न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क
सुशील कुमार सिंह
कुछ दिन पहले महाराष्ट्र की महाअघाड़ी सरकार के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कर्नाटक के मराठी भाषियों की बहुलता वाले इलाकों को सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला आने तक केंद्र शासित प्रदेश घोषित किए जाने को कहा था। पिछले हफ्ते कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी ने इसके जवाब में कहा कि हम महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के बयान की निंदा करते हैं। उन्होंने कहा कि हमारे क्षेत्र के लोगों की मांग है कि हम भी मुंबई-कर्नाटक का हिस्सा रहे हैं, इसलिए हमारा भी मुंबई पर अधिकार है। इसलिए मुंबई को कर्नाटक में शामिल किया जाए और जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक मुंबई को केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया जाए।
असल में यह मामला महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच चले आ रहे कथित सीमा विवाद से जुड़ा है। लंबे समय से महाराष्ट्र यह मांग करता आ रहा है कि कर्नाटक के जिस हिस्से में मराठी बोलने वाले लोगों की बहुलता है उन क्षेत्रों को महाराष्ट् में शामिल कर दिया जाए। यह क्षेत्र बेलगाम और उसके आसपास का इलाका है। पिछले हफ्ते महाराष्ट्र सरकार ने महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद पर एक पुस्तिका जारी करने का कार्यक्रम रखा।
कार्यक्रम में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के अलावा एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बालासाहब थोराट आदि मौजूद थे। इस मौके पर उद्धव ठाकरे ने कहा कि यह मामला अदालत में है, फिर भी कर्नाटक सरकार ने विवादित बेलगाम क्षेत्र का नाम बदल दिया। उनका कहना था कि कर्नाटक की बीएस येदियुरप्पा सरकार ने जानबूझ कर ऐसा किया है। उद्धव ठाकरे ने कहा कि उनकी सरकार इस इलाके में रहने वाले मराठी भाषियों पर हो रहे अत्याचारों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट से अपील करेगी कि जब तक मामला कोर्ट में है तब तक इस हिस्से को केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया जाए।
कर्नाटक के बेलगाम शहर पर महाराष्ट्र का दावा खासा पुराना है। बेलगाम के साथ ही करवार और निप्पनी जैसे कई हिस्सों पर भी महाराष्ट्र भाषा के आधार पर दावा करता रहा है। उसका कहना है कि इन इलाकों में अधिकतर आबादी मराठी भाषियों की है, इसलिए इन्हें महाराष्ट्र में होना चाहिए। दोनों राज्यों के बीच यह सीमा विवाद सालों से सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है।
आजादी से पहले महाराष्ट्र असल में बॉम्बे प्रेसीडेंसी था जबकि कर्नाटक तब मैसूर स्टेट हुआ करता था। आज जो कर्नाटक है उसके कई इलाके तब बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा थे। आजादी के बाद 1956 में राज्य पुनर्गठन कानून लागू हुआ तो बेलगाम को महाराष्ट्र की जगह मैसूर स्टेट का हिस्सा बना दिया गया और बाद में उसका नाम कर्नाटक हो गया। असल में बेलगाम को महाराष्ट्र में शामिल करने की मांग राज्य पुनर्गठन के समय से ही हो रही है।
एक साल बाद यानी 1957 में ही महाराष्ट्र सरकार की मांग पर बेलगाम को लेकर एक आयोग गठित किया गया। रिटायर्ड जज मेहर चंद महाजन की अध्यक्षता वाले इस आयोग ने उत्तर कन्नड़ जिले के कारवाड़ सहित 264 गांव और हलियल व सूपा क्षेत्र के 300 गांव भी महाराष्ट्र को देने की सिफारिश की। मगर उसने बेलगाम शहर को महाराष्ट्र को देने की सिफारिश नहीं की। इसी तरह उसकी रिपोर्ट में महाराष्ट्र के शोलापुर और 247 गांवों के अलावा केरल का कासरगोड़ जिला कर्नाटक को देने की सिफारिश की गई थी। मगर आयोग की सिफारिशों को महाराष्ट्र और कर्नाटक किसी ने भी नहीं माना।
जब से महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने हैं तभी से यह मुद्दा फिर जोर पकड़ने लगा है। महाराष्ट्र एकीकरण समिति के नेताओं ने उद्धव ठाकरे से इस मुद्दे पर ध्यान देने की मांग की और दो सदस्यों की एक समिति बना दी।
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