न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क

महेंद्र पाण्डेय

हाल में ही अमेरिका में जो बाईडेन प्रशासन ने एक रिपोर्ट सार्वजनिक की है जिसके अनुसार जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि के प्रभावों से पूरी दुनिया में अराजकता बढ़ेगी, पर जिन ग्यारह देशों में इसका ज्यादा असर पड़ेगा उनमें भारत भी शामिल है। यह रिपोर्ट अमेरिका के ख़ुफ़िया संस्थानों और पेंटागन ने साझा तौर पर तैयार की है। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर अमेरिकी ख़ुफ़िया विभाग और रक्षा संस्थानों की यह पहली रिपोर्ट है।

इसके अनुसार पूरी दुनिया तापमान वृद्धि, लगातार सूखा और चरम प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित हो रही है, जिससे लोगों का पलायन और विस्थापन हो रहा है और पानी व खाद्यान्न जैसे संसाधनों पर अधिकार की कवायद चल रही है। जाहिर है कि इससे आर्थिक और सामाजिक अराजकता लगातार बढ़ रही है, पर रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2030 के बाद से इसका व्यापक असर होगा। इन समस्याओं के असर से दुनिया में अस्थिरता और आपसी टकराव बढ़ेगा। इस सबसे वैश्विक समरसता भी प्रभावित होगी।

रिपोर्ट के मुताबिक अस्थिरता तो पूरी दुनिया में बढ़ेगी, लेकिन ग्यारह देश ऐसे हैं जिन पर इसका प्रभाव सबसे अधिक होगा। ये हैं, अफ़ग़ानिस्तान, म्यांमार, भारत, पाकिस्तान, उत्तरी कोरिया, ग्वाटेमाला, हैती, होंडुरास, निकारागुआ, कोलंबिया और इराक। साफ है कि सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्रों में भारतीय उपमहाद्वीप, दक्षिण अमेरिका और मध्य-पूर्व हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि के भौतिक प्रभाव यानी बाढ़, सूखा, चक्रवात, अत्यधिक गर्मी, बादलों का फटना और भूस्खलन बढेंगे, वैसे-वैसे भौगोलिक अस्थिरता बढ़ती जायेगी। इसका असर केवल इन्हीं कुछ देशों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि अमेरिका और उसके मित्र देशों पर भी पड़ेगा क्योंकि वहां उदारवादी सरकारें हैं जिनकी शरणार्थियों को शरण देने की योजनायें हैं।

रिपोर्ट कहती है कि जलवायु परिवर्तन का असर हर क्षेत्र में पड़ रहा है। मध्य अफ्रीकी देश लगातार सूखे से जूझ रहे हैं, प्रशांत महासागर के देश समुद्र तल बढ़ने के कारण डूबते जा रहे हैं, मध्य-पूर्व के देशों में पेट्रोलियम पदार्थों से होने वाली कमाई घटने लगी है और ये देश लगातार सूखा और अत्यधिक गर्मी से भी प्रभावित हैं। रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन के असर से आर्थिक और सामाजिक तनाव बढ़ेगा, इससे राजनैतिक संकट खड़ा होगा और बड़ी आबादी अस्थिर और उग्र होती जायेगी। इन सबसे क्षेत्रीय स्तर पर सत्ता का संतुलन प्रभावित होने लगेगा और संभव है कि अनेक देशों में सरकारी तंत्र ही चरमरा जाएं। बड़े पैमाने पर आबादी का विस्थापन देशों के बाहर ही नहीं बल्कि देशों के भीतर भी होगा, और ऐसा हो भी रहा है।

प्रोसीडिंग्स ऑफ़ नेशनल अकैडमी ऑफ़ साइंसेज में पिछली 4 अक्टूबर को प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार आबादी के सन्दर्भ में दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते शहरों की बड़ी आबादी अत्यधिक गर्मी की चपेट में है। इस अध्ययन के लिए कोलंबिया यूनिवर्सिटी के अर्थ इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिकों ने दुनिया के 13115 शहरों के आबादी, इंफ्रास्ट्रक्चर, तापमान जैसे मानकों का विस्तृत अध्ययन किया। इसके अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी संख्या में लोग शहरों में आ रहे हैं, जिससे अत्यधिक गर्मी झेलने वाली आबादी लगातार बढ़ रही है, और इससे मरने वालों के आंकड़े भी बढ़ रहे हैं। अत्यधिक गर्मी के कारण मानव उत्पादकता प्रभावित हो रही है और फिर अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है। इस अध्ययन के हिसाब से शहरों में इन्फ्रास्ट्रक्चर के जाल, सड़कों, इमारतों और कम पेड़ों के कारण ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में तापमान अधिक रहता है। वर्ष 1983 से 2016 के बीच अत्यधिक गर्मी झेलने वाली आबादी में 200 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। इस समय दुनिया की एक चौथाई आबादी साल-दर-साल अत्यधिक गर्मी की मार झेल रही है। यह मार झेलने वाले शहरों में अधिकतर  भारत, बंगलादेश, चीन, पाकिस्तान और म्यांमार यानी दक्षिण एशिया में स्थित हैं। इसके बाद मध्य-पूर्व के शहर सबसे अधिक प्रभावित हैं।

पर्यावरण के लिहाज से दुनिया के सबसे खतरनाक 100 देशों में से 99 एशिया में हैं, और इनमें सबसे ज्यादा यानी 43 शहर अकेले भारत के हैं। इस पैमाने पर सबसे खतरनाक शहर इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता है। यहाँ वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, अत्यधिक गर्मी और बाढ़ की समस्या है और यह शहर तापमान वृद्धि के प्रभावों के लिए कतई तैयार नहीं है। जकार्ता में भूजल का दोहन इस हद तक किया गया है कि इसे दुनिया का सबसे तेजी से डूबने वाला शहर बताया जाता है। इन खतरनाक शहरों में दूसरे स्थान पर दिल्ली है, तीसरे स्थान पर चेन्नई है, छठे स्थान पर आगरा, दसवें पर कानपुर, 22वें पर जयपुर, 24वें पर लखनऊ और 27वें स्थान पर मुंबई है।

इस सूची के शीर्ष 100 शहरों में केवल पेरू की राजधानी लिमा ऐसा शहर है, जो एशिया में नहीं है। इन 100 शहरों में 43 भारत में हैं और उसके बाद सबसे ज्यादा 37 शहर चीन में हैं। इस रिपोर्ट को बिज़नस रिस्क का विश्लेषण करने वाली कंपनी वेरिस्क मेपलक्रॉफ्ट ने तैयार किया है। इसके मुख्य लेखक विल निकोलस के अनुसार भारत और चीन में एक बड़ा अंतर है। भारत में भविष्य की योजनाओं में पर्यावरण सुधारने के मुद्दे शामिल नहीं हैं तो जाहिर है इस ओर सरकारों की प्राथमिकता नहीं है। भारत में पहले पर्यावरण सुधार के जो कदम उठाये गए हैं, उनका कहीं असर नहीं दिखता और देश की जनता भी पर्यावरण के सन्दर्भ में उदासीन है। दूसरी तरफ चीन पिछले कुछ वर्षों से अपने शहरों में पर्यावरण पर लगातार ध्यान दे रहा है और इसके नतीजे भी जमीनी स्तर पर दिख रहे हैं। चीन में तेजी से बढ़ता माध्यम वर्ग अब जोरशोर से साफ़ हवा और साफ पानी की मांग करने लगा है, जिसका प्रभाव सरकार की हर योजना में दिखता है। वहां सरकार अत्यधिक प्रदूषणकारी उद्योग को बंद करने से नहीं हिचकती, जबकि भारत में ऐसे उद्योग चलते रहते हैं।

बिज़नस रिस्क का विश्लेषण करने वाली कंपनी वेरिस्क मेपलक्रॉफ्ट के अनुसार यह विश्लेषण दुनिया भर की सरकारों को पर्यावरण के बारे में आगाह करता है और अपना कारोबार बढाने और निवेश के सन्दर्भ में बहुत अधिक पर्यावरण संबंधी समस्याओं वाले शहर में कारोबार करने से बचने की चेतावनी देता है। दुनिया की कुल आबादी का लगभग 50 प्रतिशत शहरों में रहता है और शहर ही विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्था का आधार हैं। थोड़ा बदलाव यह आया है कि अब कारोबार करने या इसे बढ़ाने के पहले अधिकतर कम्पनियां स्थानीय पर्यावरण पर ध्यान देती हैं और यह भी आंकती हैं कि जलवायु परिवर्तन से होने वाले प्रभावों के लिए संबंधित शहर कितना तैयार है। इस विश्लेषण में दुनिया के 576 शहरों को शामिल किया गया। इनमें जिन 414 शहरों में पर्यावरण की समस्या गंभीर है उनकी कुल आबादी लगभग 1.4 अरब है। इस विश्लेषण में प्रदूषण, जल संसाधन, तापमान वृद्धि और प्राकृतिक आपदाओं व जलवायु परिवर्तन से निपटने की क्षमता को आधार बनाया गया।

पर्यावरण की दृष्टि से सबसे खतरनाक शहर एशिया, फिर मध्य-पूर्व और फिर उत्तरी अफ्रीका के हैं। वायु प्रदूषण से प्रभावित सबसे अधिक शहर भारत में हैं, पर जल संकट से जूझते सबसे अधिक शहर चीन में हैं। जल प्रदूषण के सन्दर्भ में सबसे ज्यादा प्रदूषित 50 शहरों में से 35 चीन के हैं और जल संकट के मामले में 15 सर्वाधिक खराब स्थिति वाले शहरों में से 13 चीन में हैं। जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि के मामले में सबसे प्रभावित शहर अफ्रीका में सहारा रेगिस्तान के इर्द-गिर्द बसे हैं। ऐसे कुल 45 शहरों में से 40 इस क्षेत्र में हैं। यूरोप के अधिकतर देश पर्यावरण के सन्दर्भ में सबसे सुरक्षित माने गए हैं।

(आभार –  समय की चर्चा )