केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि अगर छह महीने के मोरेटोरियम में सभी कर्जों पर ब्याज माफ कर दिया गया तो बैंकों पर छह लाख करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा। अगर बैंक इसे वहन करने की सोचें तो उनकी कुल आय का बड़ा हिस्सा खत्म हो जाएगा।
जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस एमआर शाह की पीठ को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि इससे बैंकों की ‘सेहत’ खराब हो जाएगी। यहां तक कि बैंकों के अस्तित्व के लिए भी खतरा हो सकता है। उन्होंने कहा कि इसीलिए ब्याज में छूट पर विचार नहीं किया गया और मोरेटोरियम के तहत सिर्फ किस्तों का भुगतान टाला गया था। उनका कहना था कि अकेले स्टेट बैंक ऑफ इंडिया छह महीने का ब्याज माफ कर दे तो उसकी पैंसठ साल में अर्जित शुद्ध पूंजी आधी खत्म हो जाएगी।
मेहता ने कहा, जमाकर्ताओं पर बोझ डाले बिना चक्रवृद्धि ब्याज की माफी से उत्पन्न बोझ को वहन करना बैंकों के लिए असंभव है। अगर बैंकों को यह बोझ उठाना पड़ा तो उनकी शुद्ध पूंजी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, जो कि राष्ट्रीय आर्थिक हित में नहीं होगा। स्टेट बैंक ने भी दावा किया कि छह महीने के मोरेटोरियम के दौरान उसके कर्जदारों की ब्याज राशि लगभग 88078 करोड़ रुपये थी, जबकि इस अवधि में जमाकर्ताओं को दिया जाने वाला ब्याज लगभग 75157 करोड़ रुपये है। सॉलिसिटर जनरल की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह ऐसा कोई आदेश नहीं देगा जिससे अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ने का खतरा हो।
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