न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क 

पश्चिम बंगाल में आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर भारी सियासी घमासान चल रहा है। इस बीच जैसी कि उम्मीद थी, भाजपा ने कहा है कि इस चुनाव में उसकी तरफ से मुख्यमंत्री का कोई उम्मीदवार नहीं होगा। पार्टी के महासचिव और बंगाल के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय का कहना था कि बहुमत हासिल करने के बाद विधायक और पार्टी नेतृत्व तय करेंगे कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा।

असल में भाजपा के पास पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री के तौर पर पेश करने के लिए कोई कद्दावर चेहरा नहीं है। काफी समय से पार्टी इस समस्या से जूझ रही है। कुछ समय पहले पूर्व क्रिकेटर सौरव गांगुली को लेकर खबर उड़ी कि अगर वे बाजपा में आन को तैयार हो जाते हैं तो पार्टी उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा बना सकती है। लेकिन भाजपा के बड़े नेताओं से उनकी कई मुलाकातों के बाद भी वे तैयार होते नहीं लगते। इस मामले में जिन अन्य लोगों के नाम लिए जाते हैं उनमें प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष भी हैं। पर पूरे पश्चिम बंगाल के लिए उपयुक्त नहीं माना जा रहा।

वैसे भी भाजपा कई जगह मुख्यमंत्री का चेहरा ज़रूरी मानती है तो कई जगह अपनी स्थितियों के हिसाब से इसे जरूरी नहीं भी मानती। जैसे दिल्ली के विधानसभा चुनावों में भी उसने मुख्यमंत्री का कोई चेहरा पेश नहीं किया था।

इस बीच, तृणमूल कांग्रेस से टूट कर नेताओं के भाजपा में जाने का सिलसिला जारी है। इनमें सबसे नया नाम है शांतिपुर से विधायक अरिंदम भट्टाचार्य का जो पिछले हफ्ते दिल्ली में भाजपा में शामिल हुए। अरिंदम भट्टाचार्य पहले कांग्रेस में थे और उसी के टिकट पर 2016 में चुनाव जीते थे और एक साल बाद तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए थे। अब वे टीएमसी छोड़ भाजपा में आ गए हैं। कुछ ही समय पहले ममता सरकार के दिग्गज नेता शुभेंदु अधिकारी भाजपा में शामिल हुए थे। इनके अलावा आदित्य बिड़ला समूह के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट रंजन बनर्जी भी पिछले हफ्ते भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा की सदस्यता लेने के बाद उन्होंने कहा कि मैं पश्चिम बंगाल में उद्योग लाने की जरूरत है ताकि लोगों को रोजगार मिल सके।

भाजपा और तृणमूल दोनों ही दल फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं। हाल में तृणमूल कांग्रेस की एक रैली में पार्टी के कुछ समर्थकों ने नारा लगाया, ‘बंगाल के गद्दारों को, गोली मारो…को।’ इस रैली में राज्य के दो मंत्री शामिल हुए थे। अगले ही दिन पार्टी ने इस नारे से खुद को अलग कर लिया। पार्टी के प्रवक्ता कुणाल घोष ने कहा कि पार्टी इस तरह के नारों का समर्थन नहीं करती। उनके मुताबिक कुछ युवकों ने जोश में आकर ऐसे नारे लगाए जो कि नहीं लगाने चाहिए थे।

इस बीच नंदीग्राम एक बार फिर चर्चा में है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने घोषणा की है कि वे नंदीग्राम से चुनाव लड़ेंगी। असल में ममता बनर्जी को नंदीग्राम से ही एक जुझारू नेता की पहचान मिली थी। लेकिन अब उन्हें यहां शुभेंदु अधिकारी से कड़ी चुनौती मिल सकती है। शुभेंदु हाल तक तृणमूल में थे और ममता के खास सिपहसालारों में थे। चुनाव नजदीक आने के साथ ही नंदीग्राम के लोगों को लगने लगा है कि यहां की शांति भंग हो सकती है।

इस चिंता की एक वजह सांप्रदायिक ध्रुवीकरण भी है। भाजपा और तृणमूल दोनों की राजनीति इस ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे रही है। यह तय है कि ममता बनर्जी की यहां से चुनाव लड़ने की घोषणा का प्रभाव पूरे पूर्वी मिदनापूर्व जिले पर होगा। राज्य में वामपंथी सरकार के समय हुए तत्कालीन नंदीग्राम आंदोलन को टीएमसी, कांग्रेस, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और वाम दलों के असंतुष्ट नेताओं तक ने समर्थन दिया था। इस आंदोलन ने ममता की छवि एक जुझारू नेता के तौर पर स्थापित की। लेकिन उनके साथ ही शुभेंदु अधिकारी भी नंदीग्राम आंदोलन के नायक रहे थे। बल्कि तृणमूल कांग्रेस में शुभेंदु ही इस इलाके की देखरेख करते रहे हैं।