अमिताभ पाराशर

ओटीटी यानी ओवर द टॉप प्लेटफॉर्म्स इस साल फिल्म जगत में और दर्शकों में भी काफी हद तक अपनी जगह बनाने में कामयाब हुए हैं। दर्शकों ने तो इस नए विकल्प को तरजीह देना शुरू भी कर दिया है जो कि मनोरंजन की मामले में पारंपरिक टीवी से कहीं ज्यादा बड़ी दुनिया से उनका परिचय कराते हैं। लेकिन हमारी फिल्मी दुनिया खास कर बॉलीवुड में ओटीटी को लेकर अभी भी कुछ दुविधा बाकी है।

अब जबकि यह साल खत्म होने को है, यह लेखाजोखा किया जा सकता है कि ओटीटी ने 2020 में क्या गुल खिलाए। इससे कोई इन्कार नहीं कर सकता कि कम से कम भारत में इन प्लेटफॉर्म्स की लोकप्रियता बढ़ाने में कोरोना महामारी का भारी हाथ रहा है। इनकी ग्राहक संख्या में सबसे ज्यादा बढ़ोत्तरी इसी साल हुई है। वह भी उन दिनों में जब कोरोना के चलते देश भर में लॉकडाउन लगाया गया और सिनेमाघर बंद हो गए। अभी भी सिनेमाघरों में बहुत कम दर्शक जा रहे हैं। शायद लोग कोरोना वायरस के खात्मे या उसकी वैक्सीन का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन उस हालत में भी लगता नहीं कि ओटीटी प्लेटफॉर्म्स की लोकप्रियता में कोई कमी आएगी।

इन प्लेटफॉर्म्स पर इस साल अब तक 47 फिल्में रिलीज हो चुकी हैं। इनमें कुछ फिल्में तो बनाई ही इन प्लेटफॉर्म्स के लिए गई थीं और कुछ ऐसी भी हैं जिन्हें लॉकडाउन में सिनेमाघर बंद होने के कारण मजबूरी में इन प्लेटफॉर्म्स पर रिलीज करना पड़ा। इस मामले में ऐसे निर्माता फायदे में रहे जिनकी फिल्मों का बजट कम था यानी 50 करोड़ रुपए तक था। लेकिन जिनका बजट ज्यादा था उन्हें इन प्लेटफॉर्म्स से ज्यादा लाभ नहीं हुआ या कम ही लाभ हुआ। इनमें ‘लक्ष्मी’ जैसी बड़े बजट की फिल्म का नाम लिया जा सकता है। इसके निर्माताओं को मानो अपनी लागत निकाल कर ही संतुष्ट होना पड़ा है। लेकिन यह भी सही है कि बहुत दिन बाद अक्षय कुमार की ऐसी फिलम आई जिसे लोगों ने ज्यादा पसंद नहीं किया।

  मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो लक्ष्मी को ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए करीब 125 करोड़ रुपए में बेचा गया था। फिल्म के बजट का खुलासा तो नहीं किया गया है। लेकिन कहा जाता है कि इसके लिए अक्षय कुमार की फीस ही करीब 100 करोड़ रुपए थी। इसमें साइनिंग अमाउंट और प्रॉफिट शेयरिंग शामिल थी। ध्यान रहे कि बड़े स्टारों के लिए प्रॉपिट शेयरिंग का चलन अब बॉलीवुड में धड़ल्ले से चल रहा है। फिर दूसरे कलाकारों की फीस और निर्माण पर हुआ खर्च इस फिल्म को एक महंगी फिल्म बनाने के लिए पर्याप्त है।

ट्रेड के जानकारों के मुताबिक इस फिल्म के निर्माताओं को ओटीटी पर इसे रिलीज करने से कोई मुनाफा नहीं हुआ है। अगर हुआ भी है तो वह बेहद मामूली होगा। कुछ जानकार दावा करते हैं कि अगर हालात सामान्य होते और यह फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज हुई होती तो केवल घरेलू बॉक्स ऑफिस पर ही यह फिल्म करीब 141 करोड़ का कलेक्शन आसानी से कर सकती थी।

लेकिन फिल्म निर्माताओं को किसी ओटीटी प्लेटफॉर्म को अपनी फिल्म देने के कुछ दूसरे फायदे हैं जिनमें आर्थिक पहलू जुड़ा हुआ है। सबसे बड़ा फायदा यह है कि वे इसकी डील सीधे एक जगह करते हैं। इसके लिए उन्हें किसी या किन्हीं डिस्ट्रीब्यूटर के साथ संग्रह में हिस्सा नहीं बंटाना पड़ता। एक बार जो तय हो गया वह पैसा उन्हें मिलना ही है। फिर उनका पब्लिसिटी पर होने वाला तमाम खर्चा बच जाता है।

एक और फिल्म ‘गुलाबो सिताबो’ भी ओटीटी पर रिलीज हुई थी। यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर आती तो जानकारों के मुताबिक यह घरेलू बाजार में 60 करोड़ रुपए भी नहीं कमा पाती और उस कमाई में प्रदर्शक यानी सिनेमाघर मालिकों का हिस्सा भी होता। प्रचार पर भी कम से कम दस करोड़ रुपए खर्च होते। अपुष्ट खबरों के हिसाब से इस फिल्म को बनाने में 31 करोड़ रुपए लगे थे। लेकिन बाकी सब चीजें मिला कर इसका बजट बढ़ कर 55 करोड़ रुपए को पार कर जाता। इस हिसाब से रिलीज के बाद प्रोड्यूसरों को बमुश्किल 30 करोड़ रुपए ही मिल पाते, जो फिल्म के बजट से भी कम होते।

निर्माताओं को अपनी फिल्म सीधे किसी ओटीटी प्लेटफॉर्म पर दिखाने के लिए 30-40 फीसदी का प्रीमियम मिला है। इसका मतलब यह हुआ कि अगर किसी फिल्म को सिनेमाघरों में रिलीज करने के बाद उसके ओटीटी राइट्स 20-25 करोड़ रुपए में बिकते जबकि इसे सीधे ओटीटी पर बेचने पर 35 करोड़ रुपए मिल सकते हैं। इस लिहाज से देखें तो ओटीटी प्लेटफॉर्म छोटी फिल्मों के लिए अच्छे फायदे का सौदा हैं। उन्हें एक फायदा तो यह है कि उन्हें कम से कम अपना कंटेंट दिखाने का मौका मिल रहा है। इन निर्माताओं को सामान्य रूप से अपनी फिल्म बेचने के लिए धक्के खाने पड़ते हैं और जब कोई राह नजर नहीं आती तो ट्रेडर्स को बेच देते हैं और ट्रेडर्स 2.50-3 करोड़ की फिल्म 25-30 लाख रुपए खरीदते हैं। वे ऐसी 8-10 फिल्में 2.50-3 करोड़ में खरीद कर उन्हें एकसाथ किसी ओटीटी प्लेटफॉर्म या किसी सैटेलाइट चैनल को 3- 3.50 करोड़ में बेच देते हैं।

इसे यों समझिए कि ओटीटी प्लेटफॉर्म की तुलना बॉक्स ऑफिस से नहीं की जा सकती। आगे चल कर इससे टीवी चैनलों को जरूर खतरा हो सकता है। लॉकडाउन में सिनेमाघरों के बंद होने के कारण लोगों को मनोरंजन के लिए घर बैठे अपने लायक जो मिला, वह उन्होंने ले लिया। मगर जब भी सिनेमाघर पूरी तरह खुल जाएंगे और कोरोना के खत्म होने पर हालात सामान्य हो जाएंगे तब जाएंगे, तब लोग इस तरह लपक कर ओटीटी प्लेटफॉर्म पर नहीं जाएंगे। जहां तक बड़े प्रोड्यूसरों की बात है तो वे पूरा खेल समझते हैं। इसीलिए हो यह रहा है कि ज्यादातर बड़े निर्माता अपनी फिल्म ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज करने से बच रहे हैं।

इस साल रंजन चंदेल के निर्देशन में बनी ‘बमफाड़’ ओटीटी प्लेटफॉर्म पर आई पहली फिल्म थी, जिससे परेश रावल के बेटे आदित्य रावल ने शुरूआत की। पिछले अप्रैल में इस फिल्म का प्रीमियर जी-5 पर हुआ था। लेकिन ओटीटी प्लेटफॉर्म पर फिल्मों की रिलीज की चर्चा अमिताभ बच्चन और आयुष्मान खुराना की ‘गुलाबो सिताबो’ के प्रीमियर के साथ हुई। यह जून की बात है। यह फिल्म अमेजन प्राइम वीडियो पर आई। (आभार – समय की चर्चा)