न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क

पेगासस जासूसी कांड की वैसे तो पूरे देश में चर्चा है, लेकिन छत्तीसगढ़ में इसके अलग मानी भी हैं।

पेगासस इस प्रदेश के लिए नया शब्द नहीं है। रायपुर में 2018 में भाजपा की रमण सिंह सरकार जाने और कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार बनने के तुरंत बाद पेगासस स्पाईवेयर के जरिये राज्य में जासूसी का मुद्दा उठा था।

तब यह भी दावा किया गया था कि पेगासस बनाने वाली कंपनी एनएसओ से संबंधित कुछ लोग छत्तीसगढ़ का दौरा करने भी आए थे।

हाल में राष्ट्रीय स्तर पर पेगासस का बवाल मचने पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि पेगासस के लोगों के यहां आने और पुलिस अफसरों से मिलने की सूचना की जांच तीन अफसरों की कमेटी कर रही है।

उनका कहना था कि इस जांच में कोई कोताही नहीं बरती जाएगी। उन्होंने आरोप लगाया कि तीन साल पहले एनएसओ के कुछ लोग छत्तीसगढ़ आए थे और राज्य में कई लोगों से मिले थे।

बघेल ने यह भी दावा किया कि पूर्व मुख्यमंत्री रमण सिंह को इस बारे में सब पता है। जवाब में रमण सिंह, जो कि अब भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं, ने कहा कि सालों बाद भूपेश बघेल को सपना आता है कि पेगासस के इस्तेमाल की एक घटना हुई थी। उन्होंने इस बारे में तमाम आरोपों को बेबुनियाद बताया।

मगर राज्य सरकार के सूत्र दावा करते हैं कि अफसरों की जांच टीम मोटे तौर पर इस नतीजे पर पहुंची है कि दिसंबर 2018 में राज्य में सरकार बदलने के तुरंत बाद बीटीआई ग्राउंड में जो दस्तावेज जलाए गए थे, उनमें पेगासस जासूसी से जुड़े कागज भी हो सकते हैं।

सरकारी सूत्रों के हिसाब से, इसीलिए जांच कमेटी को अब तक इस जासूसी से संबंधित एक भी दस्तावेज नहीं मिल पाया। सरकार बदलने पर यह बात जोरशोर से सामने आई थी कि पेगासस की इजराइली कंपनी और छत्तीसगढ़ के कुछ अफसरों के बीच ई-मेल के जरिए संपर्क हुआ था।

भूपेश बघेल सरकार ने सत्ता संभालते ही इजरायली कंपनी के लोगों के 2017 में यह साफ्टवेयर लेकर छत्तीसगढ़ आने की सूचना की जांच के आदेश दे दिए थे। तीन अफसरों की यह कमेटी तभी बनाई गई थी। इनमें तत्कालीन गृह सचिव सुब्रत साहू, डीजीपी डीएम अवस्थी और जनसंपर्क संचालक तारन प्रकाश सिन्हा को रखा गया था।

तत्कालीन आईजी इंटेलिजेंस को इस कमेटी  की मदद करने के लिए भी कहा गया था। कुछ ही दिन मे कमेटी ने जांच के लिए पांच बिंदु निर्धारित कर लिए थे।

कमेटी के हिसाब से उसे पता लगाना था कि छत्तीसगढ़ में कंप्यूटर नेटवर्किंग का संचालन कर रही सरकारी एजेंसी चिप्स और पुलिस के इंटेलिजेंस विभाग ने पेगासस के प्रोडक्ट का दुरुपयोग किया या नहीं।

जांच का दूसरा बिंदु यह था कि बीटीआई ग्राउंड में जो दस्तावेज जलाए गए उनमें चिप्स के जासूसी से जुड़े दस्तावेज तो नहीं थे? कमेटी को यह भी जांच करनी थी कि छत्तीसगढ़ आए इजराइली नागरिकों के नाम क्या थे और यह भी कि किन लोगों के व्हाट्सऐप काउंट और मोबाइल फोन टैप किए गए थे।

जांच अभी खत्म नहीं हुई है। बताया जाता है कि जांच कमेटी पेगासस से जुड़े दस्तावेज हासिल करने में तो नाकाम रही, लेकिन कमेटी परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर इस बात से सहमत है कि जो दस्तावेज जलाए गए, उनमें पेगासस से जुड़े दस्तावेज भी हो सकते हैं। हो सकता है कि कमेटी इस निष्कर्ष को अपनी रिपोर्ट में भी शामिल करे।

दावा किया जा रहा है कि इजरायली कंपनी के प्रतिनिधियों ने पेगासस स्पाईवेयर के बारे में राज्य के पुलिस मुख्यालय में दिए प्रेजेंटेशन में इसके उपयोग की विस्तार से जानकारी दी थी।

बताया गया कि प्रेजेंटेशन देने वाले प्रतिनिधियों ने सॉफ्टवेयर की जानकारी देते हुए बताया कि उनका ऐप अन्य बातों के अलावा दो लोगों के बीच की बातचीत यानी एन्क्रिप्टेड फाइलों को परिवर्तित कर सामने ला सकता है। इसके जरिए व्हाट्सऐप वॉयस कॉल भी आसानी से सुनी जा सकती है।

कहा जाता है कि इस सॉफ्टवेयर के लिए कंपनी ने 60 करोड़ रुपए मांगे थे। कमेटी को इस बात की जांच करने के लिए भी कहा गया था कि यह सौदा हुआ या नहीं। यानी स्पाईवेयर आया या नहीं। और अगर आया तो उससे कितने लोगों की और किस-किस क्षेत्र के लोगों की जासूसी की गई।

हाल में जो पेगासस को लेकर खुलासे हुए हैं उनमें छत्तीसगढ़ से संबंधित सात लोगों के नाम आ रहे हैं, जिनकी जासूसी हुई थी।

ये हैं शुभ्रांशु चौधरी, बेला भाटिया, आलोक शुक्ला, शालिनी गेरा, सोनी सोरी, डिग्री प्रसाद चौहान और लिंगाराम कोडोपी। ये सभी लोग एक्टिविस्ट हैं और कई सालों से बस्तर में सक्रिय रहे हैं। हाल के इन खुलासों के बाद राज्य के कई अफसरों का कहना है कि इससे इस बात को बल मिलता है कि छत्तीसगढ़ में भी पेगासस का इस्तेमाल किया गया था।