न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क
अमिताभ पाराशर
नई दिल्ली। इन दिनों हैदराबाद में राजनैतिक क्षेत्रों में बहुत से लोग मान रहे हैं कि मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव जल्दी ही अपने बेटे केटी रामाराव को सत्ता सैंप सकते हैं। केटी रामाराव फिलहाल अपने पिता की सरकार में मंत्री हैं।
केसीआर के तौर पर मशहूर मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव तेलंगाना में अपनी पार्टी जड़ें बखूबी जमा चुके हैं। उनकी लोकप्रियता में कहीं कोई कमी नहीं दिखती। मगर माना जा रहा है कि अपनी उम्र और स्वास्थ्य को देखते हुए वे अपने बेटे केटी रामाराव को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप सकते हैं। बेटे केटी रामाराव को केटीआर कहा जाता है और वे केवल मंत्री होते हुए भी मुख्यमंत्री से ज्यादा लोकप्रिय बताए जाते हैं।
आगामी 24 जुलाई को केटीआर पैंतालीस साल के हो जाएंगे। अटकलें लगाई जा रही हैं कि क्या मुख्यमंत्री अपने बेटे के जन्मदिन पर यह घोषणा कर सकते हैं। इस अटकल की वजह यह है कि केसीआर किसी भी नए काम के लिए ज्योतिष और वास्तु आदि का खासा ख्याल रखते हैं और तेलंगाना सरकार के नए सचिवालय में भी कामकाज की शुरूआत जुलाई के आसपास ही होगी। कई लोगों का मानना है कि पुराने सचिवालय में वास्तु की खामियों को देखते हुए ही वे अभी बेटे को मुख्यमंत्री नहीं बना पा रहे हैं।
वैसे केसीआर मुख्यमंत्री पद छोड़ने की बात से इन्कार करते हैं। लेकिन राज्य के राजनीतिक विश्लेषकों बल्कि खुद उनकी पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति के अनेक नेताओं तक को लग रहा है कि वे बेटे को कुर्सी सौंप सकते हैं। वैसे भी स्वास्थ्य के कारण अब केसीआर सार्वजनिक कार्यक्रमों में कम ही दिखते हैं। विश्लेषकों के हिसाब से केसीआर को यह डर सता सकता है कि अगर समय रहते उन्होंने पार्टी और सत्ता की कमान बेटे को नहीं सौंपी तो पार्टी में विभाजन तक हो सकता है।
टीआरएस महासचिव और संसदीय दल के नेता केके केशव राव मुख्यमंत्री बदलने की अटकलों को अफवाह से ज्यादा कुछ नहीं मानते। मगर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रेवंथा रेड्डी मानते हैं कि केसीआर के किसी भी फैसले का अनुमान कोई नहीं लगा सकता। केसीआर का भतीजा टी हरीश राव भी मंत्री है और बेटे और भतीजे के बीच सत्ता की होड़ भी केसीआर के लिए चिंता का कारण हो सकती है। विधानसभा चुनाव से पहले विपक्ष के आरोपों को देख केसीआर ने बेटे और भतीजे दोनों को मंत्रि पद से हटा दिया था। मगर बेटे को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बना कर उन्होंने यह जता दिया था कि केटीआर ही उनका राजनैतिक वारिस है।
पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी के चुनाव अभियान की अगुआई भी बेटे ने ही की थी। यह काम जिस आत्मविश्वास के साथ केटीआर ने किया था उससे भी केसीआर का विश्वास उनमें बढ़ा। उनके परिवार के करीबी लोगों का तो कहना है कि विधानसभा चुनावों के बाद निजी बातचीत में वे अपनी राजनैतिक विरासत बेटे को सौंपने की बात कई बार कह चुके थे। ( आभार – समय की चर्चा )
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