न्यूज़गेट प्रैस नेटवर्क
महेंद्र पाण्डेय
पर्यावरण और महिला अधिकारों के मुद्दे में यह दिलचस्प समानता है कि जब उनका समाधान नहीं निकलता और वे पहले से अधिक विकराल हो जाते हैं तो दुनिया उन्हें नए नाम दे देती है। समस्या से ध्यान भटकाने के लिए उन्हें नए कलेवर में पेश किया जाने लगता है।
1970 के दशक से दुनिया वायु प्रदूषण और महिला अधिकारों पर चर्चा कर रही है, लेकिन इनका कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकला। आज हालत यह है कि दुनिया की 90 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या प्रदूषित हवा में सांस ले रही है। लेकिन अब इसे जलवायु परिवर्तन के नए कलेवर में प्रस्तुत किया जाता है। सभी जानते हैं कि जिन कारकों से वायु प्रदूषित होती है, वही कारक जलवायु परिवर्तन के लिए भी जिम्मेदार हैं, पर अब सरकारें वायु प्रदूषण की चर्चा नहीं करतीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन की चर्चा करती हैं।
इसी तरह का मुद्दा महिलाओं की हत्या का भी है। यह विश्व्यापी समस्या है। साल दर साल इन ह्त्याओं का दायरा व्यापक होता जा रहा है, पर दुनिया भर में अब लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण की चर्चा होती है। महिला ह्त्या का मुद्दा दिनया भूल गयी है।
हाल में हमारे नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के जारी हुए आंकड़ों के अनुसार देश में हर दिन औसतन 19 महिलाओं की ह्त्या केवल दहेज़ के कारण होती हैं। इसके अतिरिक्त देश भर में रोजाना 77 बलात्कार होते हैं और इनमें से बहुत सी पीड़िताओं की ह्त्या साक्ष्य छुपाने के लिए कर दी जाती है। कई बार तो पुलिस और अस्पताल भी साक्ष्य छुपाने में शरीक रहते हैं। ऑनर किलिंग या परिवार की इज्जत बचाने के नाम पर हमारे देश में लगभग 100 महिलाओं की ह्त्या हर वर्ष कर दी जाती है। आश्चर्य यह है कि सरकारी नीतियाँ और मीडिया इस सन्दर्भ में खामोश रहते हैं।
हाल में ही एमनेस्टी इन्टरनेशनल की एक रिपोर्ट में बताया गया कि मेक्सिको में रोज औसतन दस महिलाओं की ह्त्या कर दी जाती है। मेक्सिको में पिछले तीन वर्षों से इस मसले पर महिलायें विरोध प्रदर्शन कर रही हैं जिनमें हर तबके की महिलाएं शामिल होती हैं, पर हत्याओं के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। एक अध्ययन के अनुसार मेक्सिको में पिछले पांच सालों में महिलाओं की ह्त्या के मामलों में 137 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी देखी गयी है। दक्षिण अमेरिकी देशों में यह समस्या बहुत विकराल है। कोलंबिया में हर महीने औसतन 15 महिलाओं की ह्त्या कर दी जाती है। दक्षिण अमेरिका के 25 में से 14 देशों में यह एक गंभीर समस्या है। महिलाओं की प्रति एक लाख आबादी के आधार पर एल साल्वाडोर में 6.1 हत्याएं, होंडुरस में 5.1 हत्याएं, ब्राज़ील में 1.1 और अर्जेंटीना में भी 1.1 ह्त्या होती है। अफ्रीकी देशों के लिए यह औसत 3.1 ह्त्याओं का है। वैसे पूरी दुनिया में महिलाओं की हत्या का औसत प्रति एक लाख महिला आबादी पर 2.17 ह्त्या का है| दक्षिण अफ्रीका में रोजाना औसतन छह महिलाओं की ह्त्या कर दी जाती है, यह संख्या विश्व औसत की तुलना में तीन गुना अधिक है।
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2019 तक दुनिया भर में हर साल औसतन 87000 महिलाओं की ह्त्या होती थी, पर 2020 में कोविड-19 के कारण लगे विश्व्यापी लॉकडाउन के बाद यह समस्या और गंभीर हो गयी है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार महिलाओं की हत्या के मामले में विभिन्न देशों में 50 से 90 प्रतिशत तक हत्याएं पति, पूर्व पति, पुरुष मित्र, या फिर दूसरे ऐसे जानने वालों द्वारा की जाती हैं जिन्हें महिलायें अपना विश्वस्त या भरोसेमंद मानती हैं। हमारे देश में इस तर्क को समझाना आसान है क्योंकि दहेज़ के कारणों से की जाने वाली सभी हत्याओं में पति और उनके रिश्तेदार शामिल रहते हैं। इसके अलावा कथित ऑनर किलिंग में भी पिता, भाई या अन्य रिश्तेदार शामिल रहते हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार दुनिया में हर वर्ष 50000 से अधिक महिलाओं की ह्त्या उनके पहचान वालों या सम्बन्धियों द्वारा की जाती हैं।
यूनाइटेड किंगडम में 2019 तक औसतन 120 महिलाओं की ह्त्या प्रतिवर्ष की जाती थी, पर 2020 के मार्च से अगस्त महीनों के बीच ही 180 हत्याएं दर्ज की गईं। फ्रांस में 2021 में अब तक 80 से अधिक महिलाओं की ह्त्या की जा चुकी है। हाल में ही फ्रांस के बौर्डिओक्स शहर में पुलिस के बड़े अधिकारियों पर इस सम्बन्ध में लापरवाही के आरोप में मुक़दमा भी दायर किया गया है। चाहिनेज़ बौटा नामक एक महिला ने स्थानीय पुलिस के पास अपने पति के खिलाफ मार्च में शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायत के अनुसार उसके पति मौनिर बौटा उसके साथ मारपीट करते और जान से मारने की धमकी देते थे। पर पुलिस ने इस शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की और दो महीने बाद ही उसके पति ने चाहिनेज़ को पहले गोली मारी और फिर बीच सड़क पर उसके शरीर पर पेट्रोल छिड़क कर आग लगा दी, जिससे उसकी मौत हो गयी। शुरुआती जांच से पता चला कि पुलिस ने उसकी शिकायत ठीक से नहीं लिखी थी और जिस पुलिस अधिकारी ने शिकायत दर्ज की थी वह भी घरेलू हिंसा के आरोप में सजा काट चुका है।
भारत, फ्रांस, अफ़ग़ानिस्तान, टर्की, होंडुरास और मेक्सिको जैसे देश तो महिलाओं की ह्त्या के संदर्भ में दुनिया भर में बदनाम हैं, पर अमेरिका में भी यह समस्या बहुत गंभीर शक्ल ले चुकी है। सेंटर फॉर डिजीज कन्ट्रोल के अनुसार 19 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों में होने वाली मौतों में ह्त्या चौथा सबसे बड़ा कारण है, जबकि 20 से 44 वर्ष की उम्र की महिलाओं में मृत्यु का यह पांचवां सबसे बड़ा कारण है। फ्रांस में वर्ष 2018 में 120 महिलाओं की ह्त्या की गयी, जबकि उसी साल अमेरिका में 1014 महिलाओं की ह्त्या हुई। वर्ष 2019 में अमेरिका में स्थिति और भी खराब थी। इस वर्ष टर्की में 474 महिलाओं की ह्त्या की गयी थी, जबकि अमेरिका में यह आंकड़ा 2991 तक पहुँच चुका था।
जिस तरीके से हमारे देश में पिछड़ी जातियों और आर्थिक स्तर पर कमजोर लोगों में महिला ह्त्या की समस्या शेष आबादी से अधिक विकराल है, उसी तरह अमेरिका में भी अश्वेतों और जनजातियों में यह समस्या अधिक गंभीर है।
नेशनल इंडिजेनस विमेंस रेस्पोंस सेंटर के आंकड़ों के अनुसार अश्वेतों और जनजातियों में यह समस्या श्वेत महिलाओं की तुलना में छह गुना ज्यादा है। पुलिस इनके मामलों में लापरवाह भी रहती है। मसलन, लापता श्वेत लोगों में से 81 प्रतिशत का सुराग वहां की पुलिस रिपोर्ट दर्ज होने के एक सप्ताह के भीतर ही लगा लेती है, जबकि अश्वेतों के लिए यह संख्या 61 प्रतिशत ही है। फ़ेडरल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टिगेशन के अनुसार अमेरिका में 92 पर्तिशत महिलाओं की ह्त्या उनके जानने वालों द्वारा की जाती है, जबकि 63 प्रतिशत हत्याएं वर्तमान पति ही करते हैं।
अमेरिका में एक नर्स, डौन विलकॉक्स निजी तौर पर ऐसी महिलाओं का रिकॉर्ड एकत्रित करती हैं जिनकी ह्त्या की गयी हो। उनके अनुसार यह समस्या समाज में इतनी गहराई तक पसरी है कि इसे हम सामान्य समझाने लगे हैं और इस पर कोई आवाज नहीं उठती। कानून की समस्या यह है कि अधिकतर हत्याएं पति या फिर अन्तरंग मित्रों द्वारा की जाती हैं, जिन पर महिलायें भरोसा करती हैं। ऐसी हत्याओं का कोई गवाह नहीं होता जबकि महिला की मृत्यु हो चुकी होती है। (आभार – समय की चर्चा)
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