न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क

कोरोना को लेकर भारत में शुरू किए गए दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान की रफ़्तार अपेक्षा के अनुरूप नहीं है। 16 जनवरी को इसकी शुरूआत फ्रंटलाइन वर्करों से की गई। शुरूआती पांच दिनों में देश में 786842 लोगों को टीका लगाए जाने की खबर है जबकि प्रतिदिन तीन लाख लोगों को वैक्सीन देने का लक्ष्य रखा गया था।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्वीकार किया है कि जिन लोगों को टीका लगाया गया उनमें से कुछ लोगों की तबियत बिगड़ी, हालांकि कहीं से किसी बड़ी गड़बड़ी की सूचना नहीं है। वैसे भी इस तरह के रिएक्शन के आंकड़े बाद में जारी किए जाएंगे।

कम संख्या में टीका लगाए जाने के पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि अनेक लोग खुद ही इसे लगवाने के लिए आगे नहीं आ रहे। ऐसा खुद स्वास्थ्यकर्मियों में देखा गया। यहां तक कि दिल्ली के एम्स, लोकनायक, राम मनोहर लोहिया और सफदरजंग जैसे बड़े सरकारी अस्पतालों के कर्मचारी भी बहुत कम संख्या में टीका लगवाने के लिए पहुंचे। इन लोगों को खास कर भारत बायोटैक की वैक्सीन ‘कोवैक्सीन’ से शिकायत थी। उनका कहना था कि इसका तीसरे चरण का परीक्षण नहीं हुआ है। कई लोगों ने दावा किया कि टीकाकरण के बहाने उन्हीं पर इसका परीक्षण किया जा रहा है।

बहरहाल, टीका लगाने के प्रतिकूल असर की घटनाओं के मद्देनजर भारत बायोटेक और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने आगाह किया है कि किन लोगों को टीका नहीं लगवाना चाहिए। उनके मुताबिक जिन लोगों को वैक्सीन के किसी भी घटक से किसी तरह की एलर्जी है, वे टीका नहीं लगवाएं। बुखार या खून से संबंधित कोई बीमारी होने या रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने पर भी टीका लगवाना सही नहीं है। यहां तक कि गर्भवती महिलाओं और इम्यूनिटी बढ़ाने की दवा लेने वाले लोग भी डॉक्टर से पूछ कर ही टीका लगवाएं। साथ ही जिन्हें पहली खुराक से कोई एलर्जी हुई है वे दूसरी खुराक नहीं लें।

दिल्ली में वैक्सीन पर स्वास्थ्यकर्मियों की ओर से सवाल उठने के बाद कर्नाटक के डॉक्टरों ने भी इसका विरोध किया। कर्नाटक एसोसिएशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स ने इस बात पर ऐतराज जताया कि ‘कोवैक्सीन’ अभी भी तीसरे चरण के परीक्षणों में है और इसका स्वास्थ्यकर्मियों पर परीक्षण किया जा रहा है। एसोसिएशन का कहना था कि यह वैकल्पिक होनी चाहिए।