न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क 

महेंद्र पाण्डेय

पिछले दिसंबर में कोरोना की वैक्सीनें लगनी शुरू हो गई थीं, लेकिन उसी महीने ब्रिटेन में और दक्षिण अफ्रीका में कोरोना वायरस के नए संस्करण भी प्रकट हो गए। दो वैक्सीनें इन दिनों भारत में भी लगाई जा रही हैं। मगर दुनिया भर में यह बहस चल रही है कि कोविड-19 की जिन वैक्सीनों का प्रयोग विभिन्न देशों में हो रहा है, क्या वे कोरोना वायरस के नए अवतारों पर भी प्रभावी होंगी?

कोरोना वायरस का एक अवतार दिसम्बर 2019 में चीन से पैदा हुआ और दुनिया भर में फ़ैल गया। इसके बाद से पूरी दुनिया ने चीन को इसका जिम्मेदार माना और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की अगुआई में लगभग सभी बड़े और दुनिया की राजनीति में दखल रखने वाले देशों ने प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर चीन का बहिष्कार कर दिया। साल भर में यानी दिसम्बर 2020 तक दुनिया में कोविड-19 के टीके भी बन गए और जनवरी तक ज्यादातर देशों में टीकाकरण अभियान भी शुरू कर हो गया। लेकिन दिसम्बर में ही कोरोना वायरस के दो नए अवतारों का पता चला। इनमें से सार्स कोव-2 ग्रेट ब्रिटेन में पाया गया और बी1351 दक्षिण अफ्रीका में।

आश्चर्य तो यह है कि नए अवतार मिलने के बाद दुनिया ने ग्रेट ब्रिटेन और दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ वैसा रुख अख्तियार नहीं किया जैसा चीन को लेकर किया था। ब्रिटेन में पाए गए कोरोना वायरस के नए अवतार से ग्रस्त डेढ़ सौ से ऊपर मरीज भारत में भी मिल चुके हैं और इनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। दूसरी तरफ, इस वायरस के दक्षिण अफ्रीकी अवतार ने दक्षिण अफ्रीका और ब्राज़ील में बहुत तबाही मचा रखी है, पर भारत में इससे ग्रस्त मरीज हैं या नहीं या कितने हैं, यह किसी सरकारी या गैर-सरकारी एजेंसी ने अब तक नहीं बताया है।

असल में कोरोना वायरस के नए संस्करणों को लेकर अनुसंधान और परीक्षण अभी नहीं हुए हैं, फिर भी दुनिया के अधिकतर वैज्ञानिकों का मत है कि कोरोना वायरस के नए अवतारों से निपटने के लिए मौजूदा वैक्सीनों में कुछ बदलाव करने होंगे। यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऑक्सफ़ोर्ड के वैज्ञानिकों का एक दल जो ऑक्सफ़ोर्ड-एस्ट्राजेनिका की वैक्सीन का सफलतापूर्वक आविष्कार कर चुका है, उसके भी अधिकतर सदस्यों की राय यही है, लेकिन खास कर कोरोना वायरस के दक्षिण अफ्रीकी अवतार के बारे में ज्यादातर विशेषज्ञ संशय में हैंI

भारत में भी इसे लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। यह सवाल हमारे देश में पूछा जाता है, लेकिन सरकार में उच्च पदों पर बैठे वैज्ञानिक बिना किसी अध्ययन के ही इस प्रश्न का ऐसा जवाब देना पसंद करते हैं जो सरकारी दावों के अनुरूप हो। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन पहले ही दावा कर चुके हैं कि भारत में लगाए जा रहे टीके कोरोना वायरस के नए अवतारों से भी सुरक्षा देंगे। जनवरी के शुरू में भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार प्रोफ़ेसर कृष्णास्वामी विजय राघवन ने एक प्रेस कान्फ्रेंस में कहा, “मैं जानता हूँ कि लोगों के मन में शंकाएं हैं, पर वायरस में आया बदलाव उतना प्रभावी नहीं है कि वह वैक्सीन को बेअसर कर दे। वैक्सीन से शरीर में अनेक प्रकार के एंटीबॉडीज बनते हैं जिनसे रोग-प्रतिरोधक तंत्र मजबूत होता है। अब तक ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला है जिससे स्पष्ट हो कि वर्तमान भारतीय वैक्सीनें ब्रिटेन और दक्षिण अफ्रीका में पनपे कोरोना वायरस के नए अवतारों के विरुद्ध असफल रहेंगीं।”

आश्चर्य यह है कि यह हास्यास्पद वक्तव्य किसी राजनेता की तरफ से नहीं बल्कि देश के सबसे बड़े सरकारी पद पर बैठे वैज्ञानिक की तरफ से आया है। यह हैरानी की बात इसलिए है कि दुनिया की किसी भी वैक्सीन बनाने वाली कंपनी ने भी इतने स्पष्ट तौर पर यह दावा नहीं किया है कि उनकी वैक्सीन इन नए अवतारों के विरुद्ध भी कारगर है। वैसे लगभग हर वैक्सीन के कोरोना वायरस के इन नए संस्करणों पर प्रयोग और परीक्षण किये जा रहे हैं। ऑक्सफ़ोर्ड-एस्ट्राजेनिका की वैक्सीन कोवीशील्ड, जिसका भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया में उत्पादन किया जा रहा है, का आविष्कार करने वाले ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक भी इस मामले में अपनी खोज पर आश्वस्त नहीं हैं। वे कोरोना वायरस के दक्षिण अफ्रीकी संस्करण पर वैक्सीन की कामयाबी को लेकर शंकित हैं।

असल में, वायरस के दक्षिण अफ्रीकी संस्करण के साथ समस्या यह है कि यह अपेक्षाकृत अधिक तेजी से फ़ैल रहा है, इससे स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं और सामान्य कोरोना वायरस के उलट यह युवाओं और स्वस्थ लोगों को अपनी चपेट में ले रहा हैI हाल में दक्षिण अफ्रीका के जोहानसबर्ग स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर कम्युनिकेबल डिसीज़ेज़ के वैज्ञानिकों के किये अध्ययन से पता लगा कि वायरस का यह संस्करण कोविड-19 से उबर चुके व्यक्तियों के ब्लड प्लाज्मा की मदद से जिन नए मरीजों का इलाज किया जा रहा था उनमें एंटीबॉडीज को बेअसर कर देता है। इसका मतलब यह है कि जिन व्यक्तियों को कोविड-19 हो चुका है और वे ठीक हो चुके हैं उनमें भी कोरोना वायरस का यह दक्षिण अफ्रीकी अवतार नए सिरे से प्रभाव दिखा सकता हैI इससे पहले तक माना जाता था कि जिसे एक बार कोविड-19 हो गया, उसके दोबारा संक्रमित होने की संभावनाएं लगभग नगण्य हैं, क्योंकि उनके रक्त में इससे लड़ने वाले एंटीबॉडीज उत्पन्न हो जाते हैं।

अध्ययन में यह भी पता लगा कि वायरस के इस नए संस्करण के कारण एंटीबाडीज इसलिए बेअसर होने लगते हैं कि यह वायरस इन एंटीबाडीज के प्रभाव को औसतन 88 प्रतिशत तक कम कर देता है। कुछ मरीजों में तो यह प्रभाव 99 प्रतिशत तक भी कम हो जाता हैI दरअसल 88 प्रतिशत का आंकड़ा महत्वपूर्ण है और इससे कोविड-19 की सभी उपलब्ध वैक्सीनों की इस वायरस के खिलाफ दक्षता को समझने में मदद मिलती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक इन्फ्लुएंजा वायरस की वैक्सीन के लिए मानक है कि जब भी शरीर में एंटीबाडीज की दक्षता 88 प्रतिशत तक कम हो जाए तब उस मरीज को दोबारा वैक्सीन दी जाए। हालांकि इन्फ्लुएंजा और कोविड-19 के वायरस और वैक्सीन में बहुत अंतर है, फिर भी इस अध्ययन से इतना तय है कि कोरोना वायरस की वर्तमान वैक्सीनें इस वायरस के दक्षिण अफ्रीकी अवतार पर प्रभावी नहीं रहने वालीं।

इन वैज्ञानिकों ने सभी वैक्सीन आविष्कारकों और निर्माताओं को सचेत किया है कि वर्तमान स्वरूप में ये वैक्सीनें कम से कम वायरस के दक्षिण अफ्रीकी संस्करण पर असर नहीं करेगी। इसे असरदार बनाने के लिए नए सिरे से अध्ययन करने होंगे और वैक्सीन में आवश्यक परिवर्तन करने होंगे। मगर हमारे देश में किसी भी वैक्सीन या वैज्ञानिक विषयों पर सबसे पहले अवैज्ञानिक खबरें या अफवाहें सरकारी वैज्ञानिकों से ही फैलती हैं। कोविड-19 की वैक्सीन का मामला भी इससे अलग नहीं है। (आभार – समय की चर्चा )