न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क

महेंद्र पांडेय

हमारे देश ने हाल में ही अरब सागर में उठे चक्रवात तौकते और फिर बंगाल की खाड़ी में उठे यास चक्रवात का सामना किया| इन चक्रवातों से अब जानें तो अधिक नहीं जातीं, पर लाखों लोगों को विस्थापन का दर्द झेलना पड़ता है और भारी मात्रा में घरों, फसलों आदि के आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता है| कोविड-19 के दौर में तो विस्थापन और ज्यादा खतरनाक है। लेकिन समस्या यह है कि ऐसे भयानक चक्रवातों की आवृत्ति और तीव्रता, दोनों ही साल-दर-साल बढ़ते जा रहे हैं|

पहले भी देश के पश्चिमी और पूर्वी सागर तट पर चक्रवात आते थे, पर तब उनकी आवृत्ति इतनी अधिक नहीं थी| पश्चिमी तट पर हिन्द महासागर के पश्चिमी भाग, यानि अरब सागर में उठने वाले चक्रवात आते हैं| हाल में चक्रवात तौकते अरब सागर में ही उठा था, जिसने गुजरात और महाराष्ट्र के बड़े हिस्से को प्रभावित किया| देश के पूर्वी हिस्सों को हिन्द महासागर के पूर्वी भाग, जिसे बंगाल की खाड़ी कहते हैं, में उठने वाले चक्रवात प्रभावित करते हैं| हाल के यास चक्रवात ने ओडिशा और पश्चिम बंगाल के साथ ही बिहार के भी एक बड़े हिस्से को प्रभावित किया है| इस चक्रवात के कारण लाखों लोगों को विस्थापित होना पड़ा|

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ ट्रॉपिकल मेटेरियोलोजी में कार्यरत जलवायु विशेषज्ञ रोक्सी मैथ्यू कोल के अनुसार हिन्द महासागर में पानी का सतही तापमान बढ़ने के कारण उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की संख्या और तीव्रता बढ़ रही है, और तापमान बढ़ने के साथ ही इसका स्तर पहले से भी अधिक खतरनाक होता जाएगा| महासागरों के पानी का सतही तापमान बढ़ने का कारण ग्रीनहाउस गैसों का बढ़ता उत्सर्जन है, जो वायुमंडल को लगातार गर्म करता जा रहा है। इसका असर माहासागारों के सतह के तापमान पर भी पड़ रहा है|

कुछ वर्ष पहले तक अरब सागर के पानी का सतही तापमान 28 डिग्री सेल्सियस से कम रहता था, और वर्ष 1891 से 2000 के बीच इसमें कुल 93 चक्रवात देखे गए थे| अब इसकी सतह का तापमान 31 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो चुका है, और वर्ष 2001 से 2021 के बीच 28 खतरनाक चक्रवात उठ चुके हैं| भारत तौकते से पहले पश्चिमी सागर तट पर निसर्ग, क्यार, मलेया, वायु, हिक्का जैसे चक्रवातों की मार झेल चुका है|

बंगाल की खाड़ी के पानी का सतही तापमान अरब सागर की तुलना में अधिक रहता है, और यह भी तापमान वृद्धि के कारण बढ़ता जा रहा है| इस क्षेत्र में वर्ष 1891 से 2000 के बीच 350 चक्रवात आए थे| वर्ष 2016 में वैज्ञानिक पत्रिका ‘नेचर’ में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार इस क्षेत्र में तापमान वृद्धि के कारण चक्रवातों की तीव्रता और प्रभाव बढ़ता जा रहा है| यास से पहले यहां अम्फान, फानी, बॉब 03 और बुलबुल चक्रवात आ चुके हैं| हाल में ‘करंट साइंस’ में प्रकाशित एक लेख के अनुसार बंगाल की खाड़ी में चक्रवातों की आवृत्ति पिछले 10 वर्षों में दोगुनी बढ़ चुकी है|

यह सही है कि अब समय रहते चक्रवातों के आने की सटीक जानकारी उपलब्ध हो जाती है और बेहतर आपदा प्रबंधन के कारण पूरी जनसंख्या को प्रभावित क्षेत्र से हटा दिया जाता है, पर चक्रवातों से होने वाला आर्थिक नुकसान बढ़ता जा रहा है| हमारे देश की कुल आबादी में से 14 प्रतिशत लोग सागर तटों के आसपास रहते हैं, और वर्ष 2060 तक इसमें से एक-तिहाई आबादी ऐसे क्षेत्रों में रहने लगेगी जहां की ऊंचाई सागर तल से 10 मीटर से भी कम होगी| चक्रवातों की केवल आवृत्ति ही नहीं बढ़ रही, इनकी सक्रियता भी लगातार बढ़ रही है| सागर सतह का तापमान बढ़ने के कारण, अनेक चक्रवात जो शुरुआती दौर में कमजोर रहते हैं, वे भी धीरे-धीरे बहुत ताकतवर हो जाते हैं और भारी नुकसान पहुंचाते हैं| ऐसे चक्रवातों की जानकारी पूर्वानुमान तंत्र से भी आसानी से नहीं मिलती|

महासागरों का औसत तल वर्ष 1993 के बाद से 3.2 मिलीमीटर प्रतिवर्ष की दर से बढ़ चुका है| वर्ष 2015 से 2019 के बीच तो यह बढ़ोत्तरी 5 मिलीमीटर प्रतिवर्ष तक रही जबकि वर्ष 2007 से बढ़ोत्तरी का औसत 4 मिलीमीटर प्रतिवर्ष रहा| इसका मतलब है कि महासागरों के औसत तल में पहले से अधिक बढ़ोत्तरी हो जा रही है| आईपीसीसी की नई रिपोर्ट के अनुसार महासागरों से सम्बंधित भयानक आपदाएं जो अब तक शताब्दी में एक बार आती थीं, वर्ष 2050 के बाद वे वार्षिक घटनाएँ हो जायेंगी| विश्व के महासागरों और ग्लेशियर पर जलवायु परिवर्तन के असर से सम्बंधित इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इनके अनेक प्रभाव तो अभी ही स्पष्ट हो रहे हैं|

जर्मनवाच नामक संस्था द्वारा प्रकाशित “ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स- 2021” के अनुसार चरम मौसम, यानि चक्रवात, बाढ़ और अत्यधिक गर्मी के कारण वर्ष 2019 के दौरान सबसे अधिक मौतें और सबसे अधिक आर्थिक नुकसान भारत में हुआ| वर्ष 2019 के सन्दर्भ में वैसे तो मोजांबिक, ज़िम्बाब्वे और बहमास का स्थान नुकसान के मामले में सबसे आगे है और भारत सातवें स्थान पर है, पर इनसे मौत और आर्थिक नुकसान में हम सबसे आगे हैं|

इस इंडेक्स के अनुसार वर्ष 2019 में चरम प्राकृतिक आपदाओं के कारण भारत में 2267 व्यक्तियों की अकाल मृत्यु हुई, जो दुनिया के किसी भी देश से ज्यादा है और प्रति एक लाख आबादी पर यह औसत 0.17 का रहा| इसी वर्ष चरम प्राकृतिक आपदाओं के कारण भारत में 6881.2 करोड़ डॉलर का बोझ अर्थव्यवस्था पर पड़ा जो हमारी जीडीपी का 0.72 प्रतिशत है| वर्ष 2019 के दौरान भारत में मानसून का समय एक महीना बढ़ गया था, जिसके कारण अनेक हिस्सों में बाढ़ ने नुकसान पहुंचाया| इसी वर्ष देश ने 8 ट्रॉपिकल चक्रवातों का सामना किया, जिनमें से 6 बहुत खतरनाक श्रेणी के थे| बहामास में वर्ष 2019 में चरम प्राकृतिक आपदाओं के कारण प्रति एक लाख आबादी में से 14.7 की असामयिक मृत्यु हो गई, जो दुनिया में सर्वाधिक है| इसी तरह इन आपदाओं के कारण बहामास के सकल घरेलू उत्पाद में से लगभग 32 प्रतिशत का विनाश हो गया|

इस इंडेक्स के अनुसार वर्ष 2000 से 2019 के बीच चरम प्राकृतिक आपदाओं के कारण भारत में 4,75,000 व्यक्तियों की मृत्यु हुई और अर्थव्यवस्था को लगभग 2.56 खरब डॉलर का नुक्सान पहुंचा| वर्ष 2000 से 2019 के बीच होने वाले नुकसान के सन्दर्भ में बनाए गए इंडेक्स में भारत का स्थान 20वां है| इसमें सबसे ऊपर के तीन देश पुएर्तो रिको, म्यांमार और हैती हैं| इस इंडेक्स में इन आपदाओं से होने वाली मौतों के मामले में भारत तीसरे और आर्थिक नुकसान के सन्दर्भ में दूसरे नंबर पर है|

(आभार – समय की चर्चा)