न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क
जम्मू कश्मीर के लिए बने परिसीमन आयोग के प्रस्ताव को लेकर घाटी के ज्यादातर नेताओं ने नाराजगी व्यक्त की है। आयोग ने जम्मू क्षेत्र में विधानसभा की छह और कश्मीर घाटी में एक सीट बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है। ऐसा होने पर जम्मू में विधानसभा सीटों की संख्या बढ़ कर 43 और कश्मीर में 47 हो जाएगी। इससे जम्मू और घाटी के बीच राजनैतिक दबदबे के मौजूदा अनुपात के प्रभावित होने की पूरी गुंजाइश है।
इसके साथ ही प्रस्ताव में अनुसूचित जनजातियों के लिए नौ और अनुसूचित जातियों के लिए सात सीटें सुरक्षित रखने को कहा है जबकि पाक अधिकृत कश्मीर के लिए 24 सीटें रिजर्व रहेंगी। इस सोमवार दिल्ली में हुई आयोग की बैठक में केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह, भाजपा सांसद जुगल किशोर, नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारुक अब्दुल्ला, रिटायर्ड जस्टिस हसनैन मसूदी और मोहम्मद अकबर लोन शामिल हुए। परिसीमन आयोग सुप्रीम कोर्ट की रिटायर्ड जज रंजना प्रकाश देसाई, मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुशील चंद्रा और जम्मू कश्मीर के निर्वाचन आयुक्त केके शर्मा को लेकर बना है।
कश्मीर की पार्टियों का मानना है कि आयोग के प्रस्ताव से जम्मू क्षेत्र को राजनीतिक बढ़त मिलेगी और केंद्र शासित प्रदेश का मुख्यमंत्री तय करने में उसकी भूमिका अहम हो जाएगी। अब तक इस मामले में ज्यादा सीटें होने के कारण घाटी का वर्चस्व रहता था। इसीलिए आयोग के प्रस्ताव पर नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी आदि दलों ने आपत्ति जताई है।
असल में जम्मू कश्मीर विधानसभा से पास हुए एक प्रस्ताव के मुताबिक 2031 तक राज्य में परिसीमन नहीं हो सकता था। साथ ही उसे 2021 की जनगणना के आधार पर होना था। लेकिन दो साल पहले जब जम्मू कश्मीर का राज्य का दर्जा समाप्त कर उसे केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया तो विधानसभा वह प्रस्ताव अर्थहीन हो गया। उसकी जगह केंद्र सरकार ने 2011 की जनगणना के आधार पर ही परिसीमन कराने के लिए आयोग गठित कर दिया। आयोग को आगामी 6 मार्च तक परिसीमन का काम पूरा करना है। उसके बाद ही प्रदेश में चुनाव होगा।
मौजूदा प्रस्ताव पर विपक्षी दल दलील दे रहे हैं कि 2011 की जनगणना के मुताबिक कश्मीर घाटी की आबादी जम्मू से 15 लाख ज्यादा है, फिर भी जम्मू में छह सीटें बढ़ाई जा रही हैं। इसका साफ मतलब है कि जम्मू के राजनीति प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश हो रही है।
अगस्त 2019 में धारा 370 में संशोधन के समय तक जम्मू कश्मीर विधानसभा में 87 सीटें थीं। लद्दाख को अलग करने पर 83 बच गईं। इनमें से 37 सीटें जम्मू और 46 सीटें कश्मीर में थीं। अब आयोग के प्रस्ताव से जम्मू में 6 सीटें बढ़ेंगी तो कुल 43 हो जाएंगी और कश्मीर में कुल सीटें 47 होंगी। यानी अब विधानसभा में कुल 90 सीटें होंगी और इनके अलावा पाक अधिकृत कश्मीर के लिए 24 सीटें खाली रखी जाएंगी। लेकिन जम्मू और कश्मीर क्षेत्रों के बीच पहले जो 9 सीटों का अंतर था, वह अब घट कर 4 सीटों का ही रह जाएगा। दलित और आदिवासी समुदाय के आरक्षण से भी प्रदेश का राजनीतिक गणित काफी बदल सकता है क्योंकि जम्मू कश्मीर में पहली बार अनुसूचित जातियों को चुनावी आरक्षण मिलेगा।
आयोग ने इस प्रस्ताव पर 31 दिसंबर तक सदस्यों से सुझाव मांगे हैं। मगर पीडीपी अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने इस प्रस्ताव की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने ट्वीट करके कहा कि जनगणना की अनदेखी हो रही है। एक इलाके को 6 सीटें और कश्मीर को केवल एक सीट का प्रस्ताव देना लोगों को एक दूसरे के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश है। महबूबा पहले भी कह चुकी हैं कि हमें परिसीमन आयोग पर कोई भरोसा नहीं है क्योंकि यह भाजपा के एजेंडे पर काम कर रहा है। नेशनल कान्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला ने भी कहा कि मैं इस परिसीमन से बेहद निराश हूं। यह आयोग भाजपा का एजेंडा पूरा कर रहा है। पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद गनी लोन ने भी आयोग की सिफारिशें पूरी तरह अमान्य और पूर्वाग्रह से ग्रस्त बताई हैं।
2011 की जनगणना के मुताबिक, कश्मीर घाटी की आबादी 6888475 है और यहां 46 सीटें हैं, जबकि जम्मू में 5378538 आबादी और 37 विधानसभा सीटें हैं। कश्मीर के स्थानीय दलों की मांग है कि सीटों का बंटवारा आबादी के आधार पर होना चाहिए और घाटी की आबादी जम्मू के मुकाबले पंद्रह लाख ज्यादा है तो विधानसभा में भी उसे ज्यादा प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। दूसरी तरफ भाजपा कहती है कि जम्मू 26293 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है और कश्मीर 15948 वर्ग किमी में, इसलिए परिसीमन केवल जनसंख्या नहीं, बल्कि क्षेत्रफल के भी आधार पर होना चाहिए।
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