न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क
महेंद्र पाण्डेय
हाल के चुनावों के पहले राउंड के नतीजों के बाद आइसलैंड पहला यूरोपीय देश बन गया था जहां की संसद, अल्थिंग, में महिला सदस्यों की संख्या पुरुषों से अधिक हो गयी थी। मगर दूसरे राउंड के नतीजों के बाद स्थिति बदल गयी और महिला सांसदों की संख्या 48 प्रतिशत रह गयी। वहां की संसद में 63 सीटें हैं जिनमें महिलाओं की संख्या पहले राउंड के नतीजों के बाद 52 प्रतिशत यानी 33 थी, जो कि दूसरे और आखिरी राउंड के बाद 30 यानी 48 प्रतिशत रह गयी।
यूरोप में महिला संसदों के मामले में आइसलैंड के बाद स्वीडन का नंबर है जहां 47 प्रतिशत सांसद महिलायें हैं। यूरोपीय देशों में यह संख्या सर्वाधिक है। यह खबर इसलिए विशेष है क्योंकि इस वर्ष यानी 2021 में लैंगिक समानता और सशक्तीकरण से सम्बंधित बहुत कम समाचार मिले हैं, हालांकि वर्ष के शुरू में ही यूरोप का, एस्तोनिया, इस दौर में अकेला देश बन गया जहां राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों महिलायें हैं। इसके बाद म्यांमार में प्रधानमंत्री आंग सान सुकी की सरकार का सेना ने तख्ता पलट दिया गया। अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं को बराबरी का दर्जा था, मगर अब उनकी गतिविधियों पर तालिबान ने अंकुश लगा दिया है। साथ ही दुनिया के अनेक पुरुष राष्ट्राध्यक्षों को चुनौती देने वाली जर्मनी की चांसलर एंजेला मार्केल का युग ख़त्म हो रहा है।
आइसलैंड, यूरोप का अकेला देश होता जहां महिला संसद सदस्यों की संख्या 50 प्रतिशत या इससे अधिक होती। मगर पूरी दुनिया में देखें तो पांच देशों में यह स्थिति है। सबसे आगे रवांडा है, जहां यह संख्या 61 प्रतिशत है। इसके बाद क्यूबा में 53 प्रतिशत, निकारागुआ में 51 प्रतिशत, मेक्सिको में 50 प्रतिशत और आश्चर्यजनक तौर पर यूनाइटेड अरब एमिरात में महिला संसद सदस्यों की संख्या 50 प्रतिशत है। आइसलैंड की संसद में महिलाओं के लिए कोई आरक्षण नहीं है, जबकि अधिकतर लैटिन अमेरिकन, अफ्रीकी और प्रशांत क्षेत्र के देशों की संसद में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित हैं।
हमारे देश में राज्यसभा और लोकसभा दोनों को मिला कर महिला संसद सदस्यों की संख्या 13 प्रतिशत है, जिसे देश के इतिहास में सर्वाधिक कहा जाता है। राज्यसभा के कुल 245 सदस्यों में से 25 महिलायें हैं, जबकि लोकसभा की 543 सीटों में से 78 महिलाओं के पास हैं। हमारे देश के राजनैतिक दलों की विशेषता यह है कि सभी दल चुनावों से पहले तक लैंगिक समानता की बातें करते हैं, पर जब टिकट दिए जाते हैं तो पुरुषों का वर्चस्व रहता है।
आइसलैंड की विशेषता यह है कि यूरोप का यह पहला देश था जहां 1980 में संसद में किसी महिला सदस्य को चुना गया था। यहाँ हमेशा राजनैतिक अस्थिरता का माहौल रहता है और वर्ष 2007 से 2017 के बीच इस अस्थिरता के कारण पांच बार चुनाव कराने पड़े थे। वर्ष 2017 में लेफ्ट ग्रीन मूवमेंट की जकोब्सदोत्तिर के नेतृत्व में विभिन्न दलों के गठबंधन की सरकार बनी जिसने चार साल का कार्यकाल पूरा किया। वर्ष 2008 के बाद यह केवल दूसरा मौका था जब सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया। इस गठबंधन ने फिर से बहुमत हासिल किया है, पर जकोब्सदोत्तिर के भविष्य पर अभी प्रश्नचिह्न लगा हुआ है। उनके दल को पिछले चुनावों की तुलना में कम सीटें मिली हैं। उनके दल की लोकप्रियता भले ही कम हो गयी हो, पर उनकी अपनी लोकप्रियता बढ़ती जा रही है।
कोविड-19 की बेहतरीन रोकथाम करने वाले नेताओं में उन्हें गिना जाता है। आइसलैंड की कुल आबादी लगभग चार लाख है और वहां कोरोना से केवल 33 मौतें दर्ज की गईं हैं। इसके अलावा जकोब्सदोत्तिर ने प्रोग्रेसिव इनकम टैक्स लागू किया, सोशल हाउसिंग के बजट को बढ़ाया और महिला कर्मचारियों के गर्भवती होने पर मातृत्व अवकाश के साथ ही पितृत्व अवकाश को भी लागू किया। अपने कार्यकाल में उन्होंने लैंगिक समानता के साथ ही हैप्पीनेस इंडेक्स और दूसरे सामाजिक सरोकारों वाले अंतरराष्ट्रीय इंडेक्स में लगातार अपने देश को शीर्ष पर बनाए रखा। आइसलैंड के चुनावों में जलवायु परिवर्तन सबसे प्रमुख मुद्दा था, और इसकी रोकथाम के लिए जकोब्सदोत्तिर ने लगातार प्रयास किए थे।
यूएन वीमेन के अनुसार वर्ष 1960 के बाद से दुनिया के 57 देशों में 71 महिलायें राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री का पद संभाल चुकी हैं, जिनमें से लगभग एक-तिहाई चुनाव जीत कर नहीं बल्कि किसी राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री की मृत्यु के बाद शेष कार्यकाल के लिए नामित की गईं थीं। दुनिया में सबसे पहले देश की सत्ता संभालने का काम श्रीमाओ भंडारनायके ने श्रीलंका में किया था। हमारे देश में भी एक महिला प्रधानमंत्री और एक महिला राष्ट्रपति रही हैं। फ़िनलैंड और न्यूज़ीलैण्ड दो ऐसे देश हैं जहां महिलायें तीन बार सत्ता संभाल चुकी हैं। दूसरी तरफ चीन, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब और अमेरिका में आज तक कोई राष्ट्राध्यक्ष महिला नहीं रही। पिछले अमेरिकी चुनावों में पहली बार एक महिला उपराष्ट्रपति, कमला हैरिस, चुनी गईं।
इस समय दुनिया में 24 देशों में 25 महिलायें राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री के पद पर हैं। यह संख्या बड़ी जरूर लगती है, पर यूएन वीमेन के आकलन के अनुसार इस दर से राष्ट्राध्यक्षों के बीच लैंगिक समानता में 130 वर्ष और लगेंगे| दुनिया में 21 प्रतिशत मंत्री महिलायें हैं। चौदह देश ऐसे भी हैं जहां महिला मंत्रियों की संख्या 50 प्रतिशत से अधिक है। दुनिया में 25 प्रतिशत संसद सदस्य महिलायें हैं और कुल छह ऐसे देश हैं जहां महिला सांसदों की संख्या 50 प्रतिशत या अधिक है। महिला संसद सदस्यों और महिला मंत्रियों के सन्दर्भ में भारत वैश्विक औसत से बहुत पीछे है। कुल 19 देशों में कुल संसद सदस्यों में से 40 प्रतिशत से अधिक महिलायें हैं। इनमें से नौ देश यूरोप में, पांच दक्षिण अमेरिका में, चार अफ्रीका में और एक प्रशांत क्षेत्र में है।
कहा जा रहा है कि आइसलैंड में महिला सांसदों की बड़ी संख्या से दुनिया में लैंगिक समानता को नई दिशा मिलेगी. मगर दूसरी तरफ मेक्सिको और संयुक्त अरब अमीरात का उदाहरण हमारे सामने है जहां 50 प्रतिशत महिला सांसदों के बाद भी महिलायें आजाद नहीं हैं। (आभार – समय की चर्चा )
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