विनीत दीक्षित

सीबीआई को किसी भी मामले की जांच के लिए संबंधित राज्य की मंज़ूरी लेना जरूरी है। एक मामले में फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह बात कही। अदालत ने कहा कि यह प्रावधान संविधान के संघीय चरित्र के अनुरूप है। दूसरी तरफ, अब तक आठ राज्य सीबीआई जांच के लिए दी गई आम सहमति वापस ले चुके हैं।

  जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस बीआर गवई की पीठ का कहना था कि डीएसपीई यानी दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना कानून के तहत सीबीआई को किसी भी मामले की जांच से पहले संबंधित राज्य सरकार से सहमति लेना अनिवार्य है। अदालत ने कहा कि इस कानून की धारा 5 केंद्र सरकार को केंद्र शासित प्रदेशों से परे सीबीआई की शक्तियों और अधिकार क्षेत्र का विस्तार करने में सक्षम बनाती है, लेकिन जब तक कि डीएसपीई अधिनियम की धारा 6 के तहत राज्य संबंधित क्षेत्र के भीतर इस तरह के विस्तार के लिए अपनी सहमति नहीं देता है, तब तक यह स्वीकार्य नहीं है। उसने आगे कहा कि यह प्रावधान संविधान के संघीय चरित्र के अनुरूप है।

  यह फैसला उत्तर प्रदेश में फर्टिको मार्केटिंग एंड इनवेस्टमेंट प्राइवेट लिमिटेड और अन्य के खिलाफ सीबीआई में दर्ज मामले को लेकर था। इस मामले के आरोपियों का कहना था कि इस कानून की धारा 6 के तहत राज्य सरकार की सहमति नहीं होने पर सीबीआई के पास जांच करने का अधिकार नहीं है। फैसले में कहा गया कि एफआईआर दर्ज करने से पहले सहमति हासिल नहीं की गई तो जांच का कोई मतलब नहीं होगा।

  सरकार की दलील थी कि डीएसपीई कानून की धारा 6 के तहत पूर्व सहमति अनिवार्य नहीं है, बल्कि यह सिर्फ निर्देशिका है। इस पर अदालत ने कहा कि उत्तर प्रदेश ने भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम 1988 और अन्य अपराधों की जांच के लिए पूरे राज्य में सीबीआई की शक्तियों के विस्तार और अधिकार क्षेत्र के लिए सामान्य सहमति दे रखी है। लेकिन इसमें यह शर्त है कि राज्य सरकार की पूर्व अनुमति के बिना, राज्य सरकार के नियंत्रण में, लोक सेवकों से संबंधित किसी भी मामले में ऐसी कोई जांच नहीं की जाएगी। लोक सेवकों की जांच के लिए डीएसपीई कानून की धारा 6 के तहत राज्य सरकार की अधिसूचना के जरिये सहमति दी जानी चाहिए। (आभार – समय की चर्चा )