महेंद्र पाण्डेय

न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क

जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि से संबंधित सबूत वैज्ञानिक लगातार दुनिया के सामने ला रहे हैं। फिर भी, हर जगह ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ रहा है जबकि दुनिया के तमाम देश इसे नियंत्रित करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जता रहे हैं। यह विरोधाभास हमारे लिए खतरा बढ़ा रहा है।

हाल में ही यूरोपियन यूनियन की कूपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विसेज के जारी किए आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2020 औद्योगिक युग आरम्भ होने के बाद, यानी सन् 1750 से 1800 के बाद का सबसे गर्म वर्ष रहा। दरअसल, वर्ष 2020 और वर्ष 2016 में पृथ्वी का औसत तापमान समान पाया गया, पर 2016 में दुनिया एलनीनो की चपेट में थी जो पृथ्वी का तापमान प्राकृतिक तौर पर बढ़ाता है। वर्ष 2020 में ऐसा कुछ नहीं था, इसीलिए समान तापमान के बावजूद 2020 को सबसे गर्म वर्ष माना गया हैI

बहरहाल, पिछले छह वर्ष आधुनिक दौर के सबसे गर्म साल रहे हैं और पिछला दशक सबसे गर्म दशक रहा है। वर्ष 2020 के दौरान पृथ्वी का औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में 1.25 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। पेरिस समझौते में इस शताब्दी के अंत तक तापमान बढ़ोत्तरी को पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं बढ़ने देने का लक्ष्य रखा गया है, लेकिन इस तापमान के नजदीक तो दुनिया 2020 में ही पहुँच गई।

वर्ष 2020 को दुनिया के सबसे ठंडे क्षेत्र उत्तरी ध्रुव और साइबेरिया में भी गर्मी के प्रभाव के लिए याद किया जाएगा। इन क्षेत्रों के जंगलों में आग लगाने की घटनाएं भी इस साल रिकॉर्ड स्तर तक पहुँच गईं। उत्तरी ध्रुव और साइबेरिया का औसत तापमान 2020 में इस क्षेत्र के दीर्घकालीन औसत तापमान से 3 डिग्री सेल्सियस से अधिक रहा, और कुछ क्षेत्रों में तो यह 6 डिग्री सेल्सियस से भी अधिक था। उत्तरी ध्रुव पर जमी बर्फ भी अब तक के सबसे निचले स्तर तक पहुँच गई। तापमान वृद्धि के असर से खतरनाक चक्रवातों की संख्या में भी बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। वर्ष 2020 के दौरान अटलांटिक के क्षेत्र में 29 चक्रवात दर्ज किये गए। यूरोप के लिए तो यह सबसे गर्म वर्ष था जहां औसत तापमान सामान्य की तुलना में 1.6 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा।

संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्ड मेटेरिओलॉजिकल आर्गनाइजेशन के ग्रीनहाउस गैसों से संबंधित बुलेटिन में बताया गया है कि कोविड-19 के कारण दुनिया भर में सभी गतिविधियां थम जाने के बाद भी 2020 में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी दर्ज की गई। पिछले वर्ष सितम्बर के महीने में वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की औसत सांद्रता लगभग 411 पीपीएम रही, जबकि सितम्बर 2019 में इसकी सांद्रता 408 पीपीएम थी। किसी भी एक वर्ष के दौरान यह सबसे बड़ी वृद्धि है और यह भी तब है जबकि पिछले वर्ष दुनिया भर में लॉकडाउन के कारण उत्सर्जन में 4.2 से 7.4 प्रतिशत के बीच कमी आंकी गई है। ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में इस बेतहाशा बढ़ोत्तरी के बीच वैज्ञानिकों का आकलन है कि यदि तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रोकना है तो अगले दस वर्षों के भीतर इन गैसों के उत्सर्जन को आधा करना होगा।

यूनाइटेड किंगडम मेटेरियोलॉजिकल ऑफिस के अनुसार इस वर्ष यानी 2021 में कार्बन डाइऑक्साइड की वायुमंडल में सांद्रता पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में 50 प्रतिशत अधिक पहुँच जायेगीI पूर्व-औद्योगिक काल में कार्बन डाइऑक्साइड की वायुमंडल में सांद्रता 278 पीपीएम थी जो कि वर्ष 2021 में 417 पीपीएम तक पहुँच जायेगीI सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता को 25 प्रतिशत तक बढ़ने में लगभग 200 साल लगे, जबकि इसके बाद 50 प्रतिशत तक बढ़ने में महज 30 वर्ष लगे। पहली बार वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता 410 पीपीएम के पार वर्ष 2015 में पहुँची थी। इससे पहले ऐसी स्थिति 30 से 50 लाख वर्ष पहले आई थी, तब औसत तापमान 2 से 3 डिग्री अधिक था और सागर तल 10 से 20 मीटर ऊपर था। पर, इस दौर में जो हो रहा है वह पहले से अधिक विनाशकारी होगा क्योंकि 30 से 50 लाख वर्ष पहले पृथ्वी पर लगभग 8 अरब लोग नहीं थे। औद्योगिक युग के पहले यानी सन् 1750 की तुलना में इस दौर में कार्बन डाइऑक्साइड की वायुमंडल में सांद्रता 50 प्रतिशत कम थी।

वर्ष 1750 की तुलना में मीथेन की सांद्रता वायुमंडल में लगभग ढाई गुना बढ़ चुकी है, और यह गैस कुल तापमान बढ़ोत्तरी में से 17 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार है। नाइट्रस ऑक्साइड भी एक प्रमुख ग्रीनहाउस गैस है और इसकी सांद्रता वायुमंडल में 23 प्रतिशत बढ़ चुकी है। जाहिर है कि सभी ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता वायुमंडल में निर्बाध गति से बढ़ती जा रही है और इसके परिणाम भी सामने आ रहे हैं।

अमेरिका की मेटेरियोलॉजी सोसाइटी के बुलेटिन में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार दुनिया में तापमान का जब से रिकॉर्ड रखा जा रहा है, उसके बाद से पिछला दशक (2010-2019) सबसे गर्म रहा है। वर्ष 1980 के बाद से आने वाला हर दशक पिछले दशक से अधिक गर्म रहा है। इनमें हर दशक पिछले दशक की तुलना में 0.07 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म रहा, पर पिछले दशक में यह वृद्धि 0.39 डिग्री रही है। इसका अर्थ यह है कि समय के साथ-साथ तापमान बढ़ने की दर भी बढ़ रही है। इस शोधपत्र को दुनिया के 60 देशों के 520 वैज्ञानिकों ने तैयार किया है।

वर्ष 2014 से 2020 तक के छह वर्षों का पृथ्वी का औसत तापमान हमारे इतिहास का सबसे गर्म दौर घोषित किया जा चुका है। इस दौरान अमेरिका, यूरोप और भारत में तापमान के सभी पिछले रिकॉर्ड ध्वस्त हो गए। उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव पर सदियों से जमी बर्फ तेजी से पिघलती रही, बड़ी बाढ़ों और चक्रवातों की घटनाएँ बढ़ गयीं और प्रजातियों के विलुप्तीकरण की दर किसी भी दौर से अधिक हो गई। इस दौरान जंगलों में आग लगाने की दर ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, ग्रीस और फिलीपींस में अत्यधिक रही।

वर्ष 2020 तक पृथ्वी का औसत तापमान औद्योगिक काल से पहले के वर्षों की तुलना में 1.25 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ चुका है। पेन स्टेट यूनिवर्सिटी के जलवायु विशेषज्ञ माइकल मान के अनुसार यदि तापमान में बढ़ोत्तरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना है तो दुनिया में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को आधे से भी कम करना पड़ेगा, पर इसकी सम्भावना नजर नहीं आती। दूसरी तरफ, जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि के सारे प्रभाव स्पष्ट हैं। महासागरों का तापमान भी बढ़ रहा है जो 2019 में वर्ष 2016 के बाद सबसे अधिक रहा। पिछले 30 वर्षों के दौरान सागर तल में औसतन 8.64 सेंटीमीटर की बढ़ोत्तरी हो गई है। वर्ष 2019 में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन पिछले आठ लाख वर्षों में सर्वाधिक रहा। यह आकलन दोनों ध्रुवों पर जमी बर्फ के बीच उपलब्ध हवा के विश्लेषण से किया गया है। ऐसी ही स्थितियां बनी रहीं तो वर्ष 2050 तक तापमान में बढ़ोत्तरी 1.7 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जायेगी और पेरिस समझौते के तहत जिस 1.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी का लक्ष्य रखा गया था, वह धरा रह जाएगा। (आभार – समय की चर्चा)