न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क
महेंद्र पाण्डेय
कोविड-19 ने इतना तो साबित कर दिया है कि महामारी के नियंत्रण के मामले में लगभग सभी देशों का हाल एक जैसा है। पिछले वर्ष से लेकर आज तक कोई भी देश शायद ही इससे मुक्त हुआ हो। जिन अमीर देशों पर जरूरत से ज्यादा वैक्सीन भंडारण का आरोप लगा, वहां भी अगर वैक्सीन लगवा चुके लोगों की संख्या बढ़ रही है तो नए संक्रमितों की गिनती भी उसी तेजी से बढ़ रही है।
कोरोना ऐसी महामारी है जिसका असर स्वास्थ्य से अधिक दूसरी सामाजिक समस्याओं पर दिख रहा है। इस वैश्विक महामारी ने सामाजिक असमानता को बढ़ाया, भूख और कुपोषण बढ़ाया, अर्थव्यवस्था को डुबोया, रोजगार छीना और अनेक सरकारों को जनता की समस्याओं से दूर कर दिया। यही कारण है कि पूरी दुनिया में लॉकडाउन की सख्ती के बाद भी कोविड19 के नियंत्रण में सरकारी लापरवाही के कारण पनपी समस्याओं के खिलाफ लगातार आन्दोलन हो रहे हैं।
ग्लोबल पीस इंडेक्स के अनुसार मार्च 2020 से जुलाई 2021 तक दुनिया में कोरोना से जुड़े मसलों के विरोध में दुनिया भर में 50,000 से अधिक जन-आन्दोलन हो चुके हैं, जिनमें से लगभग 5000 हिंसक रहे। सभी आन्दोलन केवल सरकारों की लापरवाही के विरुद्ध थे, ऐसा नहीं है। कई देशों में लॉकडाउन और सरकारों द्वारा घोषित प्रतिबंधों के विरोध में भी आन्दोलन किये गए। इन दिनों थाईलैंड में कोविड19 से निपटने में सरकारी लापरवाही, चरमराती स्वास्थ्य सेवाओं और टीकाकरण की सुस्त रफ़्तार के विरोध में आन्दोलन चल रहे हैं। आंशिक लॉकडाउन और आन्दोलनों पर सरकारी प्रतिबन्ध के बावजूद वहां के लगभग हर शहर में आन्दोलन किये जा रहे हैं और प्रधानमंत्री प्रयुत चन-ओचा से इस्तीफे की मांग की जा रही है। इन आन्दोलनों का आयोजन ‘फ्री यूथ’ नामक छात्र संगठन कर रहा है, पर इसमें भागीदारी आम जनता की है। थाईलैंड की दंगा नियंत्रण पुलिस आन्दोलनकारियों पर पानी की बौछार के साथ, आंसू गैस के गोले भी दाग रही है और अनेक स्थानों पर रबर बुलेट्स भी दागी जा रही हैं।
जुलाई के शुरू से अब तक हर रविवार को कोरोना के नाम पर लगाये गए सरकारी प्रतिबंधों और टीकाकरण के विरुद्ध आन्दोलन किये जा रहे हैं। इन आन्दोलनों में लगभग दो लाख नागरिक शरीक होते हैं। फ्रांस एक ऐसा देश है जहां के अधिकतर नागरिक किसी भी प्रकार के टीकाकरण पर भरोसा नहीं करते। ब्राज़ील में भी पिछले महीने से लगातार आन्दोलन चल रहे हैं। ये आन्दोलन और धरना-प्रदर्शन वहां के हर शहर में आयोजित किये जाते हैं जिनमें बड़ी संख्या में लोग हिस्सा लेते हैं।
ब्राज़ील के राष्ट्रपति जेर बोल्सेनारो कोरोना के शुरुआती दौर से ही अमेरिका के पिछले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के नक़्शे-कदम पर चलते रहे हैं। अमेरिका तो ट्रम्प से मुक्त हो गया, पर बोल्सेनारो का रवैया कोरोना को लेकर बिलकुल नहीं बदला। वे आज भी इसे सामान्य फ्लू से अधिक कुछ नहीं समझते। जाहिर है कि उनकी सरकार इसके नियंत्रण के लिए कभी भी सचेत नहीं रही और इससे होने वाली मौतों के आंकड़ों को छुपाती रही। बोल्सेनारो ने कोरोना के भयानक दौर में भी स्वयं बड़ी रैलियाँ आयोजित कीं और कभी भी मास्क नहीं लगाया। इस समय, जब दुनिया इसकी वैक्सीन लगवा रही है तब बोल्सेनारो सरकार वैक्सीन के नाम पर घोटाला करने में व्यस्त है और वहां वैक्सीन की भयानक कमी है। कोरोना से निपटने में नाकामी और वैक्सीन लगाने की बेहद धीमी दर को लेकर ब्राज़ील में लगातार प्रदर्शन किए जा रहे हैं। ये आन्दोलनकारी अपनी सरकार को नरसंहारी बता रहे हैं।
क्यूबा में पिछले महीने कोविड19 और इससे जुडी समस्याओं को लेकर व्यापक धरना-प्रदर्शन आयोजित किये गए थे। इसमें गरीबी, स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली, महंगाई और मानवाधिकार हनन का मुद्दा भी शामिल था। कहा जाता है कि क्यूबा में दशकों बाद इतने बड़े आन्दोलन किये गए। इन आन्दोलनों के लिए वहां की सरकार बिलकुल ही तैयार नहीं थी, और जब सेना और पुलिस की बर्बर कार्यवाही के बाद भी आन्दोलन जारी रहे तब राष्ट्रपति मिगुएल डिअर कनेल ने अपने समर्थकों को आन्दोलनकारियों के विरुद्ध खड़ा कर दिया। उनके इन समर्थकों ने शांतिपूर्ण आंदोलनों को हिंसक बना दिया, जिससे सेना को आन्दोलनकारियों से सख्ती से निपटने का बहाना मिल गया।
यूरोप में कई देशों में आन्दोलन किये गए हैं। जर्मनी में कई आन्दोलन लॉकडाउन और सरकारी सख्ती के विरुद्ध आयोजित किये गए। इसके अलावा ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, चेक गणराज्य, डेनमार्क, जॉर्जिया, हंगरी, आयरलैंड, नीदरलैंड, स्पेन और यूनाइटेड किंगडम में भी जन-आन्दोलन आयोजित किये गए। नीदरलैंड में तो आन्दोलन हिंसक हो चला था। मध्य-पूर्व के लेबनान और लीबिया में लॉकडाउन के विरुद्ध हिंसक प्रदर्शन किये गए। इजराइल में अनेक धार्मिक संगठनों ने वैक्सीन के विरुद्ध आन्दोलन किया।
लॉकडाउन के खिलाफ कनाडा के टोरंटो और न्यूज़ीलैण्ड के वेलिंगटन में बड़े आन्दोलन किये गए। आश्चर्य यह है कि हमारे देश में कोरोना से निपटने में सरकारी लापरवाही मार्च 2020 से लगातार नजर आ रही है। यहां भी बिना तैयारी के सख्त लॉकडाउन लगाए गए। ऑक्सीजन के अभाव में लोग मरते रहे, नदियों में लाशें बहती दिखीं और इस सबके बीच प्रधानमंत्री का लगातार ‘सब ठीक है’ वाला अंदाज भी किसी व्यापक आन्दोलन को जन्म नहीं दे सका। – (आभार – समय की चर्चा)
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