आरसी गंजू
पाकिस्तान की सियासत में फौज की भूमिका हमेशा निर्णायक रही है। इन दिनों प्रधानमंत्री इमरान खान की पीटीआई यानी पाकिस्तान तहरीके इस्लाम और हाल में बने विपक्षी पार्टियों के गठबंधन पीडीएम यानी पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट के बीच जंग जैसे हालात हैं। मगर इन हालात में भी दोनों ही पक्ष फौज से दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहते।
इमरान खान सरकार के रवैये और विपक्ष के बवाल पर फौज करीबी नज़र बनाए हुए है। विपक्ष का गठबंधन पीडीएम देश भर में सरकार के खिलाफ अभियान चला रहा है। यह असल में रैलियों और प्रदर्शनों का एक लंबा सिलसिला है जिसका अंत जनवरी 2021 में इस्लामाबाद के लिए एक निर्णायक मार्च से होगा। और यह सब ऐसे समय में हो रहा है जब पाकिस्तान भारी आर्थिक संकट से गुजर रहा है, जब ग्रोथ नेगेटिव में है और महंगाई दर दहाई में पहुंच गई है।
गुजरांवाला, कराची और क्वेटा में पीडीएम ने जबरदस्त रैलियां करके दिखाईं जो इमरान सरकार की परेशानी का सबब बनीं। ऐसी अगली रैली 25 नवंबर को मुल्तान में होने जा रही है। कहने को अन्य मांगों के अलावा पीडीएम यह भी मांग कर रहा है कि देश की राजनीति में सेना का दखल ख़त्म हो। मगर उसके नेता सेना के खिलाफ ज्यादा बोलते नहीं दिखते। सेना भी खामोशी से सत्ता बचाने और हथियाने के लिए अयोग्य व भ्रष्ट राजनीतिकों को आपस में लड़ते देख रही है। राजनीतिक दलों की यह लड़ाई राजनीति में सेना के दखल का कारण या बहाना भी बन सकती है।
ज्यादातर विपक्षी नेता कहते हैं कि इमरान खान की नीतियां फेल हो गई हैं। कराची में पीडीएम की रैली इतनी जोरदार थी कि सरकार ने झल्ला कर प्रदर्शनकारियों के विरुद्ध सेना का इस्तेमाल किया जिससे बात और बिगड़ गई। नवाज शरीफ की पार्टी पीएमएल-एन के नेता मोहम्मद ज़ुबैर के मुताबिक सिंध के मुख्यमंत्री मुराद अली शाह ने उन्हें बताया कि फौज के रेंजर प्रांत के आईजी पुलिस को अगवा कर सेक्टर कमांडर के दफ्तर ले गए और उनसे जबरन गिरफ्तारी के आदेश जारी करवाए गए। इसके बाद रिटायर्ड कैप्टन मोहम्मद सफदर को गिरफ्तार किया गया जो कि नवाज शरीफ की बेटी और पीएमएल-एन की उपाध्यक्ष मरियम नवाज के पति हैं।
इस पर मरियम नवाज ने इमरान खान को चेतावनी दी कि फौज को अपनी गंदी सियासत में न घसीटें और फौज के प्रवक्ता बनने की कोशिश भी न करें। साथ ही उन्होंने संविधान के दायरे में काम करने वाले सेना के अफसरों व जवानों का आभार भी जताया। उनके शब्द थे कि ‘मैं फौज के ऐसे अफसरों को सेल्यूट करती हूं।‘ हालांकि निर्वासन में रह रहे पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पाकिस्तानी सेना के मौजूदा नेतृत्व पर भी हमले कर रहे हैं। मगर उनकी बेटी ने वैसा नहीं किया। अब तो मरियम के पति सफदर को छोड़ भी दिया गया है।
वैसे यह दिलचस्प है कि एक-दूसरे के विरोधी होते हुए भी नवाज शरीफ और आसिफ अली जरदारी ने न सिर्फ एक-दूसरे से, बल्कि दक्षिणपंथी फजलुर रहमान और कथित सेकुलर राष्ट्रवादी असफंदयार और अचकज़ई से हाथ मिला लिए हैं। इन सबकी मदद से एक अजीब सा ‘शहरी, सामंती, धार्मिक और सेकुलर’ गठबंधन खड़ा किया गया है। गठबंधन का दावा है कि उसका मकसद देश में लोकतंत्र को बचाना है।
इस्लामाबाद में रहने वाले पाकिस्तान के एक वरिष्ठ पत्रकार राना अबरार खालिद ने फोन पर बताया कि देश के जो आर्थिक हालात हैं उनमें ऐसा नहीं लगता कि सेना सत्ता पर काबिज हो सकती है, क्योंकि सेना तो निर्वाचित सरकारों के आर्थिक स्थायित्व कायम कर लेने पर उसका मजा लेने के लिए सत्ता हथियाती आई है। क्या पाकिस्तानी सेना में भी किसी तरह का विभाजन है? इस सवाल पर खालिद कहते हैं कि सेना के नेतृत्व ने अपनी वफादारी अमेरिका की बजाय चीन की तरफ मोड़ दी है, लेकिन अमेरिकी कैंप को पूरी तरह छोड़ना भी उसके लिए आसान नहीं है।
पाकिस्तान के तमाम निष्पक्ष पर्यवेक्षक इस बात पर एक राय हैं कि विपक्ष ने जो गठबंधन बनाया है उसका मुख्य मकसद सत्ता हासिल करना है। अगर यह गठबंधन सत्ता हासिल करने में कामयाब हो जाता है तो सत्ता के बंटवारे की रूपरेखा क्या होगी। इस मामले में दो विकल्प बताए जा रहे हैं। गठबंधन में क्योंकि पीएमएल-एन का प्रभुत्व सबसे ज्यादा है, इसलिए सत्ता में आने पर पहला विकल्प यह होगा कि नवाज शरीफ के भाई शाहबाज शरीफ प्रधानमंत्री बना दिए जाएं और उनके बेटे हमज़ा पंजाब के मुख्यमंत्री बनें। दूसरा विकल्प यह है कि पहले दो साल पीपीपी के सैयद मुराद अली शाह प्रधानमंत्री रहेंगे जो कि अभी सिंध के मुख्यमंत्री हैं। उनके बाद बिलावल भुट्टो यह पद संभाल लेंगे, क्योंकि तब तक वे पैंतीस साल के हो जाएंगे जो कि पाकिस्तान में प्रधानमंत्री बनने के लिए कानूनन ज़रूरी है। अगर यह विकल्प लागू होता है तो पंजाब में पीएमएल-एन अपनी सरकार बनाएगी। इसी तरह जेयूआईएफ खैबर पख्तूनख्वा में गठबंधन सरकार की अगुआई करेगी जबकि बलोचिस्तान में बीएनपी मेंगल को नेतृत्व मिलेगा। सिंध में पीपीपी की ही सत्ता रहेगी और नए मुख्यमंत्री होंगे सईद गनी।
सत्ता मिलने पर कौन दूसरे के लिए प्रधानमंत्री पद छोड़ता है, यह तो भविष्य ही बताएगा। लेकिन इस सबमें यह तथ्य अपनी जगह बरकरार है कि मौजूदा सरकार अगर गिरेगी तो उसके पीछे फौज की शह होगी। इसी तरह, जो अगली सरकार बनेगी उसमें भी परदे के पीछे सेना की सहमति होनी जरूरी है। इस सच्चाई को शायद मरियम नवाज़ अपने पिता से ज्यादा समझती हैं। (आभार – समय की चर्चा )
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