न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क

विमलेन्दु

बिहार में नीतीश कुमार मंत्रिमंडल का विस्तार जितने लंबे समय तक लटका रहा उससे साफ था कि सत्तारूढ़ एनडीए की दोनों मुख्य पार्टियों भाजपा और जदयू में इस मामले में मतभेद हैं। भाजपा की सबसे बड़ी आपत्ति इस बात को लेकर थी कि जदयू मंत्रि पद बराबर संख्या में बांटना चाहती है। लेकिन इतनी सरखपाई के बाद भी इस विस्तार में भाजपा जिस अनुपात में मंत्रि पद चाहती थी वे उसे नहीं मिल सके।

असल में, जदयू का पूरी तरह मानना है कि पिछले विधानसभा चुनावों में लोक जनशक्ति पार्टी वाला खेल भाजपा की शह पर ही हुआ था जिसके कारण जदयू की सीटें घट गईं। अब जदयू चाहता है कि इसका खामियाजा भाजपा भी भुगते। इसीलिए अपनी सीटें कम हो जाने के बावजूद वह विधान परिषद के चुनाव और मंत्रि पदों में भी बराबर का बंटवारा चाहती है। दूसरी तरफ भाजपा के नेता कहते हैं कि संख्या बल के आधार पर अब तक जदयू बिहार में बड़े भाई की भूमिका में रही है। उसी आधार पर अब भाजपा को इस भूमिका में होना चाहिए। साथ ही उसी आधार पर मंत्रि पदों का भी बंटवारा होना चाहिए। यानी अगर पिछली नीतीश सरकार में जदयूव के मंत्री ज्यादा थे तो अब भाजपा के ज्यादा होने चाहिए।

इस विवाद में पूरे दो महीने तक मंत्रिमंडल का विस्तार रुका रहा। अब विस्तार हुआ भी तो भाजपा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपने फॉर्मूले पर पूरी तरह राजी नहीं कर पाई। विस्तार के बाद मंत्रिमंडल में जदयू से भाजपा के केवल दो मंत्री अधिक हैं, यानी सीटों के आधार पर मंत्रि पदों के बंटवारे की बात नहीं मानी गई।

भाजपा का कहना था कि विधायकों की संख्या के आधार पर मंत्रिमंडल में उसे 64 फीसदी और जदयू को 36 फीसदी पद मिलने चाहिए। मगर नीतीश और उनकी पार्टी आधे-आधे की पर अड़े थे। विस्तार के बाद अब बिहार सरकार में मुख्यमंत्री समेत जदयू के 14 मंत्री हैं तो भाजपा के 16 मंत्री हैं। जबकि भाजपा के 74 विधायक हैं और जदयू के 43 विधायक।

चुनाव जीतने के बाद नीतीश ने 14 मंत्रियों के साथ शपथ ली थी। इस विस्तार में उनकी सरकार में गो मुस्लिम प्रतिनिधियों को भी जगह मिली। भाजपा के शाहनवाज हुसैन के अलावा बसपा से जदयू में आए जमा खान को भी मंत्री बनाया गया है। यह अलग बात है कि जमा खान पर दो दर्जन से अधिक आपराधिक मामले चल रहे हैं। (आभार – समय की चर्चा )