न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क
महेंद्र पाण्डेय
पर्यावरण वैज्ञानिक इस दौर को ‘मानव युग’ कहते हैं, क्योंकि पृथ्वी पर हर जगह मानव पहुँच चुके हैं। मनुष्य का जो उत्पाद सही मायने में सर्वव्यापी है, वह है प्लास्टिक का कचरा। इसका प्रभाव इस कदर बढ़ चुका है कि जिस तरह मनुष्य के विकास के क्रम को ताम्बा युग और लौह युग में बाँटा जाता है, उसी तरह आज का युग प्लास्टिक युग कहा जाने लगा है। प्लास्टिक पर सबसे अधिक चर्चा महासागरों के सन्दर्भ में की गयी है, पर अब तो यह दुनिया के सबसे ऊंचे शिखर माउंट एवेरेस्ट पर, पृथ्वी के दोनों ध्रुवों पर, हवा में, पानी में, यहाँ तक कि खाद्य पदार्थों में भी मिलने लगा है।
प्लास्टिक के पांच मिलीमीटर से छोटे आकार के टुकड़े, जिन्हें माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है, और 0.001 मिलीमीटर से छोटे टुकडे जिन्हें नैनोप्लास्टिक कहा जाता है, पृथ्वी के हर हिस्से में मिल रहे हैं और इनकी सांद्रता तमाम आकलनों से अधिक है।
पार्टिकल एंड फाइबर टेक्नोलॉजी जर्नल में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार गर्भवती चुहिया के फेफड़े से गर्भ में पल रहे शिशु के ह्रदय, मस्तिष्क और दूसरे अंगों तक माइक्रोप्लास्टिक आसानी से पहुँच जाता हैl इस अध्ययन को रुत्गेर्स यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर फोएबे स्ताप्लेतों की अगुवाई में किया गया। इसके अनुसार जिन गर्भस्थ शिशुओं में माइक्रोप्लास्टिक या नैनोप्लास्टिक पहुंचता है, उनका वजन सामान्य शिशुओं से कम रहता है। अध्ययन के दौरान जब गर्भवती चुहिया को माइक्रोप्लास्टिक के माहौल में रखा गया तब महज 90 मिनट के भीतर यह प्लास्टिक प्लेसेंटा तक पहुँच गया।
वर्ष 2019 और 2020 के दौरान किये गए अनेक अध्ययनों में गर्भवती महिलाओं के प्लेसेंटा में और पल रहे गर्भस्थ शिशुओं में नैनोप्लास्टिक पाए गए हैं। अक्टूबर 2020 में डबलिन के ट्रिनिटी कॉलेज के वैज्ञानिकों द्वारा प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार जिन शिशुओं को प्लास्टिक की बोतल से दूध पिलाया जाता है, उनके शरीर में दूध के साथ लगातार नैनोप्लास्टिक जाता है। प्लास्टिक का कचरा महासागर के जीवों से लेकर गायों के पेट तक पहुँच रहा हैl इन सबकी खूब चर्चा भी की जाती है, पर वर्ष 2019 में प्रकाशित एक शोधपत्र बताता है कि एक औसत मनुष्य प्रतिवर्ष भोजन के साथ और सांस के साथ प्रतिवर्ष लगभग सवा लाख प्लास्टिक के टुकड़े अपने शरीर के अन्दर पहुंचा रहा है। यह अनुसंधान एनवायर्नमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ।
इस शोधपत्र के मुख्य लेखक यूनिवर्सिटी ऑफ़ विक्टोरिया के वैज्ञानिक डॉ किएरन कॉक्स हैं। इस दल ने खाद्य पदार्थों में मौजूद प्लास्टिक से सम्बंधित अध्ययनों, हवा में प्लास्टिक की सांद्रता और मनुष्य के प्रतिदिन के औसत खाद्य पदार्थों के आधार पर बताया कि उम्र और लिंग के आधार पर औसत मनुष्य के शरीर में प्रतिवर्ष 74000 से 121000 के बीच प्लास्टिक के टुकड़े पहुंचते हैं। प्रतिदिन एक सामान्य मनुष्य का शरीर प्लास्टिक के 142 टुकड़े खाद्य पदार्थों के साथ और 170 टुकड़े सांस के साथ ग्रहण करता है। यदि कोई व्यक्ति हमेशा केवल बोतलबंद पानी पीता है, तब उसके शरीर में प्रतिवर्ष 90000 प्लास्टिक के अतिरिक्त टुकड़े पहुंच जाते हैं।
प्लास्टिक के नुकसान यहीं तक सीमित नहीं हैं। नए अनुसंधान इसे तापमान वृद्धि और जलवायु परिवर्तन से भी जोड़ने लगे हैं। सेंटर फॉर इंटरनेशनल एनवायर्नमेंटल लॉ नामक संस्था के कराये गए एक अध्ययन के अनुसार केवल एक बार इस्तेमाल किया जा सकने वाला प्लास्टिक जलवायु परिवर्तन में बड़ी भूमिका निभा रहा है। अनुमान है कि वर्ष 2050 तक दुनिया में कुल कार्बन उत्सर्जन में से 13 प्रतिशत से अधिक का योगदान प्लास्टिक के उत्पादन, उपयोग और अपशिष्ट से होगा, जो लगभग 615 कोयले से चलने वाले ताप बिजलीघरों जितना होगा। इस संस्था के अनुसार प्लास्टिक के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों की तो खूब चर्चा की जाती है, पर इसके तापमान वृद्धि में योगदान को नजरअंदाज कर दिया जाता है।
विश्व में बीस नदियाँ ऐसी हैं जिनके माध्यम से महासागरों में बड़ी मात्रा में प्लास्टिक पहुंच रहा है। इनमें पहले स्थान पर चीन की यांग्तज़े नदी है, जिससे प्रतिवर्ष 333000 टन प्लास्टिक महासागरों तक पहुंचता है। दूसरे स्थान पर गंगा है जिससे 115000 टन प्लास्टिक प्रतिवर्ष जाता है। तीसरे स्थान पर चीन की क्सी नदी, चौथे पर चीन की हुंग्पू नदी और पांचवें स्थान पर नाइजीरिया और कैमरून में बहने वाली क्रॉस नदी है।
इन बीस नदियों में से चीन की छह, इंडोनेशिया की चार, नाइजीरिया की तीन नदियाँ शामिल हैं। इनके अलावा एक-एक नदी भारत, ब्राज़ील, फिलीपींस, म्यांमार, थाईलैंड, कोलंबिया और ताइवान की है। स्पष्ट है की महासागरों तक प्लास्टिक पहुंचाने वाली अधिकतर नदियाँ एशिया में स्थित हैं। वर्ष 2014 में वैज्ञानिकों के एक दल ने अनुमान लगाया था कि महासागरों में 5.25 ट्रिलियन प्लास्टिक के टुकडे हैं, जिनका वजन 25 लाख टन हैl पर, नए आकलन बताते हैं की महासागरों में प्लास्टिक की मात्रा इससे लगभग 10 गुना अधिक है। वर्ष 2019 के आकलन के अनुसार महासागरों के प्लास्टिक केवल महासागरों में ही नहीं रहते, बल्कि इसमें से 136000 टन प्लास्टिक हर वर्ष वायुमंडल में मिल जाता है। महासागरों में प्लास्टिक की सघनता का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि कुछ जगहों पर प्लास्टिक का घनत्व 19 लाख टुकड़े प्रति वर्गमीटर तक है।
प्लास्टिक के छोटे टुकड़े जो हवा में तैरते हैं और सांस के साथ हमारे अन्दर जाते हैं, उन पर खतरनाक रसायनों, हानिकारक बैक्टीरिया और वायरस का जमावड़ा भी हो सकता है। कुछ मामलों में इसके असर से कैंसर भी हो सकता है। प्लास्टिक का मानव शरीर में आकलन कठिन काम है, शायद इसीलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन लगातार बताता है कि प्लास्टिक हर जगह है, मानव अंगों में भी है, पर इससे कोई नुकसान नहीं होता। पिछले साल एरिज़ोना स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने शरीर में प्लास्टिक की उपस्थिति को परखने का एक नया तरीका खोजा। वरुण कलाकार, इस दल की अगुवाई कर रहे हैं और इनके अनुसार अधिकतर प्लास्टिक उत्पादन में बिसफिनॉल ए नामक रसायन का उपयोग किया जाता है, यदि इस रसायन को मानव उत्तकों में मापा जाए तो इससे प्लास्टिक का पता लगाया जा सकता है। इस अध्ययन दल ने मानव उत्तकों के जितने भी नमूनों का परीक्षण किया, सबमें बिसफिनॉल ए नामक रसायन की उपस्थिति पाई गयी। अमेरिका की एनवायर्नमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी के अनुसार बिसफिनॉल ए के असर से विकास और प्रजनन से सम्बंधित प्रक्रियाएं बाधित होती हैं। इस अध्ययन को अमेरिकन केमिकल सोसाइटी की अगस्त 2020 के बैठक में प्रस्तुत किया जा चुका है।
वैज्ञानिक सीधे तौर पर तो नहीं बताते, पर यदि माइक्रोप्लास्टिक और नैनोप्लास्टिक पर वायरस और बैक्टीरिया पनप सकते हैं, तो जाहिर है कि कोविड-19 के वायरस भी इनके द्वारा फ़ैल सकते हैं। वैज्ञानिक पहले ही बता चुके हैं कि यह वायरस हवा में सक्रिय रहता है और प्लास्टिक की सतह पर आठ घंटे से अधिक समय तक सक्रिय रह सकता है। (आभार – समय की चर्चा )
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