बॉस्टन, अमेरिका से सुधांशु मिश्रा
वोटों की गिनती अभी पूरी नहीं हुई है, पर नतीजों का आभास होने लगा है। इसके साथ ही देश में ‘कोल्ड वॉर’ जैसी स्थितियां बन गई हैं। एक तरफ रेड अमेरिका है तो दूसरी तरफ ब्लू अमेरिका। रेड यानी रिपब्लिकन और ब्लू यानी डेमोक्रेट। पूरे देश में जिसे ‘बाइबल बेल्ट’ के तौर पर जाना जाता है, जिसमें पूरा मध्य अमेरिका, उत्तर-मध्य और दक्षिण का काफी हिस्सा शामिल है, असल में रेड अमेरिका है। अमेरिका पहले कभी इतना बंटा हुआ नहीं था। हालत यह है कि जब डोनाल्ड ट्रंप अदालत का दरवाजा खटखटा रहे थे तब देश के कई शहरों में उनके विरुद्ध प्रदर्शन हो रहे थे।
मिशिगन और विस्कॉंसिन ने जो बाइडेन को अच्छी बढ़त दे दी है और वे अब तक पचास फीसदी से ज्यादा पॉपुलर वोट हासिल कर चुके हैं। यह सन् 1828 के बाद से एक रिकॉर्ड है। लेकिन सच्चाई यह भी है कि अपने कार्यकाल की तमाम गड़बड़ियों के बावजूद डोनाल्ड ट्रंप को भी लगभग आधे अमेरिकियों ने वोट दिया है। दूसरा मजाक यह कि देश में कोरोना वायरस से ढाई लाख लोगों की मौतों के बावजूद ट्रंप और बाइडेन दोनों के चुनाव अभियान में रिकॉर्ड तोड़ खर्च किया गया। ट्रंप के रवैये की वजह से रिपब्लिकन खेमे के कई प्रमुख लोग पार्टी से विदा हो गए, लेकिन ट्रंप का प्रभाव और उनका लड़ाकूपन काफी हद तक आज भी बरकरार है।
डेमोक्रेट पार्टी को कई राज्यों में उम्मीद के मुताबिक समर्थन मिला है, लेकिन सेनेट और निचले सदन में उनका प्रदर्शन अपेक्षित नहीं रहा। मतलब यह कि बाइडेन जीत भी जाते हैं तो अनेक मामलों में उनके एजेंडा में बाधाएं आएंगी। मामूली ही सही, दोनों सदनों में रिपब्लिकन पार्टी अपनी ताकत बढ़ाने में कामयाब रही है।
एक बार फिर, इस चुनाव में चुनावी सर्वेक्षण बुरी तरह पराजित हुए हैं। ज्यादातर सर्वे जो बाइडेन को आसानी से जीतता बता रहे थे। साथ ही वे कांग्रेस के दोनों सदनों में भी डेमोक्रेट को बढ़त बनाते दिखा रहे थे। सर्वे करने वाली एजेंसियों, मीडिया घरानों और विश्लेषकों को यह चुनाव धता बताते हुए जा रहा है। बहुत से सर्वे विशेषज्ञों के सामने तो शायद अब अस्तित्व का संकट खड़ा हो जाएगा। (आभार – समय की चर्चा )
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