विनीत दीक्षित
नई दिल्ली। मॉस्को में भारत और चीन के रक्षा मंत्रियों की बातचीत हुई और बेकार गई। फिर वहीं पर दोनों देशों के विदेश मंत्री मिले और सीमा पर तनाव घटाने की सहमति भी बनी, मगर उसका भी कोई मतलब नहीं निकला। स्थानीय सैनिक कमांडरों की बातचीत तो मानों होती ही नाकाम रहने के लिए है। एलएसी यानी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल को लेकर अब तक जितने भी समझौते हुए हैं, उन सभी को लद्दाख में चीन निरर्थक बना दिया है।
स्थिति यह है कि 10 सितंबर को भारत और चीन के विदेश मंत्रियों के मॉस्को में मिलने से ठीक पहले चुशूल में ही नहीं, पैंगोंग लेक पर भी पीपल्स लिबरेशन आर्मी की तरफ से जम कर हवाई फ़ायरिंग की गई। जवाब में भारतीय सेना ने भी करीब 200 राउंड फ़ायर किए। रक्षा विशेषज्ञ मान रहे हैं कि अगर दोनों देशों के बीच बातचीत यों ही फेल होती रही तो गोली तो कभी भी चल सकती है। और हर बार वह हवाई फायर नहीं होगा।
बहरहाल, पूरी एलएसी के लगभग सभी अहम ठिकानों पर दोनों तरफ की सेनाएं अपनी दीर्घकालीन तैनाती के इंतजामों में जुटी हैं। इनमें बर्फ पर लड़ाई की तैयारी भी शामिल है। यह इसलिए कि सर्दियों में जब पैंगोंग लेक का पानी जम जाएगा और पूरी झील बर्फ का मैदान बन जाएगी, तब चीनी सेना जमी हुई झील के रास्ते भारतीय मोर्चों पर कब्जा करने की कोशिश कर सकती है। नवम्बर के आखिरी हफ्ते से पैंगोंग लेक का बेहद खारा पानी जमना शुरू हो जाता है जो जनवरी आने तक बर्फ के फर्श में तब्दील हो जाता है।
लोकसभा में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के बयान से साफ हो गया की चीनी सेना लद्दाख के उस क्षेत्र के भीतर आ गए हैं जिसे भारत अपना कहता रहा है। पहली बार सरकार ने औपचारिक रूप से कहा है कि पूर्वी लद्दाख में तीन जगह गोगरा, कोंकाला और पैंगोंग लेक के उत्तरी व पश्चिमी दोनों छोरों पर चीन की तरफ से एलएसी को बदलने की कोशिश हुई है। उन्होंने कहा कि पूर्वी लद्दाख में इस समय चीन के करीब 4500 से 5000 सैनिक एलएसी के अंदर वाले विवादास्पद क्षेत्र में बैठे हुए हैं। और चीन ने अपने इलाके वाली एलएसी के ठीक पीछे 35000 से 40000 सैनिक तैनात कर दिए हैं। भारत के भी करीब 40000 सैनिक लद्दाख सीमा पर किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तैयार खड़े हैं।
चीनी कूटनीति के जानकार कहते हैं कि पूर्वी लद्दाख में चीन की हरकतों से एक बात साफ हो गई है कि बीजिंग अपने महत्वाकांक्षी बेल्ट प्रोजेक्ट के रास्ते के दोनों तरफ 150-200 किलोमीटर तक किसी प्रकार की समस्या नहीं चाहता। भारतीय वायुसेना की दौलत बेग ओल्डी हवाई पट्टी काराकोरम दर्रे ज्यादा दूर नहीं है। इस हवाई पट्टी को हर मौसम में जोड़े रख सकने वाली 255 किमी लंबी डरबुक से श्योक होकर जाने वाली सड़क हाल ही में पूरी बन के तैयार हुई है।
जब से यह पक्की सड़क बनी है चीन को समझ में आ गया है कि अब भारतीय सेना जब चाहे अक्साई चिन से गुजरते चीन के उस खास हाईवे तक बहुत कम समय में पहुंच सकती है जिसके बनने के कारण 1962 का युद्ध हुआ था। यह विवादित हाईवे अब चीन के बेल्ट प्रोजेक्ट का खास हिस्सा बन गया है। यह उसका हाईवे नंबर जी-219 है जो पाकिस्तान से आने वाले काराकोरम हाईवे नंबर एन-35 से जुड़ता है। इसके जरिये सन् 2030 तक चीन की पहुंच पाकिस्तान में ग्वादर बन्दरगाह तक होने वाली है। इस तमाम प्रोजेक्ट पर चीन बेतहाशा खर्च भी कर रहा है।
सन् 2010 में हिंदूकुश पहाड़ों में आए ज़बरदस्त भूकंप से काराकोरम हाईवे का एक हिस्सा नष्ट हो गया था। चीन ने अब उस रास्ते को फिर बनवा दिया है। वह बिलकुल नहीं चाहता कि इस हाईवे पर कोई समस्या खड़ी हो क्योंकि सड़क के जरिए चीन से पाकिस्तान जा सकने का यही एक रास्ता है। यही नहीं, चीन इस बात से भी नाराज और परेशान है कि भारत फिर से अक्साई चिन को लेने की बात कर रहा है। याद करिये, गृहमंत्री अमित शाह संसद में कह चुके हैं कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और अक्साई चिन को हम लेकर रहेंगे, क्योंकि ये भारत के हिस्से हैं।
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