न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क

बॉस्टन (अमेरिका) से सुधांशु मिश्रा

ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। किसी नए राष्ट्रपति का शपथ ग्रहण समारोह पहले कभी इतनी आशंकाओं से घिरा हुआ नहीं था और न अमेरिका के इतिहास में कभी ‘इनॉगरेशन-डे’ के लिए सुरक्षा के ऐसे इंतजाम करने पड़े थे। लेकिन जो-बायडन के व्हाइट हाउस पहुंचने की प्रक्रिया अगर अभूतपूर्व रही है तो राष्ट्रपति के तौर पर उनका कार्यकाल भी आसान नहीं रहने वाला।

जिन हालात में उन्होंने पद संभाला है उनकी तपिश लंबे समय तक रहने वाली है। कोरोना का कहर थमता नहीं दीखता, सरकारी खजाने की हालत बेहद पतली है, अर्थव्यवस्था घनघोर मंदी की चपेट में है और देश बेतरह बंटा हुआ है। डोनाल्ड ट्रम्प और ट्रम्पवाद के समर्थक कब, कहां, क्या गुल खिला देंगे, कोई नहीं कह सकता। कुल मिला कर भारी अनिश्चितताओं, आशंकाओं और विभाजन के बीच बायडन ने अपना कार्यकाल शुरू किया है। कार्यकाल के शुरूआती सौ दिन ‘हनीमून पीरियड’ कहलाते हैं जिसमें नए राष्ट्रपति को हालात को देखने-समझने के लिए थोड़ी मोहलत मिल जाती है। कहना मुश्किल है कि बायडन को यह मोहलत नसीब होगी या नहीं।

चुनाव अभियान के दौरान बायडन ने बार-बार कहा था कि पहले 100 दिनों में वे इमिग्रेशन नीति में व्यापक सुधार करेंगे, मित्र देशों से संबंधों में दरार खत्म करने के लिए ठोस कदम उठाएंगे और आबोहवा संबंधी अंतरराष्ट्रीय समझौतों में अमेरिका की वापसी सुनिश्चित करेंगे। लेकिन हालात अब काफी बदले हुए हैं। छह जनवरी को कैपिटल बिल्डिंग पर हमले, ट्रम्प पर महाभियोग, देश भर में ट्रम्प समर्थक अतिवादियों के षड़यंत्र और षड़यंत्रकारियों की धरपकड़ का अभियान- इन सब पर उन्हें खास ध्यान देने की जरूरत होगी। अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार के लिए करीब दो खरब डालर खर्च करने की योजना पर भी रिपब्लिकन पार्टी के साथ हुज्जत की आशंका है, जबकि बायडन की सभी मुख्य योजनाओं का दारोमदार इस आर्थिक पैकेज पर टिका है। कोरोना से मरने वालों की संख्या चार लाख से ऊपर जा चुकी है और बेरोजगारी भी उफ़ान पर है। ऐसे में उन्हें अपनी प्राथमिकताएं बदलनी पड़ सकती हैं।

पिछले सप्ताह एक बड़ी खबर यह आई कि वैक्सीन के रिजर्व स्टॉक के बारे में ट्रम्प प्रशासन लगातार झूठ बोलता रहा। कहा यह गया था कि वैक्सीन के दोनों डोज़ के लिए पर्याप्त स्टॉक मौजूद है, लेकिन ‘इनॉगरेशन-डे’ के सिर्फ एक दिन पहले धमाका हुआ कि दूसरी डोज़ के लिए वैक्सीन उपलब्ध ही नहीं है। ऐसे में करीब सवा करेाड़ लोगों को दी जा चुकी पहली डोज़ भी बेकार होने का खतरा है। इसका अर्थ यह हुआ कि वैक्सीन का महाभियान बायडन को नए सिरे से चलाना होगा जबकि उन्होंने ऐलान किया था कि वे पहले 100 दिनों में दस करोड़ अमेरिकियों को टीका लगवाना सुनिश्चित करेंगे। इस लक्ष्य में अब उन्हें बदलाव करना होगा। वैक्सीन का उत्पादन भी ढीला पड़ा है जिसे बायडन ने ‘डिफेंस ऑथराइजेशन एक्ट’ लागू कर बढ़ाने का वादा किया है। इस एक्ट के तहत सरकार कंपनियों को सब काम रोक कर युद्धस्तर पर वैक्सीन बनाने के लिए बाध्य कर सकती है। ट्रम्प प्रशासन न जाने क्यों इस एक्ट के इस्तेमाल में हीला-हवाली करता रहा था।

बेरोजगारी की स्थिति इतनी चिंताजनक शायद ही कभी रही हो। सरकारी आंकड़ों के हिसाब से बेरोजगारी सात प्रतिशत से थोड़ी ऊपर है, लेकिन इस आंकड़े से वे लोग बाहर कर दिए जाते हैं जो छह महीने से ज्यादा समय से बेरोजगार हैं। हर अमेरिकी को दो हजार डालर की नकद और फौरी मदद पहुंचाने की बात कही गई है जिसमें से छह सौ डालर पिछला प्रशासन बांट भी चुका है। बायडन ने नियत बेरोजगारी भत्ते में चार सौ डालर हर सप्ताह ऊपर से जोड़ने को कहा है। इस सबके लिए सरकार को खरबों डालर का नया कर्ज लेना पड़ेगा जबकि रिपब्लिकन सदस्य इस पर अभी से मुंह बिचका रहे हैं। इसी तरह, राजस्व की हालत भी ठीक नहीं है और अतिरिक्त नोट छाप कर सरकार महंगाई का जोखिम नहीं उठाना चाहेगी। इस सबके लिए प्रशासन को कांग्रेस का समर्थन जरूरी होगा, मगर सेनेट में बराबर सीटें होने और दोनों दलों के बीच हाल की घटनाओं को लेकर बढ़ी दूरी को देखते हुए सहयोग के आसार कम ही प्रतीत होते हैं।

बायडन की प्राथमिकताओं में इमीग्रेशन कानूनों में व्यापक सुधार प्रमुख रहा है। इनमें से कुछ मामलों पर पहले ही दिन उन्होंने ट्रम्प के कई फैसले पलट दिए हैं। वे गैरकानूनी तरीके से अमेरिका आकर और यहां छिप कर रह रहे लोगों को आठ साल के भीतर नागरिकता देने की विषद योजना की घोषणा पहले ही कर चुके हैं। इसे लागू करना हालांकि उनके लिए आसान नहीं रहेगा क्योंकि सेनेट में इस योजना का विरोध करने वालों में दोनों ही पार्टियों के लोग शामिल हैं। सरकारी तौर पर ऐसे लोगों की संख्या दो करोड़ के आसपास बताई गई है। मेक्सिको-अमेरिका सीमा पर लोहे की ऊंची दीवार के समर्थकों की संख्या भी कम नहीं है। मतलब यह कि बायडन की लगभग हर योजना का जबर्दस्त विरोध होना तय है।

एक साथ तीन भयंकर ‘महामारियों’ से जूझना बायडन के लिए सबसे बड़ी चुनौती साबित होगा। करीब एक साल पुराने कोरोना वायरस के अलावा उन्हें 402 साल पुराने गोरी नस्ल की तथाकथित विशिष्टता की सोच वाले वायरस का सामना करना है। इसके साथ ही दुनिया भर में इन दिनों अतिवाद के समर्थक राजनीतिकों के ‘दुष्प्रचार’ वाले वायरस का भी उन्हें मुकाबला करना होगा। इसी वायरस के चलते पिछले कुछ सालों में दुनिया में ऐसे नेताओं का बोलबाला हुआ है। (आभार – समय की चर्चा)