न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क
सीसीआई यानी कंपटीशन कमीशन ऑफ इंडिया का मानना है कि टेलीकॉन रेगुलेटरी अथॉरिटी औफ इंडिया के फैसलों से इस उद्योग की हालत खराब हुई है। उसके मुताबिक अगर इस सेक्टर से एक और कंपनी बाहर हो जाए तो महज दो कंपनियों का वर्चस्व रह जाएगा जो कि लंबी अवधि में इस सेक्टर के लिए अच्छा नहीं होगा।
सीसीआई के एक अध्ययन में कहा गया है कि एक समय इस सेक्टर में पंद्रह कंपनियां थीं। प्रतिस्पर्धा के चलते भारत का टेलीकॉम मार्केट सबसे कम कीमत वाला बाजार बन गया है। हाल में जारी की गई इस अध्ययन की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2016 में जियो के आगमन के साथ ही टेलीकॉम इंडस्ट्री पूरी तरह बदल गई। इसमें ट्राई के दो फैसलों ने अहम भूमिका निभाई। ये फैसले 2017 में मोबाइल टर्मिनेशन चार्ज में कटौती और 2018 में एसएमपी यानी सिग्निफिकेंट मार्केट पॉवर की नई परिभाषा तय करने से संबंधित थे।
इसमें तय किया गया था कि इस सेक्टर में आने वाली नई कंपनी को रेगुलेटरी छूट मिलेगी। इसका लाभ उठाते हुए रिलायंस जियो ने प्राइसिंग डिस्काउंट की रणनीति अपनाई जो कि प्रतिस्पर्धा के लिहाज से अच्छा नहीं था। जियो ने सितंबर 2016 में मुफ्त वॉयस कॉल और सस्ते डेटा के साथ शुरुआत की थी जिसके कारण पहले से मौजूद कंपनियों को भी कीमतों में कटौती करनी पड़ी। उन्हें अपने राजस्व में 70 प्रतिशत की भागीदारी वाली वॉयस कॉल को मुफ्त करना पड़ा। डेटा की कीमतों में भी 85 प्रतिशत तक की कटौती करनी पड़ी। इस कटौती के कारण कई कंपनियां सेक्टर से बाहर हो गईं।
हालत यह हो गई कि वित्त वर्ष 2018-19 में टेलीकॉम इंडस्ट्री का राजस्व दस साल पहले के स्तर तक गिर गया, जबकि इस ‘प्राइस शॉक’ को वेलफेयर मान लिया गया। सीसीआई का कहना है कि कमजोर कंपटीशन के कारण 5जी जैसी नई तकनीक को अपनाने में देरी होगी। उके मुताबिक 5जी की सफलता के लिए प्रतिस्पर्धी बाजार पैदा करना काफी कठिन है।
सीसीआई ने आईसीआरआईईआर यानी इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकनॉमिक रिलेशंस के अध्ययन के आधार पर ये टिप्पणियां की हैं। पिछले साल 20 मई को आईसीआरआईईआर ने यह रिपोर्ट दाखिल की थी। इसी रिपोर्ट के आधार पर सीसीआई 5 फरवरी को टेलीकॉम इंडस्ट्री और सरकारी अधिकारियों के साथ कंपटीशन के मुद्दे पर चर्चा करेगा।
अध्ययन के मुताबिक ट्राई ने 2017 में मोबाइल टर्मिनेशन चार्ज 14 पैसे से घटा कर 6 पैसे प्रति मिनट कर दिया था जिसका पहले से चल रही कंपनियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। यह वह चार्ज है जो कॉल करने वाली कंपनी को कॉल रिसीव करने वाली कंपनी को देना पड़ता है। इसका एक नाम इंटरकनेक्ट यूसेज चार्ज भी है।
सितंबर 2017 में इस चार्ज में कटौती के साथ ही पहली जनवरी 2020 से इसे पूरी तरह खत्म करने की योजना बनाई गई। मगर इसमें एक साल की देरी हुई। यह इस साल पहली जनवरी को खत्म हो पाया है। इसका असर यह हुआ कि जियो के फ्री कॉल ऑफर से दूसरी कंपनियों पर इनकमिंग कॉल की संख्या बढ़ गई।
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