अमिताभ पाराशर

केवल बिहार विधानसभा का चुनाव ही नहीं, उसके साथ कई राज्यों में हुए उपचुनाव भी भाजपा के लिए राहत लेकर आए। उपचुनावों के नतीजों से साफ है कि कर्नाटक, गुजरात और उत्तर प्रदेश में सत्ताधारी भाजपा का प्रभाव बरकरार है, बल्कि मध्यप्रदेश में जहां 28 सीटों के उपचुनाव में शिवराज सिंह चौहान की सरकार को बचाने के लिए कम से कम नौ सीटें जीतना जरूरी था, वहां भी उसे कोई समस्या नहीं आई।  

  मध्यप्रदेश में जिन 28 सीटों पर उपचुनाव था उनमें से 25 उन विधायकों के इस्तीफे से खाली हुई थीं जो कभी कांग्रेस में थे और जिनमें से ज्यादातर ज्योतिरादित्य सिंधिया के सेथ कांग्रेस छोड़ भाजपा में आए थे। वैसे 28 में से नौ सीटें जीतना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं था, लेकिन भाजपा ने 19 सीटें जीत कर शिवराज सरकार को और मजबूत कर लिया। यह अलग बात है कि भाजपा ने जो सीटें खोई हैं उनमें शिवराज सरकार के तीन मंत्री भी हार गए। इनमें इमरती देवी भी थीं जिनके बारे में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की एक अशोभनीय टिप्पणी विवाद का कारण बन गई थी।

  ये उपचुनाव शिवराज सिंह चौहान के लिए जितने अहम थे उतने ही ज्योतिरादित्य के लिए थे। उन्हें दिखाना था कि अपने इलाके में उनकी कितनी पकड़ है। इसी तरह कांग्रेस और कमलनाथ के लिए ये उपचुनाव भारी महत्व रखते थे क्योंकि इनके नतीजे सत्ता में उनकी वापसी का रास्ता भी बना सकते थे। मगर कमलनाथ अपनी महत्ता बहाल नहीं कर सके। ज्योतिरादित्य ने कोई बहुत अच्छा प्रदर्शन तो नहीं किया, पर वे अपना सम्मान बचा पाने में कामयाब रहे। मगर उपचुनावों में यह जीत सबसे ज्यादा मुख्यमंत्री शिवराज का कमाल मानी जा रही है।

  भाजपा इस बात पर संतोष प्रकट कर सकती है कि देश के ग्यारह राज्यों में विधानसभाओं की कुल 58 सीटों के लिए हुए उपचुनावों में से 40 पर उसने विजय प्राप्त की। गुजरात में भाजपा ने अपना प्रभाव फिर से साबित किया। वहां आठ सीटों पर उपचुनाव था और सभी पर भाजपा जीती जबकि इनमें से ज्यादातर सीटें कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे के कारण खाली हुई थीं। गुजरात के पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को मामूली बहुमत मिला था। लेकिन बाद में कई कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे और अब उपचुनाव में सफलता से पार्टी की सीटों की संख्या में कासी बढ़ोत्तरी हुई है।

  इस तरह उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने छह सीटें जीत कर अपनी पकड़ साबित की। कर्नाटक की दो सीटों का उपचुनाव भी भाजपा के नाम रहा। तेलंगाना की इकलौती सीट पर भी भाजपा ने जीत दर्ज की। इसके अलावा मणिपुर में एक सीट भाजपा को मिली जबकि दूसरी पर एक निर्दलीय प्रत्याशी जीता।

  इन उपचुनावों में भाजपा के लिए केवल एक ही जगह नतीजा निराशाजनक रहा। ऐसा हरियाणा में हुआ जहां विधानसभा की केवल बरोदा सीट पर उपचुनाव था। इस पर कांग्रेस ने फिर से कब्जा जमाया लिया है। केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ राज्य में किसानों के आंदोलन का इस क्षेत्र में अच्छा प्रभाव रहा है। इस लिहाज से यह उपचुनाव राज्य के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला दोनों के लिए प्रतिष्ठा का मामला था। इस जीत से कांग्रेस में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का सिक्का कुछ और जम गया है।

  कांग्रेस को छत्तीसगढ़ में मरवाही सीट हासिल करने में भी कोई दिक्कत पेश नहीं आई। यह हमेशा से अजीत जोगी परिवार के प्रभाव की सीट मानी जाती रही है, लेकिन इस बार जोगी परिवार को कोई भी सदस्य यहां उम्मीदवार नहीं बन सका। झारखंड में दो सीटों पर  उपचुनाव था जिसमें से एक सीट कांग्रेस के हिस्से आई जबकि एक झारखंड मुक्ति मोर्चा को मिली। उधर ओडिशा में दो सीटों पर उपचुनाव हुआ और दोनों जगह सत्तारूढ़ बीजद की जीत हुई। (आभार – समय की चर्चा )