न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क

महेंद्र पाण्डेय

चरम मौसम, यानी चक्रवात, बाढ़ और अत्यधिक गर्मी के कारण वर्ष 2019 के दौरान सबसे अधिक मौतें और सबसे अधिक आर्थिक नुकसान भारत में हुआ। ताजा ‘ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स’ से यह बात सामने आई है जिसे हर साल जर्मनवाच नामक संस्था जारी करती है। इसके मुताबिक 2019 में वैसे तो नुक्सान के संदर्भ में मोजांबिक, ज़िम्बाब्वे और बहामास के पीछे भारत सातवें स्थान पर है, पर मौसम की मार से जान-माल की हानि में हम सबसे आगे हैंI

इस इंडेक्स में दुनिया के कुल 180 देशों को शामिल किया गया हैI जर्मनी के बोन स्थित जर्मनवाच का कहना है कि इस इंडेक्स को तैयार करने के लिए वह चक्रवात, बाढ़ और अत्यधिक गर्मी जैसे चरम मौसम की घटनाओं से होने वाले प्रत्यक्ष नुकसान का ही आकलन करता है, इसके अप्रत्यक्ष प्रभावों जैसे सूखा, खेती का बर्बाद होना इत्यादि को इसमें शामिल नहीं किया जाता हैI उसके अनुसार ऐसी घटनाएं जलवायु परिवर्तन के कारण साल-दर-साल बढ़ रही हैं, फिर भी वह यह दावा नहीं करता कि हर ऐसी आपदा जलवायु परिवर्तन के कारण हैI उसने यह भी कहा है कि इस अध्ययन के आंकड़े जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान से भिन्न हैं, क्योंकि इस अध्ययन में केवल चरम प्राकृतिक आपदा को शामिल किया गया है, जबकि जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित अध्ययन में इन आपदाओं के दीर्घकालीन प्रभाव, सूखा, ग्लेशियर का पिघलना और सागर ताल का बढ़ना भी सम्मिलित रहते हैं।

इस इंडेक्स के हिसाब से वर्ष 2019 के दौरान प्राकृतिक आपदाओं के कारण भारत में 2267 व्यक्तियों की अकाल मृत्यु हो गई, जो दुनिया के किसी भी देश से ज़्यादा हैं। भारत में इस तरह होने वाली मौतों का अनुपात प्रति एक लाख आबादी पर 0.17 का रहा। इन चरम प्राकृतिक आपदाओं के कारण उस साल 6881.2 करोड़ डॉलर का बोझ भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ा जो के हमारी जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद का 0.72 प्रतिशत था। असल में वर्ष 2019 में भारत में मानसून एक महीना ज्यादा चलता रहा, जिसके कारण देश के अनेक भागों में बाढ़ ने बहुत नुकसान पहुंचाया था। इसी वर्ष देश ने आठ ट्रॉपिकल चक्रवातों का सामना किया था, जिसमें से छह बेहद खतरनाक वाली श्रेणी के थे। बहामास में वर्ष 2019 में चरम प्राकृतिक आपदाओं के कारण प्रति एक लाख आबादी पर 14.7 लोगों की असामयिक मृत्यु हुई। अनुपात के हिसाब से यह दुनिया में सर्वाधिक है। इसी तरह इन आपदाओं के कारण बहामास की जीडीपी में से लगभग 32 प्रतिशत का विनाश हो गया।

इंडेक्स के अनुसार वर्ष 2000 से 2019 के बीच चरम प्राकृतिक आपदाओं के कारण भारत में 475000 व्यक्तियों की मृत्यु हुई और अर्थव्यवस्था को लगभग 256 खरब डॉलर का नुक्सान पहुंचा। उन उन्नीस सालों के दौरान हुए नुकसान को लेकर बनाए गए इंडेक्स में भारत का 20वें नंबर पर है। इस इंडेक्स में सबसे ऊपर के तीन देश पुएर्तो रिको, म्यांमार और हैती हैंI प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली मृत्यु और आर्थिक नुकसान के सन्दर्भ में भारत का स्थान क्रमशः तीसरा और दूसरा है।

इन सबके बीच हाल में ही प्रतिष्ठित वैज्ञानिक जर्नल ‘नेचर’ में प्रकाशित एक नए शोधपत्र के अनुसार मानव इतिहास में पृथ्वी कभी इतनी गर्म नहीं रही जितनी अब है। यह रुत्गेर्स यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का शोध है जिन्होंने अपने अध्ययन के लिए सागर सतह के तापमान को आधार बनाया। वैज्ञानिकों के अनुसार यह तापमान के सन्दर्भ में अब तक का सबसे सटीक आकलन है। इसके हिसाब से वर्तमान दौर मानव इतिहास, यानी पिछले बारह हजार वर्षों, का सबसे गर्म दौर हैI संभव है, पिछले 125000 वर्षों के दौरान भी पृथ्वी कभी इतनी गर्म नहीं रही हो, पर वैज्ञानिकों के अनुसार इतने पुराने समय के तापमान के अनुमान भ्रामक भी हो सकते हैंI लेकिन हाल में ही एक दूसरे अध्ययन से स्पष्ट होता है कि जलवायु परिवर्तन के लिए मुख्य तौर पर जिम्मेदार कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता वायुमंडल में जितनी आज के दौर में है, उतनी पिछले 40 लाख वर्षों में कभी नहीं रही।

जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित एक वैश्विक सर्वेक्षण से यह स्पष्ट होता है कि दुनिया की दो-तिहाई आबादी जलवायु परिवर्तन को वैश्विक आपात स्थिति मानती है। इस सर्वेक्षण को संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के लिए यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऑक्सफ़ोर्ड ने किया है जिसमें दुनिया के 50 देशों के लगभग 12 लाख लोगों को शामिल किया गया। इन देशों में भारत भी है और इसे इस तरह का सबसे बड़ा सर्वेक्षण माना जा रहा है। ये वे देश हैं जिनकी सम्मिलित आबादी दुनिया की कुल आबादी का 56 प्रतिशत से अधिक है। इस सर्वेक्षण के विज्ञापन मोबाइल गेम्स और पज़ल के माध्यम से पूरी दुनिया में प्रसारित किये गए थे, जो इन दिनों हर आयु वर्ग के लोगों में लोकप्रिय हैं।

इस सर्वेक्षण के अनुसार पूरी दुनिया में 64 प्रतिशत व्यक्ति जलवायु परिवर्तन को वैश्विक आपात स्थिति मानते हैं और इनमें से 59 प्रतिशत लोग इसे रोकने के लिए सरकारों द्वारा युद्ध स्तर पर कार्य करने की वकालत भी करते हैं। भारत में कुल 59 प्रतिशत व्यक्तियों के लिए जलवायु परिवर्तन वैश्विक आपात स्थिति हैI इंग्लैंड, इटली, जापान, साउथ अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के लिए यह क्रमशः 81, 81, 79, 76, 72 और 65 प्रतिशत हैI पूरी दुनिया में 14 से 18 वर्ष तक के किशोरों में से 69 प्रतिशत जलवायु परिवर्तन को आपात स्थिति मानते हैं, जबकि 60 वर्ष से ऊपर के 58 प्रतिशत लोग इसे आपात स्थिति मानते हैंI जाहिर है, हर आयु वर्ग के लिए जलवायु परिवर्तन एक गंभीर समस्या हैI इन 50 देशों में से भारत समेत 16 देशों में महिलाओं की अपेक्षा पुरुष जलवायु परिवर्तन की समस्या को ज्यादा गंभीर मानते हैं। इन देशों में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की राय में कमी 5 प्रतिशत या इससे भी अधिक हैI भारत में महिलाओं की अपेक्षा 9 प्रतिशत अधिक पुरुष जलवायु परिवर्तन को गंभीर समस्या मानते हैंI दूसरी तरफ चार देशों अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और इंग्लैंड में जलवायु परिवर्तन को गंभीर समस्या मानने वालों में महिलाओं का अनुपात पुरुषों की अपेक्षा अधिक हैI यह एक रहस्य है कि केवल अंगरेजी बोलने वाले देशों में ही महिलायें अधिक जागरूक क्यों हैं, जबकि सर्वेक्षण का विज्ञापन दुनिया में सबसे अधिक बोली जाने वाली 16 भाषाओं में किया गया था।

सर्वेक्षण से मालूम होता है कि जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित सबसे अधिक जागरूकता पश्चिम यूरोप और अमेरिका में है और सबसे कम जागरूकता अफ्रीकी देशों में हैI इसका कारण भी स्पष्ट है। यूरोप और अमेरिका में पिछले तीन वर्षों से जलवायु परिवर्तन रोकने में सरकारों की नाकामयाबी के विरुद्ध बड़े आन्दोलन किये जा रहे हैंI पश्चिम यूरोप और अमेरिका में 72 प्रतिशत लोग जलवायु परिवर्तन को वैश्विक आपदा मानते हैं, उत्तरी यूरोप और मध्य एशिया में 65 प्रतिशत, अरब में 64 प्रतिशत, दक्षिणी अमेरिका में 63 प्रतिशत, एशिया और पेसिफ़िक में भी 63 प्रतिशत और अफ्रीका में 61 प्रतिशत लोग इसे गंभीर समस्या मानते हैंI इस तरह भारत उन देशों में शुमार है जहां चरम प्राकृतिक आपदाएं लगातार दस्तक दे रही हैं, और वैज्ञानिकों के अनुसार जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से ऐसी आपदाओं की संख्या और बढ़ेगी, पर क्या हमारे देश में इनकी मार का सामना करने की तैयारी है? (आभार – समय की चर्चा )