न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क
(आभार – महेंद्र पाण्डेय
नई दिल्ली। पत्रकारों पर राजद्रोह के मामले में सुप्रीम कोर्ट के हाल के सख्त आदेश के बावजूद, किसी सरकार पर आदेश की अवहेलना का कोई मुकदमा शुरू नहीं हुआ। सैकड़ों पत्रकार या सोशल मीडिया पर पोस्ट डालने वाले अन्य लोग अभी भी विभिन्न जेलों में बिना किसी सुनवाई के बंद हैं| जैसे केरल के पत्रकार कप्पन राजद्रोह और राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर लंबे समय से बंद हैं| विनोद दुआ पर अपने यू-ट्यूब चैनल पर की गई टिप्पणियों के आधार पर हिमाचल प्रदेश में राजद्रोह का केस बनाया गया था, पर कप्पन तो उस शहर तक पहुंच भी नही पाए थे, जहां उन्हें जाना था। उन्होंने कोई रिपोर्टिंग उत्तर प्रदेश में की ही नहीं, पर वे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन गए और राजद्रोही करार दे दिए गए|
वर्ष 2020 में भारत में अपने काम के दौरान तीन पत्रकारों की हत्या कर दी गई। आतंक के साए से जूझ रहे अफ़ग़ानिस्तान, इराक और नाइजीरिया में भी इतने ही पत्रकार मारे गए| पूरी दुनिया में पिछले वर्ष अपना काम करते हुए कुल 42 पत्रकार मारे गए। सबसे ज्यादा 13 पत्रकार मेक्सिको में मारे गए और उसके बाद पाकिस्तान में पांच पत्रकार मारे गए| तीसरा नंबर भारत का है| ये आंकड़े इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ़ जर्नलिस्ट्स के हैं| फेडरेशन के प्रेसिडेंट यूनेस जाहेद के अनुसार इस वर्ष दुनिया में लगभग 235 पत्रकारों को बिना किसी आरोप के जेल में डाला गया|
कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स नामक संस्था वर्ष 2008 से लगातार हर वर्ष ग्लोबल इम्प्युनिटी इंडेक्स प्रकाशित करती है| इसमें पत्रकारों की हत्या या उनके विरुद्ध हिंसा के मामलों में कार्यवाही के अनुसार देशों को क्रम दिया जाता है| इस इंडेक्स में भारत का स्थान 12वां था, जबकि 2019 में 13वां और 2018 में 14वां| इसका मतलब है कि हमारे देश में पत्रकारों की हत्या या उन पर हिंसा के मामलों में सरकार या पुलिस की तरफ से कार्यवाही की स्थिति खासी कमजोर है| इंडेक्स में सोमालिया, सीरिया और इराक सबसे अग्रणी देश हैं| पाकिस्तान 9वें स्थान पर और बांग्लादेश 10वें स्थान पर है| दुनिया के सात देश ऐसे हैं जो वर्ष 2008 से लगातार इस इंडेक्स में शामिल किये जा रहे हैं जिनमें भारत भी है|
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक अफ़ग़ानिस्तान में वर्ष 2018 के बाद से 30 से अधिक पत्रकारों की ह्त्या हो चुकी है| वहां हर ऐसी हत्या को तालिबानी संगठनों से जोड़ दिया जाता है, पर अधिकतर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं मानते हैं कि गृहयुद्ध की विभीषिका झेल रहे देश में खोजी पत्रकारिता से सरकार भी डरती है और ऐसे पत्रकारों को कुचलना चाहती है| अफ़ग़ानिस्तान जर्नलिस्ट्स सेफ्टी समिति के अनुसार देश में लगभग दस हजार पत्रकार हैं जिनमें 20 प्रतिशत से अधिक महिलाएं हैं| महिला पत्रकारों पर खतरे अधिक हैं। पिछले वर्ष मारे गए पत्रकारों में अधिकतर महिलायें थीं| अफ़ग़ानिस्तान जर्नलिस्ट्स सेफ्टी समिति के अध्यक्ष नजीब शरीफी के अनुसार कुछ पत्रकारों ने विवादास्पद खबरें लिखना बंद कर दिया है, पर अधिकतर अपने पेशे में ईमानदार हैं और इसका नतीजा उन्हें भुगतना पड़ रहा है| पिछले छह महीनों में अफगानिस्तान की लगभग 18 प्रतिशत महिला पत्रकारों ने पत्रकारिता छोड़ दी| इस वर्ष अब तक पत्रकारों को 132 सीधी धमकियां मिल चुकी हैं। यह संख्या पिछले वर्ष की तुलना में 26 प्रतिशत अधिक है|
हमारे दूसरे पड़ोसी म्यांमार में सेना लगभग सभी समाचारपत्र और न्यूज़ चैनेल बंद करा चुकी है। अब देश में केवल सरकारी मीडिया चल रहा है| ब्रॉडबैंड है, लेकिन इस पर बहुत सारी पाबंदियां हैं| सैटलाइट डिश पर भी पाबंदी लगा दी गयी है जिसका उल्लंघन करने पर एक वर्ष जेल या 320 डॉलर जुर्माने का प्रावधान है| प्रतिबंधों के बाद कुछ पत्रकार छिप कर ऑनलाइन या केबल टीवी के माध्यम से समाचार भेज रहे थे| सरकारी मीडिया ‘ग्लोबल न्यू लाइट ऑफ़ म्यांमार’ के अनुसार सैटलाइट डिश को इसलिए प्रतिबंधित किया गया कि इससे देश की सुरक्षा और शांति को खतरा था| प्रतिबंधित ‘इरावादी न्यूज़ आउटलेट’ के अनुसार सेना और पुलिस ने अब तक 80 से अधिक पत्रकारों को जेल भेज दिया है| अधिकतर पर धारा 505(ए) के तहत कानूनी कार्यवाही की जा रही है, जो डर का माहौल पैदा करने और फेकन्यूज़ फैलाने से सम्बंधित है| इसमें तीन वर्ष की कैद हो सकती है| हाल में एक लोकप्रिय कवि और स्वतंत्र पत्रकार, खेट थी, की हवालात में सेना ने हत्या कर दी| खेट थी की सबसे लोकप्रिय कविता की एक पंक्ति थी, “वे हमारे सर में गोली मारते हैं, कितने नादाँ हैं वे, उन्हें पता ही नहीं, हमारा आक्रोश सर में नहीं बल्कि ह्रदय में है।”
पाकिस्तान के प्रमुख पत्रकार हामिद मीर ने हाल में एक प्रदर्शन के दौरान कहा, “हमारे घर में घुस कर किए जा रहे हमलों को हम बर्दाश्त नहीं करेंगे, हमारे पास बन्दूक या टैंक तो नहीं है, पर हम तुम्हारे घरों के अन्दर क्या चल रहा है, यह जनता को जरूर बता सकते हैं।” यह प्रदर्शन एक अन्य पत्रकार असद अली तूर के घर में घुस कर आईएसआई अधिकारियों द्वारा की गयी मारपीट के विरोध में था। तूर का कसूर केवल इतना था कि उन्होंने सेना और इमरान सरकार की नीतियों का विरोध किया| हामिद मीर के कार्यक्रम को भी जिओ न्यूज़ चैनल ने रोक दिया है| बीस साल पुराना यह कार्यक्रम अंतिम बार 2007 में रोका गया था जब परवेज मुशर्रफ की सरकार ने देश में इमरजेंसी लगाई थी। उस समय भी पत्रकारों ने आन्दोलन किया था, जिसमें आज के प्रधानमंत्री इमरान खान भी शिरकत किया करते थे, और कहते थे कि मैं प्रधानमंत्री बन गया तो मीडिया बिलकुल स्वतंत्र होगा| हामिद मीर के अनुसार हास्यास्पद यह है कि स्वतंत्र मीडिया का दावा करने वाले इमरान खान के शासन में मीडिया पर जितनी पाबंदियां हैं, वैसी किसी दौर में नहीं थीं|
असद अली तूर पर हमले से पहले अप्रैल में पत्रकार अबसार आलम पर गोलियों की बौछार की गयी थी। जुलाई 2020 में पत्रकार मतिउल्ला जान का अपहरण कर लिया गया था| ‘फ्रीडम नेटवर्क पाकिस्तान’ के अनुसार इस्लामाबाद को भले ही सबसे सुरक्षित शहर माना जाता हो, पर पत्रकारों के लिए या सबसे खतरनाक शहर है| वर्ष 2020 में पाकिस्तान में 148 पत्रकारों को या तो धमकाया गया या फिर उन पर हमले किये गए| ऐसे किसी मामले में कोई गिरफ्तारी नहीं की गयी। उल्टे पीड़ित पत्रकारों को ही किसी मामले में फंसा दिया गया| पाकिस्तान के सूचना मंत्री फवाद खान कहते हैं, पाकिस्तान में मीडिया जितना स्वतंत्र है उतना तो किसी भी देश में नहीं है| पर, उन्हीं का मंत्रालय एक ऐसा क़ानून, पाक मीडिया डेवलपमेंट अथॉरिटी आर्डिनेंस 2021 लेकर आया है, जिसके तहत सरकार किसी भी समाचार को रोक सकती है, किसी भी मीडिया हाउस का लाइसेंस रद्द कर सकती है और किसी भी पत्रकार को बिना कारण बताये हिरासत में ले सकती है| सोशल मीडिया या ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टलों पर भी यही नियम लागू होंगे| इस क़ानून के तहत सरकारी आदेश की अवहेलना पर तीन वर्ष की जेल और भारी जुर्माना हो सकता है| इसमें विवाद के निपटारे के लिए एक ट्रिब्यूनल भी होगा, जिसके सारे सदस्य सूचना मंत्रालय के अधिकारी हैं|
उधर बांग्लादेश में वर्ष 2020 में 247 पत्रकारों पर हमले किये गए या फिर उन्हें हिरासत में लिया गया| केवल कोविड-19 को लेकर सरकार की लापरवाही उजागर करने वाले 85 पत्रकारों को गिरफ्तार किया जा चुका है| हाल में प्रतिष्ठित महिला पत्रकार रोजीना इस्लाम को स्वास्थ्य विभाग से गोपनीय जानकारी चुराने के आरोप में गिरफ्तार किया गया| रोजीना लगातार कोविड-19 के आंकड़ों में हेराफेरी की खबरें दे रही थीं। उनकी गिरफ्तारी पर अनेक मानवाधिकार संगठनों ने संयुक्त राष्ट्र से हस्तक्षेप की गुहार लगाई है|
चीन में शुरू से ही मीडिया पर सरकारी नियंत्रण है। फिर भी 2020 से पहले विदेशी पत्रकारों को कैद करने या उन्हें देश से निकालने के मामले पहले बहुत कम होते थे| पत्रकार हिरासत में तो लिए जाते थे, पर उन पर हमले नहीं होते थे| लेकिन पिछले लगभग एक साल में पचास से ऊपर विदेशी पत्रकारों को देश छोड़ने का आदेश दिया गया और इनमें कई हिरासत में भी लिए गए| स्थानीय पत्रकारों पर हमले और उन्हें जेल भेजने की घटनाएँ भी कई गुना बढ़ गयी हैं| सोशल मीडिया पर सरकार की नीतियों के विरुद्ध लिखने वाले सैकड़ों नागरिक या पत्रकार चीन में सलाखों के पीछे हैं| हाल में एक नागरिक-पत्रकार को गिरफ्तार किया गया जिसने केवल इतना बताया था कि गलवान घाटी में भारतीय फ़ौज के साथ झड़प में अनेक चीनी सैनिक मारे गए थे और घायल हुए थे|
उधर नेपाल में पत्रकारों की स्थिति बेहतर चल रही थी, पर कोविड-19 के दौर में लगभग चालीस पत्रकार महामारी की सही स्थिति बताने के आरोप में हिरासत में लिए गए और उन पर केस दायर हुए। नेपाल में लगभग 16 प्रतिशत पत्रकार महिलायें हैं, इनमें से 48 प्रतिशत रेडियो से, 41 प्रतिशत प्रिंट मीडिया से, 10 प्रतिशत टेलीविज़न से और शेष ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से जुडी हैं| इनका एक समूह है, संचारिका समूह| इस समूह के अनुसार महिला पत्रकारों को सच बताने पर सोशल मीडिया के माध्यम से प्रताड़ित किया जाता है, और कुछ महिला पत्रकार तो यौन उत्पीडन का शिकार भी हुई हैं|(आभार – समय की चर्चा)
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