न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क

बॉस्टन, अमेरिका से सुधांशु मिश्रा

महाभियोग प्रस्ताव भले खारिज हो गया हो, लेकिन डोनाल्ड ट्रम्प साफ बच निकले हैं, ऐसा भी नहीं है। देश की दर्जनों अदालतों में सैकड़ों दीवानी और फौजदारी मुकदमे उनके स्वागत में तैयार हैं। इनमें सबसे संगीन वह मामला है जिसमें ट्रम्प ने जार्जिया प्रांत के चुनाव नतीजे निरस्त करने के लिए प्रत्यक्ष दबाव डाला था। इस मामले की जांच अंतिम चरण में पहुंच चुकी बताई गई है। ट्रम्प के आर्थिक घोटालों पर न्यूयार्क प्रांत में विचाराधीन फौजदारी मामले भी बस खुलना ही चाहते हैं। कहने की जरूरत नहीं कि ट्रम्प का बाकी जीवन मुकदमेबाजी में ही गुज़रने का खतरा है और पद से हटने के बाद यह सारा खर्च उन्हें अपनी जेब से ही देना होगा।

सत्ता में रहते हुए यौन उत्पीड़न के जो संगीन आरोप ठंडे बस्ते में थे, वे भी अब खुल गए हैं। इस बीच संकेत हैं कि रिपब्लिकन पार्टी में ‘ट्रम्पवाद’ को लेकर विद्रोह जैसी स्थिति बन गई है, और ट्रम्प-समर्थक रिपब्लिकन लोग अपनी अलग पार्टी बनाने की फिराक में हैं। ट्विटर से प्रतिबंधित किए जाने के बाद से ट्रम्प अपना स्वतंत्र सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बनाने की बात कर रहे हैं जो अब लगभग तैयार बताया जा रहा है। 2024 में फिर चुनाव लड़ने की बात वे पहले ही कह चुके हैं। दूसरे महाभियोग से बाल-बाल बचे ट्रम्प ने जो बयान दिया उससे भी इसकी पुष्टि होती है। उन्होंने कहा, ‘हमारा अभियान अब शुरू ही हुआ है…यह लंबा चलने वाला है।’

ट्रम्प की धमकियों पर अविश्वास की कोई वजह नहीं है। सत्ता से बाहर रहते हुए भी वे देश की नाक में दम कर सकते हैं। इटली, पेरू, अर्जेंटीना इसके उदाहरण हैं जहां व्यक्ति-आधारित राजनीति और सत्ता का खामियाजा लोगों को लंबे समय से भुगतना पड़ रहा है। सत्ता हारने को अपने साथ ‘अन्याय’ का राग अलापते हुए बेलरस्कोनी इटली में, फूजीमोरी पेरू में और पेरोंवादी अर्जेटीना में बरसों बाद भी राजनीतिक और सामाजिक धमाचौकड़ी व अफरातफरी मचाए हुए हैं। क्या ‘ट्रम्पवाद’ उसी रास्ते पर है? अभी तक के संकेतों से तो ऐसा ही लगता है। ताजा देशव्यापी सर्वेक्षणों से पता चलता है कि औसतन 76 प्रतिशत रिपब्लिकन वोटर अब भी ट्रम्प के साथ हैं। इसका अर्थ हुआ कि महाभियोग के लिए सेनेट में प्रस्तुत किए गए अकाट्य सबूतों के बावज़ूद ट्रम्प का जनाधार बना हुआ है। यही नहीं, रिपब्लिकन पार्टी की प्रांतीय शाखाओं ने प्रतिनिधि सभा और सेनेट के उन सदस्यों के विरुद्ध कार्रवाई भी शुरू की है जिन्होंने मतदान में ट्रम्प को दोषी माना था। यानी, ट्रम्पवाद न केवल जिंदा है, रिपब्लिकन पार्टी पर उसकी जकड़न भी मजबूत है।

पूर्व राष्ट्रपति जॉन कैनेडी जब मैसाच्युसेट्स प्रांत से सेनेटर थे तब उन्होंने एक पुस्तिका निकाली थी जिसमें उन्होंने अपने पूर्ववर्ती आठ सेनेटरों की प्रशस्ति में लिखे गए लेख संकलित किए थे कि किस तरह पिछले 150 सालों में उन्होंने आदर्शों को अपने राजनीतिक करियर के ऊपर रखा था और सेनेट में वही फैसले लिए थे जो देश और व्यापक समाज के हित में थे। इसी तरह बीती 13 फरवरी को सात रिपब्लिकन सेनेटरों ने 50 डेमोक्रेटिक सेनेटरों के साथ ट्रम्प को कैपिटल बिल्डिंग पर चढ़ाई का दोषी ठहरा कर संविधान और अपने आदर्शों का गौरव बढ़ाया। इसके बावज़ूद ट्रम्प बच तो गए। उन्हें चुनाव लड़ने के अयोग्य भी नहीं ठहराया जा सका, लेकिन यह बात अमेरिकी इतिहास में सदा के लिए दर्ज हो गई कि ट्रम्प ने संविधान के प्रति वफादारी की शपथ का घिनौना उलंघन किया जिसके लिए 57 प्रतिशत सेनेटरों ने उन्हें उत्तरदायी माना। सोचें, इनकी तुलना में बाकी 43 सेनेटरों को इतिहास कैसे याद करेगा?

ट्रम्प के बचने से बहुसंख्य देशवासियों को निराशा हुई। अनेक को यह न्याय की हार जैसी नागवार गुज़री, लेकिन इससे भी भयानक निराशा इस बात से होती है कि 43 प्रतिशत सेनेटरों ने ट्रम्प का बचाव किया और उन्हें फिर चुनाव लड़ने को कहा। उन्होंने कहा कि महाभियोग डेमोक्रेटिक पार्टी का राजनीतिक स्टंट है, ट्रम्प के खिलाफ सबूत फर्जी हैं, पद से हट चुके राष्ट्रपति पर महाभियोग की संविधान में अनुमति नहीं है, आदि। यही सब कह कर रिपब्लिकन पार्टी का धुर-अतिवादी धड़ा देश के लोगों को आपस में लड़ाने की उम्मीद में बैठा था। लेकिन सेनेट के इन सात साहसी रिपब्लिकन सदस्यों ने अतिवादी धड़े को करारा जवाब दिया। ‘ट्रम्प अपनी अलग पार्टी बनाएं’, यह बात उसके बाद ही उठाई गई जब ट्रम्पवादियों को समझ में आ गया कि रिपब्लिकन पार्टी में ज़मीर वाले लोग अभी बचे हैं।

कैपीटल बिल्डिंग पर हमले को लेकर देश कितना विचलित और आंदोलित था, इसके प्रमाण जनवरी में हुए अनेक देशव्यापी सर्वे से सामने आए। औसतन 66 प्रतिशत अमेरिकी इसके लिए ट्रम्प को सज़ा देने के पक्ष में थे। संसद की इमारत पर चढ़ाई के दौरान मरे लोगों के परिवार वालों ने भी एलान किया है कि वे ट्रम्प पर व्यक्तिगत मुकदमे ठोक रहे हैं। इसके अलावा, एफबीआई ने जिन ढाई सौ लोगों को गिरफ़्तार किया है उनमें अधिकांश ने अपने बचाव में कहा है कि वे ट्रम्प के बुलाने पर गए थे और वहां जो कुछ हुआ वह ट्रम्प के निर्देशानुसार ही हुआ।

देश का कोई संविधान विशेषज्ञ सेनेट के मुकदमे में ट्रम्प की पैरवी के लिए तैयार नहीं हुआ था। हार कर ट्रम्प को ऐसे दो वकील चुनने पड़े जो मामूली कार एक्सीडेंट आदि के मुकदमे लड़ते रहे हैं। इतना सब होने के बावजूद ट्रम्प ने दूसरे महाभियोग के 57-43 वोट को ‘अपनी विजय’ कहा। ताजा खबर यह है कि फ़्लोरिडा प्रांत में ट्रम्प के फार्म हाऊस में उनके पद पर रहते हुए बनाया गया हैलीपैड अधिकारियों ने तोड़ दिया है। वेस्ट पाम बीच नामक जिस शहर में यह फार्म हाऊस है वहां के अधिकारियों ने आरोप लगाया है कि ट्रम्प ने शहर के अनेक कानून तोड़े हैं जिनके कारण वे शहर में ‘अवांछित’ हैं। (आभार – समय की चर्चा )