विनीत दीक्षित
नई दिल्ली। क्या चीन लद्दाख में एक नई एलएसी गढ़ने की फिराक में है? भारत और चीन के सैनिक अधिकारियों की छठे दौर की बातचीत में भी चीन ने पूर्वी लद्दाख के उन स्थानों से पीछे हटने से इन्कार कर दिया जहां उसकी सेना इस समय है। बल्कि चीन का रवैया कुछ ऐसा था कि उसके लिए अब यही एलएसी है और वह भारत वाली एलएसी को नहीं मानता। इसलिए बात आगे नहीं बढ़ सकी और फिर मिलने का भरोसा देकर खत्म हो गई।
पूर्वी लद्दाख में एलएसी यानी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन ने भारत को मीठी मीठी बातों में उलझाए रखा और खामोशी से पीपल्स लिबरेशन आर्मी के हजारों सैनिकों को भारतीय चौकियों के बिलकुल नजदीक तक पहुंचा दिया। ताज़ा जानकारी के मुताबिक इस समय केवल लद्दाख में चीन के फौजी दस्ते भारतीय सेना की करीब पचास चौकियों के नजदीक तैनात हैं।
इतना ही नहीं, पूरी एलएसी पर कम से कम पंद्रह स्थान ऐसे हैं जिनके आसपास चीन ने हवाई पट्टियां या हेलीपैड बना लिए हैं और वहां एस-400 मिसाइलें भी तैनात कर दी हैं। इन नए अड्डों में कैलाश पर्वत से सटा अत्याधुनिक सैनिक अड्डा भी शामिल है जिसे चीन के दबाव में गूगल अर्थ ने अपने सिस्टम से गायब कर दिया है।
हम जिन एस-400 मिसाइलों की बात कर रहे हैं उन्हें रूस बनाता है। चीन ने ये मिसाइलें रूस से खरीदी हैं। भारत ने भी रूस से इन मिसाइलों का सौदा कर रखा है, लेकिन अभी भारत को इनकी डिलीवरी नहीं हो पायी है। ये मिसाइलें विरोधी सेना के लड़ाकू विमानों से निपटने में अचूक मानी जाती हैं। उपग्रह से ली गयी तस्वीरों के आधार पर कहा जा रहा है कि चीन ने इन मिसाइलों की तैनाती चूमर और देपसांग इलाके में की है।
पीपल्स लिबरेशन आर्मी को अच्छी तरह पता है कि तिब्बत के पठार से चीन के लड़ाकू विमान अपनी आधी क्षमता पर ही काम कर सकते हैं। इसीलिए उसने कई जगह रॉकेट और मिसाइल रेजीमेंट को तैनात करना जरूरी समझा।
बहरहाल इस हफ्ते दोनों तरफ के सैनिक अफसरों की बातचीत में चीन ने देपसांग के मैदान से भी पीछे हटने से साफ इन्कार कर दिया। यही वह मैदान है जहां चीनी सेना एलएसी के इस तरफ कई किलोमीटर अंदर आ गयी है। देपसांग का मैदान काराकोरम दर्रे के नजदीक है और यहीं पर भारतीय वायु सेना की 16600 फीट ऊंचाई पर बनी दौलत बेग ओल्डी वाली हवाई पट्टी है। यह हवाई पट्टी इतनी सक्षम है कि यहां हरक्यूलिस अथवा सी-130जे विमान को भी उतारा जाता है। इसलिए चीन को यह हवाई पट्टी बेतरह खटकती है।
ऐसे कई स्थान हैं जहां भारत और चीन के सैनिकों के बीच इतनी कम दूरी रह गई है कि वे एक-दूसरे की गतिविधियों को देख सकते हैं। इस बीच एक नई समस्या शुरू हुई है। देपसांग और पैंगोंग लेक पर चीनी सेना ने बड़े-बड़े लाउडस्पीकरों पर तेज़ और कर्कश आवाज में पंजाबी गाने बजाने शुरू कर दिए हैं। दिन ही नहीं, रात में भी ये गाने कभी भी अचानक बजने लगते हैं। सन् 1962 के युद्ध के दौरान अरुणाचल प्रदेश में चीनी सीमा पर भी यही मंज़र था। पीपल्स लिबरेशन आर्मी का यह पुराना बल्कि ‘लॉन्ग मार्च’ वाले दिनों का मनोवैज्ञानिक हथियार है जो एक बार फिर लद्दाख में इस्तेमाल किया जा रहा है।
इस बीच चीन के सरकारी अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने भारत विरोधी लेखन और आक्रामक कर दिया है। इस अखबार का कहना है कि अब छह दौर की सैनिक कमांडरों की बातचीत के बाद दोनों देशों को सीमा के सवाल को फिर नए सिरे से सुलझाने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए। और जब तक किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच जाते, तब तक दोनों देश अपनी सेनाओं को आमने सामने आने से रोकें। मगर सच्चाई यह है कि अक्टूबर-नवंबर में यानी सर्दियों से पहले ही बर्फबारी से इस इलाके के तमाम सारे रास्ते बंद हो जाएंगे। ऐसे में यह कहना हास्यास्पद है कि अब दोनों तरफ से कोई अपनी सेना को सीमा पर न भेजे। सच्चाई यह भी है कि भारतीय सेना ने चीनी हरकतों का पता चलने के बाद तेजी से मूवमेंट करके पोजीशन ले ली है। लद्दाख में जितने सैनिक चीन ने आगे किए हैं, भारत ने भी अपने लगभग उतने ही जवान वहां उतार दिए हैं। फिलहाल एलएसी से छेड़खानी केवल लद्दाख तक सीमित है। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से ऐसी कोई खबर नहीं है।
Comments are closed for this post.