न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क
एआईएमआईएम यानी ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लमीन के समर्थन से ग्रेटर हैदराबाद के मेयर पद पर टीआरएस यानी तेलंगाना राष्ट्र समिति का कब्जा हो गया है। पार्टी की गड़वाल विजयलक्ष्मी ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम की मेयर चुनी गई हैं। टीआरएस के पास इस पद को हासिल करने के लिए बहुमत नहीं था, लेकिन असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने उसकी मदद की।
विजयलक्षमी टीआरएस नेता केशव राव की बेटी हैं और बंजारा हिल्स क्षेत्र से चुनी गई हैं। वे सात साल पहले तेलंगाना के गठन के बाद ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम में टीआरएस की पहली और 2009 में इस नगर निगम के गठन के बाद से दूसरी महिला मेयर हैं। उनसे पहले कांग्रेस की बांदा कार्तिका रेड्डी इस पद पर रह चुकी हैं। उनके साथ तरनाका क्षेत्र से निर्वाचित टीआरएस पार्षद मोहित श्रीलता रेड्डी को डिप्टी मेयर चुना गया है।
मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव, जो कि अपनी पार्टी के अध्यक्ष भी हैं, ने विजयलक्ष्मी और श्रीलता के नाम तय किए और एक सीलबंद लिफाफे में पार्टी को भेज दिए थे। टीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष केटी रामाराव ने नगर निगम परिसर में इन नामों की घोषणा की। इन नामों को सुन कर मेयर पद के लिए सबसे आगे चल रहीं खैरताबाद की पार्षद पी विजयलक्ष्मी बैठक से बाहर चली गईं और मतदान के लिए भी नहीं आईं।
यह तो खैर टीआरएस का भीतरी मामला था, लेकिन टीआरएस के उम्मीदवार को एआईएमआईएम का समर्थन मिलना बड़ा मामला है जो राज्य में भविष्य में होने वाले चुनावों पर भी असर डाल सकता है। ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम के चुनाव पिछले दिसंबर में हुए थे। इसके प्रचार में जिस तरह भाजपा ने अपने कई राष्ट्रीय नेताओं को उतारा उससे ये चुनाव देश भर में चर्चित हुए। चुनाव में भाजपा और टीआरएस के बीच काफी करीबी मुकाबला दिखा।
इस नगर निगम की 150 सदस्यों वाली काउंसिल में टीआरएस केवल 56 सीटें जीत सकी और बहुमत के आंकड़े से बीस सीटें पीछे रह गई। भाजपा को 48 सीटें मिलीं और वह दूसरे नंबर पर रही जबकि एआईएमआईएम को 44 सीटें मिलीं। एआईएमआईएम को ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम के पिछले चुनाव में भी इतनी ही सीटें मिली थीं, लेकिन उसके और भाजपा के इस चुनाव में ध्रुवीकरण कराने के प्रयासों के चलते भाजपा को अप्रत्याशित रूप से ज्यादा सीटें मिल गईं। इस चुनाव में सबसे बुरी स्थिति कांग्रेस की रही जो महज दो सीटें ही जीत सकी। पिछले महीने भाजपा के एक पार्षद की कोरोना संक्रमण के चलते मौत हो गई।
टीआरएस की सीटें बहुमत से 20 कम थीं। फिर भी उसे अपने सांसदों, विधायकों और एमएलसी सहित 38 सह-विकल्प सदस्यों की मदद से मेयर और डिप्टी मेयर पद जीतने की उम्मीद थी। भाजपा के केवल दो सह-विकल्प सदस्य हैं। उसके जीतने की उम्मीद कम ही थी। लेकिन एआईएमआईएम की इस घोषणा ने चुनाव को खासा दिलचस्प बन दिया था कि वह भी इन दोनों पदों के लिए अपने उम्मीदवार उतारेगी। उसके पास 44 सीटें और 10 सह-विकल्प वोट थे।
सह-विकल्प सदस्यों को मिला कर मतदान करने वाले कुल सदस्य 193 थे और जीतने के लिए टीआरएस को 97 वोटों की जरूरत थी जबकि उसके पास सिर्फ 88 वोट थे। ऐसे में चुनाव से करीब घंटा भर पहले एआईएमआईएम ने ऐलान किया कि वह टीआरएस के समर्थन में अपने उम्मीदवार वापस लेती है। ओवैसी की पार्टी के इस फैसले के बाद टीआरएस के लिए लड़ाई बहुत आसान हो गई। दोनों पद उसे मिल गए।
हैदराबाद के भाजपा विधायक टी. राजा सिंह का इस मामले में कहना था कि टीआरएस ने एआईएमआईएम का समर्थन लेकर अपनी कब्र खोद ली है। उन्होंने कहा कि यह हैदराबाद के लोगों के साथ विश्वासघात के अलावा और कुछ नहीं है। उनके मुताबिक राज्य के आगामी विधानसभा चुनाव में टीआरएस को इसका नुकसान उठाना पड़ेगा।
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