न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क
महेंद्र पाण्डेय
जब भारत में 100 करोड़ टीकों का जश्न मनाया गया, तब देश की केवल 30 प्रतिशत आबादी को वैक्सीन की दोनों डोज और महज 70 करोड़ आबादी को पहली डोज लगाई गयी थी। सौ करोड़ का आंकड़ा छूने में हमें कुल 278 दिन लगे। सरकार का दावा है कि इस वर्ष के अंत तक देश की पूरी वयस्क आबादी, जो लगभग एक अरब है, को टीका लगा दिया जाएगा। इस लक्ष्य के लिए 1.2 करोड़ टीके रोज लगाने पड़ेंगे जबकि अभी तक का औसत लगभग 36 लाख टीकों का है।
बहरहाल, दुनिया में कोरोना के केस भारत से ज्यादा केवल अमेरिका में हुए हैं जबकि इससे होने वाली मौतों में हम अमेरिका और ब्राज़ील से पीछे हैं। ब्राज़ील में कोरोना से मौतों का आंकड़ा हाल ही में छह लाख से ऊपर पहुंचा है। यह अलग बात है कि विशेषज्ञ लगातार ब्राज़ील के इन आंकड़ों पर सवाल उठाते रहे हैं और दुनिया भर ने अमेज़न के जंगलों को काट कर नई कब्रगाहें बनाए जाने की तस्वीरें देखी हैं। अमेरिका में कोरोना से लापरवाह रहे डोनाल्ड ट्रम्प तो चुनाव हार गए, पर ब्राजील में बोल्सेनारो अभी सत्ता में हैं। ब्राज़ील को कभी अमेरिका या भारत जैसे सक्रिय और जीवंत लोकतंत्र में नहीं गिना जाता, पर वहां की 11 सदस्यीय संसदीय समिति ने कोरोना के संदर्भ में सरकारी लापरवाही पर 1200 पन्नों से भी लंबी एक रिपोर्ट तैयार की है जिसमें इस लापरवाही के लिए सीधे राष्ट्रपति जेर बोल्सेनारो को दोषी बताया गया है। यह रिपोर्ट उन्हें मानवता के विरुद्ध अपराध का दोषी करार देती है। पहले इसमें नरसंहार और ह्त्या जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया था, पर अब उन्हें हटा दिया गया।
संसदीय समिति की इस रिपोर्ट को अटार्नी जनरल के सामने प्रस्तुत किया जाएगा, पर कमेटी को अंदेशा है कि इस पर कोई कार्यवाही नहीं की जायेगी क्योंकि ब्राज़ील के अटार्नी जनरल राष्ट्रपति से अपनी नजदीकी निभाने के लिए जाने जाते रहे हैं। कमेटी ने कहा है कि यदि अटार्नी जनरल ने कोई कार्यवाही नहीं ही तो मामला ब्राज़ील की सर्वोच्च अदालत में ले जाया जाएगा, और वहां भी कुछ नहीं हुआ तो अंत में इन्टरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस का दरवाजा खटखटाया जाएगा।
ब्राज़ील में कम से कम तीन स्वास्थ्य मंत्री कोविड-19 के मामले में बोल्सेनारो के अवैज्ञानिक रवैये से नाराज होकर मंत्री पद को लात मार चुके हैं। राष्ट्रपति बोल्सेनारो पर कोरोना के प्रति बेइंतहा लापरवाही बरतने, मौत के आंकड़ों को कम बताने, स्वयं कोविड नियमों को तोड़ने, वैक्सीन खरीद में धांधली, सुस्त टीकाकरण दर और कोरोना संबंधी अफवाहें फैलाने के आरोप हैं। कोरोना के अलावा भी कट्टर दक्षिणपंथी होने के कारण बोल्सेनारो पर बहुत से आरोप लगते रहे हैं और ब्राजील के लगभग हर शहर में उनके विरुद्ध आन्दोलन होते रहे हैं। ब्राज़ील में अगले वर्ष राष्ट्रपति का चुनाव होने वाला है, पर बोल्सेनारो का रवैया जरा भी बदला नहीं है।
पिछले साल ब्राज़ील के सर्वोच्च न्यायालय में राष्ट्रपति जेर बोल्सोनारो पर मुक़दमा दायर किया गया, जिसमें कहा गया था कि राष्ट्रपति संघीय पुलिस को अपने अधिकार में लाना चाहते हैं और इसके वर्तमान प्रमुख को हटा कर अपने पसंदीदा व्यक्ति को इस पद पर बैठाना चाहते हैं। सर्वोच्च न्यायालय में इस मुकदमे की सुनवाई चल रही है। सुनवाई में न्यायाधीश सल्सोड़े मेलो ने कहा कि देश के राष्ट्रपति पर भी वैसे ही सारे क़ानून लागू होते हैं जैसे किसी भी सामान्य व्यक्ति पर। राष्ट्रपति को भी यह अधिकार नहीं है कि वह देश के क़ानून या संविधान की अवहेलना करे।
बोल्सेनारो पर महिलाओं के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग करने, नस्लवादी और रंगभेदी वक्तव्य देने, हिंसा और खूनखराबे को बढ़ावा देने, तानाशाही का समर्थक होने और अमेजन के जंगलों को बर्बाद करने के आरोप लगते रहे हैं। इस खबर से इतना तो स्पष्ट है कि वहां की न्याय व्यवस्था, पुलिस और मीडिया आज भी स्वतंत्र हैं और निष्पक्षता से काम कर रहे हैं। वहां की पुलिस की निष्पक्षता देखिये, जो राष्ट्रपति और उनके परिवार के खिलाफ शिकायतें भी उतनी ही कर्तव्यनिष्ठता के साथ दर्ज करती है, जितना सामान्य नागरिकों के।
ब्राज़ील की संघीय पुलिस अमेरिका की एफबीआई की तरह है और बहुत हद तक निष्पक्ष है। राष्ट्रपति के चहेते न्याय मंत्री सेर्गियो मोरो ने इस विवाद पर मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफ़ा देने के बाद प्रेस कान्फ्रेंस में उन्होंने राष्ट्रपति पर गंभीर आरोप भी लगाए। मोरो के अनुसार राष्ट्रपति पुलिस के काम में हस्तक्षेप चाहते हैं और इसीलिए वे पुलिस प्रमुख को बदलना चाहते हैं, ताकि वे अपने बेटों की पुलिस जांच की खुफिया फाइलों तक पहुँच सकें। ब्राज़ील का मीडिया दुनिया में सबसे प्रखर, बड़ा और निष्पक्ष होने का दावा तो नहीं करता, पर इस हद तक निष्पक्ष है कि सरकार के विरुद्ध भी खबरें प्रकाशित की जाती हैं। एस्तादो दे साओ पाउलो नामक अखबार के अनुसार अगली सुनवाई से पहले सेर्गियो मोरो ऑडियो के तौर पर सर्वोच्च न्यायालय में कुछ महत्वपूर्ण सबूत प्रस्तुत कर चुके हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रपति पर अधिकारों के दुरुपयोग, न्याय प्रक्रिया में बाधा पहुंचाने और भ्रष्टाचार के आरोप स्थापित किए हैं। इस सबके बाद से राष्ट्रपति बोल्सोनारो की लोकप्रियता लगातार कम हो रही है, और हाल में ही करवाए गए एक सर्वेक्षण में 70 प्रतिशत से अधिक नागरिकों ने कहा कि उन्हें पद से हटा देना चाहिए। पिछले वर्ष के सर्वेक्षण में केवल 37 प्रतिशत नागरिकों ने ऐसा माना था। ब्राज़ील के 68 प्रतिशत नागरिकों के अनुसार वे राष्ट्रपति पर भरोसा नहीं करते। राष्ट्रपति बोल्सोनारो दक्षिणपंथियों के गठबंधन का नेतृत्व करते हैं, जिसके पास कोंग्रेस यानी संसद में 210 सीटें हैं, और वामपंथी गठबंधन के पास केवल 134 सीटें। इस कारण राष्ट्रपति पर महाभियोग तो नहीं चलाया जा सकेगा, पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पर बोल्सोनारो का भविष्य अवश्य निर्भर करता है। ब्राज़ील के विपक्ष के साथ ही दुनिया भर के मानवाधिकार कार्यकर्ता उन पर पर्यावरण, संस्कृति और लोकतंत्र को बर्बाद करने का आरोप लगाते रहे हैं।
कोरोना वायरस के संक्रमण की रोकथाम में वे पूरी तरह असफल रहे। अब तक इससे छह लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है। उन पर कोरोना संक्रमण के आंकड़े छुपाने का भी आरोप है। मार्च 2020 के शुरू में वे एक प्रतिनिधिमंडल लेकर डोनाल्ड ट्रम्प से मिलने अमेरिका गए थे। वापसी में उस दल के 20 सदस्य कोरोनाग्रस्त पाए गए। राष्ट्रपति की भी दो बार जांच की गयी, पर इस जांच के परिणाम को जनता के सामने आने से रोक दिया गया।
भले ही यह खबर, ब्राज़ील का अंदरूनी मामला हो, पर इससे उस देश के कथित लोकतंत्र की तार तार हो चुकी मर्यादा का पता तो चलता ही है। एक ऐसा लोकतंत्र जिसमें सरकार का विरोध करने वाले तमाम बुद्धिजीवी और वैज्ञानिक दोषी करार दिए जाते हैं, जेलों में ठूंसे जाते हैं, गायब करा दिए जाते हैं। ऐसा लोकतंत्र जिसमें सरकार का विरोध आपको अपराधी बनाता है और झूठी खबरें फैलाने वाले सत्ता में बैठते हैं। (आभार – समय की चर्चा )
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