न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क
विनीत दीक्षित

हाल के एक शोध से पता लगा है कि यह मान्यता गलत है कि अमीर लोग ज्यादा जीते हैं। बजाय इसके ज्यादा पढ़े-लिखे लोग कम शिक्षित लोगों के मुकाबले ज्यादा जीते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि जीवन प्रत्याशा का संबंध आमदनी की बजाय पढ़ाई से अधिक है।

यह अध्ययन अमेरिका में हुआ जिसमें पाया गया कि कम पढ़े-लिखे लोगों की तुलना में अधिक शिक्षित लोग औसतन दस साल ज्यादा जीते हैं। वहां की नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस की पत्रिका में प्रिंस्टन विश्वविद्यालय की प्रोफेसर एनी केस और प्रोफेसर एंगस डीटन ने इस बारे में आंकड़ों का विश्लेषण किया है। उन्होंने 1990 से 2018 के बीच यानी अट्ठाइस साल की अवधि के लगभग पांच करोड़ लोगों के मृत्यु प्रमाणपत्र के आंकड़ों का अपने शोध में इस्तेमाल किया है। उन्होंने अपने विश्लेषण से साबित किया है कि हम कितना जीते हैं, इसका शिक्षा से गहरा संबंध है। आमदनी अथवा बाकी कारण जैसे लिंग, नस्ल, जातीयता इस मामले में मायने नहीं रखते।

इस अध्ययन में बताया गया है कि स्नातक की डिग्री वाले और बिना डिग्री वाले लोगों में फर्क 1990 और 2000 के दशक में दिखना शुरू हो गया था। 2010 के दशक में तो यह अंतर और बढ़ गया। यानी उस दशक में भी डिग्री धारकों की जीवन प्रत्याशा में वृद्धि जारी रही, जबकि कम पढ़े-लिखे अन्य लोग उतने नहीं जी पाते।

अध्ययन कर्ताओं ने यह भी पाया कि जैसे-जैसे मृत्यु दर में शैक्षिक अंतर बढ़ा, नस्लीय अंतर कम होते गए। असल में वर्ष 1990 के पहले माना जाता था कि श्वेत लोग कितने भी कम पढ़े हों, अश्वेतों के मुकाबले ज्यादा लंबा जीवन गुजारते हैं। लेकिन यह अध्ययन इस मान्यता को झुठलाता है। लेकिन सवाल उठता है कि ज्यादा पढ़े-लिखे लोगों का जीवन लंबा होने का कारण क्या है। इस पर शोधकर्ताओं का तर्क है कि शिक्षित लोग स्वस्थ जीवन शैली अपनाते हैं। कम पढ़े लोग धूम्रपान और नशे का ज्यादा सेवन करते हैं और रोजगार में भी उन्हें बेहतर सेहत की गारंटी नहीं मिल पाती।

प्रसंगवश, भारत में पिछले दस सालों में औसत जीवन प्रत्याशा बढ़ी है। मानव विकास रिपोर्ट 2020 के मुताबिक, भारत में वर्ष 2019 में जन्मे लोगों की जीवन प्रत्याशा 69.7 साल आंकी गई। पांच साल पहले यानी वर्ष 2015 में यह 63.4 साल थी। क्या इसकी वजह भी बढ़ती शिक्षा मानी जाए? इस बात से तो कोई इनकार कर ही नहीं सकता कि देश में शिक्षा का प्रसार तेजी से बढ़ा है।