न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क

एन एन कौल

नीति आयोग की हाल की ही एक रिपोर्ट में देश भर के जिला अस्पतालों की दशा बताई गई है जिसमें बिहार की हालत सबसे खस्ता है। रिपोर्ट के मुताबिक देश भर के जिला अस्पतालों में प्रति एक लाख की आबादी पर चौबीस बेड हैं। लेकिन बिहार में यह औसत केवल छह बेड का है।

इस मामले में सबसे अच्छी स्थिति पुडुचेरी की बताई गई है। रिपोर्ट के मुताबिक वहां प्रति एक लाख आबादी पर जिला अस्पतालों में 222 बेड उपलब्ध हैं। पूरे देश के मुकाबले यह बहुत अच्छी स्थिति है जबकि बिहार की दशा इसके एकदम विपरीत है। इस बारे में जब बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय से सवाल किया गया तो वे सवालों को अनदेखा करते रहे। उन्होंने इस पर कोई जवाब नहीं दिया। दूसरी तरफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से जब नीति आयोग की इस रिपोर्ट के बारे में पूछा गया तो उनका जवाब था कि उन्हें कुछ नहीं पता। यहां यह ध्यान रखना जरूरी है कि कोरोना की पहली और दूसरी लहर के समय बिहार में भी बहुत से लोग अस्पतालों में बेड नहीं मिलने से मारे मारे घूमते रहे थे। यहां इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड्स की गाइडलाइन का जिक्र करना जरूरी है जिनके मुताबिक प्रति एक लाख आबादी के पीछे बाइस बेड होने जरूरी हैं।

राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय के अपने सिवान जिले के सदर अस्पताल में भी तब बेड की बजाय मरीज जमीन पर लेटे हुए पाए गए थे। वैसे राज्य सरकार लगातार यह दावा करती रही कि अस्पतालों में बेड की कोई कमी नहीं है। यह दिलचस्प है कि नीति आयोग ने अपना अध्ययन उन्ही कोरोना की पहली और दूसरी लहर वाले दिनों में किया। इसके आंकड़े उन्हीं दिनों जुटाए गए थे।

बिहार में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की दुर्दशा के किस्से पहले भी सामने आते रहे हैं। पिछले साल पटना हाईकोर्ट को स्वयं बिहार सरकार ने बताया था कि उसके अस्पतालों में डॉक्टरों और नर्सों आदि के 75 फीसदी पद रिक्त हैं। उसने कहा था कि राज्य सरकार के अस्पतालों में डॉक्टरों के मंजूरशुदा पदों की संख्या 11645 है, मगर इनमें से केवल 2877 पद ही भरे गए हैं। हालात का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि बिहार में चालीस हजार से भी कुछ ज्यादा की आबादी पर एक सरकारी डॉक्टर का औसत है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मापदंडों के हिसाब से दुनिया में प्रति एक हजार जनसंख्या पर एक डॉक्टर होना चाहिए। हमारे देश में यह औसत लगभग डेढ़ हजार लोगों के पीछे एक डॉक्टर का है।

बिहार में हालात इससे भी जयादा खराब हैं। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय के मुताबिक पूरे बिहार में एलोपैथी के 40200 डॉक्टर हैं। बिहार की बारह करोड़ की आबबादी को देखते हुए डॉक्टरों की यह उपलब्धता खासी दर्दनाक है। मगर राज्य में आयुष के 33922, होम्योपैथी के 34257, यूनानी के 5203 और 6130 दांतों के डॉक्टर भी हैं। इन सबको जोड़ लिया जाए तो राज्य में डॉक्टरों की कुल संख्या 1.20 लाख हो जाती है। इस साल में मार्च में मंगल पांडेय ने विधानसभा में ये आंकड़े देकर बताया था कि राज्य में प्रति एक हजार आबादी पर एक डॉक्टर उपलब्ध है।