनिया भर के वैज्ञानिक समय-समय पर बताते रहे हैं कि पृथ्वी पर मानव की छाप किसी भी जीव-जंतु या वनस्पति से अधिक हो गई है, इसलिए इसे मानव दौर कहना उचित होगा। इस दौर में वायुमंडल में मानव की गतिविधियों के कारण जो ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता है, वैसी सांद्रता पिछले 30 से 50 लाख वर्षों में नहीं थी। मनुष्यों की रिहाइश और खेती से पृथ्वी का 70 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र घिर चुका है। हमारे कारण अनेक प्रजातियाँ तेजी से विलुप्त हो रही हैंI अब पता चला है कि पृथ्वी पर मानव निर्मित वस्तुओं का भार सभी प्राकृतिक संसाधनों, वनस्पतियों और जन्तुओं से अधिक हो गया है। दुनिया में अब तक उत्पादित प्लास्टिक का भार ही जल-थल के सभी जीवों के सम्मिलित भार से अधिक है।

संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्ड मेटेरियोलॉजिकल आर्गनाइजेशन के ग्रीनहाउस गैसों से सम्बंधित नवीनतम बुलेटिन में बताया गया है कि कोविड-19 के कारण दुनिया में अनेक गतिविधियां रुकने के बाद भी इस वर्ष ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी हुई है। इस सितम्बर में वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की औसत सांद्रता लगभग 411 पीपीएम रही, जबकि पिछले साल इसी महीने इसकी सांद्रता 408 पीपीएम थी। किसी भी एक वर्ष के दौरान यह सबसे बड़ी वृद्धि है और यह तब है जब इस साल दुनिया भर में लॉकडाउन के कारण उत्सर्जन में 4.2 से 7.4 प्रतिशत के बीच कमी आंकी गई।

पहली बार वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता 410 पीपीएम के पार 2015 में पहुँची थी। इससे पहले ऐसी स्थिति 30 से 50 लाख वर्ष पहले आई थी, तब औसत तापमान 2 से 3 डिग्री अधिक था और सागर तल 10 से 20 मीटर अधिक था। मगर अब जो हो रहा है वह पहले से अधिक विनाशकारी होगा क्योंकि 30 से 50 लाख वर्ष पहले पृथ्वी पर लगभग आठ अरब लोग नहीं थे। औद्योगिक युग के पहले यानी सन् 1750 की तुलना में तब कार्बन डाइऑक्साइड की वायुमंडल में सांद्रता 50 प्रतिशत कम थी।

अब तक लोग यह समझते रहे कि पृथ्वी की क्षमता अनंत है और मनुष्य कितनी भी कोशिश कर ले, इसकी बराबरी नहीं कर सकता, पर अब यह धारणा बिलकुल गलत साबित हो रही है। कंक्रीट, धातुओं, प्लास्टिक, ईंटों और एस्फाल्ट का लगातार बढ़ता इस्तेमाल पृथ्वी पर मानव का बोझ बढ़ाता जा रहा है। अनुमान है कि दुनिया में एक सप्ताह में जितने भी पदार्थों का उत्पादन किया जाता है, उनका भार पृथ्वी पर फैली पूरी मानव आबादी के भार से अधिक होता है। पृथ्वी पर हालांकि जितना बायोमास है, यानी जितना भी जीवित वस्तुओं का वजन है, उसका महज 0.01 प्रतिशत मानवों का कुल वजन है।

इस नए अध्ययन को प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका ‘नेचर’ के दिसम्बर अंक में प्रकाशित किया गया है। इस अध्ययन को इजराइल के विजमैन इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइंस के वैज्ञानिकों ने किया है। अध्ययन के प्रमुख वैज्ञानिक रों मिले के अनुसार पिछली सदी में पृथ्वी पर मनुष्य की छाप तेजी से बढ़ी और यह प्रभाव हर बीस साल में दोगुना हो जाता है। उनके दल ने मानव निर्मित उत्पादों के कुल वजन के साथ पृथ्वी पर कुल जीवित वनस्पतियों और जीवों के सम्मिलित वजन की तुलना सन् 1900 से लेकर अब तक के दौर की अलग-अलग की हैI सन् 1990 से वनस्पतियों के क्षेत्र का आंकलन उपग्रह के चित्रों से किया जाने लगा था। इस अध्ययन में इन्हीं आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया। अनुमान है कि इस अध्ययन में दुनिया के कुल बायोमास के 90 प्रतिशत से अधिक को शामिल किया गया है। 20वीं सदी के आरम्भ में मानव निर्मित उत्पादों, जिनमें सभी परिवहन माध्यम, सभी मशीनें, सभी इमारतें और पूरा इन्फ्रास्ट्रक्चर शामिल है, का कुल वजन पृथ्वी पर मौजूद सभी प्रकार के जीवन के सम्मिलित वजन का महज तीन प्रतिशत था। पर 2020 तक मानव निर्मित उत्पादों का वजन एक टेरा टन से अधिक हो चुका है, जो पृथ्वी पर फैले सभी प्रकार के जीवन के सम्मिलित शुष्क वजन से ज्यादा है। सम्मिलित शुष्क वजन से तात्पर्य है कि शरीर के पानी का भार इसमें शामिल नहीं किया गया। यदि मानव निर्मित वस्तुओं का उत्पादन इसी तरह बढ़ता रहा तो वैज्ञानिकों के अनुसार वर्ष 2037 तक उनका वजन पानी समेत बायोमास से भी अधिक हो जाएगा। फिलहाल दुनिया भर के बायोमास का शुष्क वजन लगभग 1100 अरब टन है।

वैज्ञानिक लगातार बताते रहे हैं कि पिछले कुछ वर्षों से अधिकतर जीव खतरे में हैं और मनुष्य के प्रभाव के कारण इनकी संख्या घट रही है। जाहिर है, पृथ्वी पर जीवित बायोमास का वजन कम होता जा रहा है तो दूसरी तरफ इमारतें बनाने और इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में निर्बाध वृद्धि हो रही है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद और 1973 के पेट्रोलियम पदार्थों की भयानक किल्लत के बीच दुनिया में कंक्रीट और एस्फाल्ट का उपयोग कई गुना बढ़ गया था। इसी दौर में दुनिया में इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं और बड़े भवनों का जाल बिछना शुरू हुआ। 1950 के दशक में ईंट की बजाय कंक्रीट के इस्तेमाल और 1960 के दशक से सड़क निर्माण में एस्फाल्ट के अंधाधुंध उपयोग ने मानव निर्मित चीजों का वजन तेजी से बढ़ाया। इससे पहले जब दुनिया में व्यापक तौर पर खेती का चलन बढ़ा तब पृथ्वी के कुल बायोमास का वजन आधा रहा गया था, क्योंकि तब बड़े पैमाने पर जंगलों को काटा गया और पेड़ों का वजन कृषि फसलों की तुलना में बहुत अधिक होता है।

इस अध्ययन के अनुसार द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद मानव निर्मित उत्पादों का वजन पांच प्रतिशत प्रतिवर्ष की औसत दर से बढ़ रहा है, पर युद्ध और आर्थिक मंदी के दौर में यह वृद्धि कम हो जाती है। आर्थिक मंदी के सबसे बड़े दौर, जिसे ग्रेट डिप्रैशन के नाम से जाना जाता है और 1973 के पेट्रोलियम संकट के समय मानव की गतिविधियों पर लगाम लगी थी और इसका असर उत्पादन पर भी पड़ा था। लेकिन वर्ष 1900 के बाद से पृथ्वी के बायोमास में लगातार कमी आ रही है, जबकि मानव निर्मित उत्पादन हाल के वर्षों में प्रतिवर्ष 30 गीगाटन की दर से बढ़ रहा है। इसके बढ़ने की यदि यही रफ्तार रही तो वर्ष 2040 तक मानव निर्मित उत्पादों का वजन तीन टेराटन से भी अधिक हो जाएगा। यह मानव जाति के भविष्य के लिए अच्छी खबर नहीं है। (आभार – समय की चर्चा)