सुशील कुमार सिंह

न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क

किसानों के विरोध के कारण हरियाणा में दोनों सत्ताधारी पार्टियां भाजपा और जननायक जनता पार्टी विचित्र स्थिति से गुजर रही हैं। केंद्रीय कृषि कानूनों का समर्थन करना उनकी मजबूरी है जबकि उनके ही अनेक विधायक उन पर किसानों की बात सुनने के लिए दबाव डाल रहे हैं। मंत्री तो अलग, इन पार्टियों के ज्यादातर विधायकों का भी कहीं आना-जाना दूभर हो गया है।

खुद मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर इस रविवार करनाल के कैमला गांव में नए कृषि कानूनों के कथित समर्थक किसानों के एक समारोह में जाने वाले थे, लेकिन नहीं पहुंच पाए। भारी पुलिस बंदोबस्त के बावजूद आंदोलनकारी किसान समारोह स्थल पर आ धमके। उन्होंने मंच और अन्य इंतजामों को ध्वस्त कर दिया। हेलीपैड तक खोद डाला जिससे मुख्यमंत्री के हेलीकॉप्टर को वापस लौट जाना पड़ा। इस घटना की जिम्मेदारी भारतीय किसान यूनियन के हरियाणा के नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने ली जिसके बाद चढूनी समेत नौ सौ लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई।

मुख्यमंत्री खट्टर करनाल से ही विधायक हैं और वहां सांसद भी भाजपा का ही है। यानी खट्टर अपने इलाके में भी भाषण देने नहीं जा सके। सरकारी बयान में दावा किया गया कि मौसम खराब होने के कारण हेलीकॉप्टर उतर नहीं सका, इसलिए समारोह रद्द कर दिया गया। लेकिन सैकड़ों लोगों के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर ने इस दावे की पोल खोल दी। उधर चढूनी ने कहा कि भाजपा ने किसान आंदोलन को तोड़ने के लिए 700 रैलियां करने की योजना बनाई थी। हम इन रैलियों का विरोध करते रहेंगे।

वैसे खट्टर और उनके उपमुख्यमंत्री यानी जजपा नेता दुष्यंत चौटाला भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व और केंद्र सरकार को कई बार बता चुके हैं कि उन्हें किन हालात का सामना करना पड़ रहा है। मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री दोनों इस हफ्ते दिल्ली आकर गृहमंत्री अमित शाह से मिले। उसके बाद दुष्यंत चौटाला प्रधानमंत्री से भी मिलने गए। साफ है कि वे अपनी बात ऊपर तक पहुंचा चुके हैं। मगर शायद उनकी स्थिति कोई समझना ही नहीं चाहता।

खट्टर सरकार किसान आंदोलन के भारी दबाव में है। कुछ ही दिन पहले राज्य में सात नगर निकायों के चुनाव में भाजपा को किसानों की नाराजगी का मतलब अच्छी तरह समझ में आ गया है। सत्ता में रहते हुए भी वह इनमें से दो ही जगह जीत हासिल कर सकी। वह भी शहरी इलाकों में। अगर चुनाव देहाती इलाकों में होता तो क्या होता? मगर अपनी पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के सामने खट्टर का कोई वश नहीं चल रहा।

दुष्यंत चौटाला का मामला तो और भी उलझा हुआ है। विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी भाजपा के खिलाफ लड़ी थी। त्रिशंकु विधानसभा के कारण उनके लिए सत्ता के दरवाजे खुल गए। लेकिन अब समस्या यह है कि उनकी राजनीति जाट वोटों पर आधारित है और राज्य के किसानों में जाट भरे पड़े हैं। खट्टर की तरह दुष्यंत भी शुरू से कह रहे हैं कि वे किसानों के साथ हैं और किसानों को एमएसपी मिलती रहेगी। मगर किसान केवल यह नहीं मांग रहे कि एमएसपी चलती रहे। वे तो उसे कानूनी शक्ल देने की मांग कर रहे हैं। यही नहीं, वे तीनों नए कृषि कानूनों की वापसी चाहते हैं।

हाल में ओम प्रकाश चौटाला के बेटे अभय चौटाला ने विधानसभा अध्यक्ष को अपना इस्तीफा भेजा जिसमें उन्होंने कहा कि अगर आगामी 26 जनवरी तक तीनों कृषि कानून वापस नहीं लिए जाते तो उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया जाए। अभय चौटाला अपनी पार्टी इनेलो के इकलौते विधायक हैं। यह वही पार्टी है जिससे अलग होकर अजय चौटाला और उनके बेटे दुष्यंत चौटाला ने जजपा बनाई थी। सब जानते हैं कि कोई विधायक इस तरह शर्तों के साथ इस्तीफा नहीं देता। फिर भी अभय चौटाला के इस कदम ने अजय और दुष्यंत पर दबाव बढ़ा दिया है।

मगर दूसरी पार्टी की बात क्या की जाए, खुद जजपा के विधायक दुष्यंत पर दबाव बनाए हुए हैं। राज्य के दस में से जिन सात निर्दलीय विधायकों ने मनोहर लाल खट्टर सरकार को समर्थन दिया था उनमें कम से कम तीन अब आंदोलनकारी किसानों के साथ खड़े दिखते हैं। बाकी में से कितने अभी भी सरकार को समर्थन देंगे, खुद खट्टर भी यह दावा नहीं कर सकते।