न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क

सुशील कुमार सिंह

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रिमंडल से बारह मंत्रियों की छुट्टी कर दी है और 36 नए लोगों को मंत्री बनाया है। बुधवार को राष्ट्रपति भवन में कुल 43 मंत्रियों ने शपथ ली। इनमें सात ऐसे हैं जो पहले राज्य मंत्री थे और अब उन्हें कैबिनेट रैंक दिया गया है। माना जा रहा है कि कोरोना की दूसरी लहर में मिले नकारात्मक प्रचार और पश्चिम बंगाल के चुनाव नतीजों की रोशनी में यह भारी भरकम बदलाव किया गया है।

इस फेरबदल में उत्तर प्रदेश का खास ख्याल रखा गया है जहां कुछ ही महीने बाद विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं। अब केंद्रीय कैबिनेट में उत्तर प्रदेश के कुल सोलह मंत्री हो गए हैं। लेकिन अगर इसी हिसाब से सोचें तो पंजाब और गोवा और उत्तराखंड का प्रतिनिधित्व बढ़ाया नहीं गया है जबकि इन राज्यों में भी उत्तर प्रदेश के साथ ही चुनाव हैं। साफ है कि मोदी सरकार उत्तर प्रदेश को लेकर ज्यादा चिंतित और सावधान है।

बहरहाल, अब मनसुख मांडविया देश के नए स्वास्थ्य मंत्री हैं, धर्मेंद्र प्रधान नए शिक्षा मंत्री, किरेन रिजिजू नए कानून मंत्री, अनुराग ठाकुर नए सूचना व प्रसारण मंत्री, अश्विनी वैष्णव नए रेल, संचार व आईटी मंत्री, ज्योतिरादित्य सिंधिया नए नागरिक उड्डयन मंत्री, भूपेंद्र यादव नए पर्यावरण व श्रम मंत्री और आरसीपी सिंह नए इस्पात मंत्री हैं। गृहमंत्री अमित शाह नए बनाए गए सहकारिता मंत्रालय का काम भी देखेंगे। मीनाक्षी लेखी विदेश और संस्कृति राज्य मंत्री बनाई गई हैं जबकि मध्यम और लघु उद्यम मंत्रालय नितिन गडकरी से लेकर नारायण राणे को दे दिया गया है। असम के पूर्व मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल को जहाजरानी और आयुष मंत्री बनाया गया है। असम के विधानसभा चुनावों के बाद उन्होंने मुंख्यमंत्री पद छोड़ दिया था। इसी तरह दिवंगत रामविलास पासवान के भाई और उनकी पार्टी लोजपा के विभाजन के जिम्मेदार पशुपति कुमार पारस को खाद्य प्रसंस्करण विभाग दिया गया है।

जिन मंत्रियों की छुट्टी की गई उनमें डॉ हर्षवर्धन, रविशंकर प्रसाद, प्रकाश जावड़ेकर, थावर चंद गहलोत, रमेश पोखरियाल निशंक, सदानंद गौड़ा, संतोष कुमार गंगवार, बाबुल सुप्रियो, संजय धोत्रे, रतन लाल कटारिया, प्रताप चंद सारंगी और देबोश्री चौधरी शामिल हैं। कहा जा रहा है कि हर्षवर्धन को कोरोना के हालात के कुप्रबंधन, निशंक को नई शिक्षा नीति को ठीक से लागू नहीं कर पाने, प्रकाश जावड़ेकर को खास कर विदेशी मीडिया में हुए विपरीत प्रचार को संभाल नहीं पाने और रविशंकर प्रसाद को सोशल मीडिया प्लेटफार्मों से सही तरीके से नहीं निपट पाने का खामियाजा भुगतना पड़ा। इसी तरह बाबुल सुप्रियो और देबोश्री चौधरी की मंत्रिमंडल से विदाई का कारण बंगाल में भाजपा की हार है।

भाजपाई सूत्रों के मुताबिक इस कैबिनेट विस्तार से संदेश दिया गया है कि यदि किसी मंत्री का कामकाज ठीक नहीं रहा तो वह ज्यादा समय तक पद पर नहीं रह पाएगा। यह भी कहा जा रहा था कि जो काम केंद्र सरकार कर रही है वे अपेक्षित तरीके से जनता तक नहीं पहुंच पा रहे जबकि प्रधानमंत्री राज्यों के चुनावों में स्थानीय मुद्दों के अलावा केंद्र सरकार की विकास योजनाओं को भी अहमियत दिलाने के पक्षधर हैं। मगर सरकार के प्रति नकारात्मक प्रचार का कारण महंगाई, पेट्रोल डीजल की बढ़ती कीमतें, महीनों से चल रहा किसान आंदोलन आदि भी हैं। इस फेरबदल से इन मसलों का क्या होगा, कहा नहीं जा सकता।

अब प्रधानमंत्री को मिला कर केंद्रीय मंत्रियों की संख्या 78 हो गई है। 2014 में नरेंद्र मोदी ने केवल 46 मंत्रियों के साथ शुरूआत की थी। नियमों के हिसाब से अभी भी तीन और मंत्री बनाए जा सकते हैं। वैसे इस फेरबदल के बाद पंजाब के इकलौते मंत्री सोम प्रकाश ही रहे। उत्तराखंड से भी रमेश पोखरियाल के इस्तीफे के बाद अजय भट्ट को मंत्री बनाया गया। वे भी अपने प्रदेश के अकेले मंत्री हैं।

लगता है कि केंद्र सरकार और भाजपा सभी तरह के फेरबदल को एकसाथ निपटा देना चाहती है। कैबिनेट से हटाए गए लोगों में थावरचंद गहलोत को कर्नाटक का राज्यपाल बनाया गया है जिन्होंने वजूभाई वाला की जगह ली है। इसके साथ ही सात और राज्यपाल भी बदले गए हैं।  इससे ठीक पहले उत्तराखंड में तीरथ सिंह रावत के इस्तीफा के बाद 46 वर्षीय पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाया गया। तीरथ सिंह रावत सांसद हैं जिन्हें मुख्यमंत्री बने रहने के लिए उपचुनाव जरूर था, जबकि चुनाव आयोग उपचुनाव कराने के पक्ष में नहीं था। पुष्कर सिंह धामी ऊधम सिंह नगर की खटीमा सीट से विधायक हैं। उन्हें जोड़ कर उत्तराखंड के बीस साल के इतिहास में अब तक आठ मुख्यमंत्री हो चुके। (आभार – समय की चर्चा )