संसद की प्राक्कलन समिति का कहना है कि उसने सरकार को बताया था कि देश में विशेषज्ञ डाक्टरों का भारी कमी है, फिर भी इस बारे में स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोई अध्ययन नहीं करवाया। समित की ताजा रिपोर्ट में याद दिलाया गया है कि देश को कई लाख विशेषज्ञ डाक्टर और चाहिए।

रिपोर्ट के मुताबिक ऑर्गन ट्रांसप्लांट, हार्ट या ब्रेन की सर्जरी और अन्य गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए लोगों को बड़े शहरों की ओर भागना पड़ता है। लेकिन इन बड़े अस्पतालों में मरीजों की इतनी भीड़ होती है कि सर्जरी के लिए बहुत समय बाद की तारीख मिलती है, क्योंकि देश में विशेषज्ञ डाक्टरों की भारी कमी है। समिति ने कहा कि एक अनुमान के मुताबिक सिर्फ छह बड़े विभागों में ही तीन लाख से ज्यादा विशेषज्ञ डॉक्टर और चाहिए। उसन कहा कि ग्रामीण इलाकों की स्थिति तो और भी खराब है।

प्राक्कलन समिति की हाल में दी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि बताने के बाद भी केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने इस दिशा में कोई अध्ययन नहीं कराया कि देश में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कितनी कमी है। उसके मुताबिक विशेषज्ञ डाक्टरों की कमी को दूर करने और इस मामले में ग्रामीण इलाकों की जरूरतों का पता लगाने के मकसद से महाराष्ट्र मॉडल का अध्ययन करने के लिए कहा गया था। लेकिन इस पर अभी तक स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से कोई जवाब नहीं दिया गया है।

रिपोर्ट कहती है कि देश के प्रमुख विशेषज्ञों ने समिति के सामने विशेषज्ञ डॉक्टरों को लेकर जो स्थिति बयान की वह चौंकाने वाली है। उन्होंने बताया कि कार्डियोलॉजी में 8800, चेस्ट मेडिसिन में 23 हजार, न्यूरोलॉजी में 5200, पीडियाट्रिक में 2.30 लाख, एंडोक्रिनोलॉजी में 27900 और नेफ्रोलॉजी में 40 हजार से ज्यादा विशेषज्ञ डाक्टरों की कमी है। समिति ने पाया कि इतने बड़े स्तर पर विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी होने के कारण पिछले पांच साल में 3270 विशेषज्ञ और 6640 जनरल ड्यूटी मेडिकल ऑफिसरों की ही नई नियुक्ति हो पाई। दिल्ली में इस दौरान सिर्फ दो नए विशेषज्ञों की नियुक्ति हुई।

समिति ने विशेषज्ञ डॉक्टरों की संख्या बढ़ाने के लिए मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसरों, एसोसिएट प्रोफेसरों और छात्रों के अनुपात में सुधार की सिफारिश भी की है। साथ ही उसने कहा है कि मेडिकल के छात्रों के लिए ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में इंटर्नशिप अनिवार्य की जाए।

देश में पांच हजार से ज्यादा कम्युनिटी हेल्थ सेंटर हैं, लेकिन इनमें 80 फीसदी सीटें खाली पड़ी हैं। लेकिन महाराष्ट्र में स्थिति अलग है। वहां एमबीबीएस डॉक्टरों को गाइनोकोलॉजी, एनेस्थीसिया, पीडियाट्रिक्स और रेडियोलॉजी में डिप्लोमा दिया जाता है। इन तीनों विभागों में डॉक्टरों की कमी दूर कर मां और शिशु मृत्यु दर में खासी कमी लाई जा सकती है।

महाराष्ट्र में इस व्यवस्था के तहत एमबीबीएस डॉक्टर सरकारी अस्पताल में दो साल तक सीनियरों की देखरेख में काम करते हैं। इसके बाद उन्हें विशेषज्ञ डॉक्टर की मान्यता मिल जाती है, लेकिन शर्त यह होती है कि वे केवल महाराष्ट्र के सरकारी अस्पतालों में ही काम कर सकते हैं।